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बुधवार, 18 अगस्त 2010

अब बुढ़ापे की हमको हरारत लगे॥


अब बुढ़ापे की हमको हरारत लगे॥

आँख से धुधला पन यूं दिख रहा॥

कापता तन लिए धूठ को संग में॥

पाँव आने को जाने से अब रुक रहा॥

कान को कम सुनायी अब देने लगा॥

कौन बकता है क्या ये नहीं सुन रहा॥

जीभ को स्वाद लेना अब महागा पड़े॥

साथ दूगा नहीं पेट यूं कह रहा॥

अब तो लगता है हूँ मरने के मोड़ पर॥

संग छूटेगा अब मौन बन कह रहा॥

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

हमरा गउवा बदल के शहर होय गवा॥

मिल गय आजादी अव भय खुल गवा॥
हमरा गउवा बदल के शहर होय गवा॥
हर गाँव स्कूल खुले है ,,शिक्षा के जले है दीप॥
पक्की सड़क दुवारे तक है,, न मांगे अब कोऊ भीख॥
हमारे देशवा पकका बाज़ार खुल गवा...
हमरा गउवा बदल के शहर होय गवा॥
कम्पूटर कय आवा ज़माना॥
नेटवोर्किंग पय सुने लागे गाना॥
अपने लोगवन के मनाई कय भाग जग गवा॥
हमरा गउवा बदल के शहर होय गवा॥

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

मनवा उदास कय के हमें फुश्लावय ल॥

आय के अंधेरिया मा हमके जगावे ला॥

मनवा उदास कय के हमें फुश्लावय ल॥

संग मा मिठायी और लाये रसगुल्ला॥

खुश भइल जियरा करय हस्गुल्ला॥

हथवा से अपने हमके खियावे ला॥

मनवा उदास कय के हमें फुश्लावय ल॥


रिम -झिम सवनवा बहुत झकझोरय॥

बैरी पवनवा नसिया फोरय॥

पीछे वाला बाजू बंद धीरे धीरे खोलेला॥

मनवा उदास कय के हमें फुश्लावय ल॥

कनवा मा धीरे धीरे बोले बोलिया॥

भैली मदहोश खाए नशा वाली गोलिया॥

हथवा दिला पे हमरे लागावे ला॥

मनवा उदास कय के हमें फुश्लावय ल॥

सखी दय दा दवायी॥

हमरा देवरवा बीमार बा...

सखी दय दा दवायी॥

पहली बिमारी उनके अंखिया पे आयी॥

मौक़ा देख मच्लायी...

सखी दय दा दवायी॥

दूसरी बीमारी उनके मुहवा पे आयी॥

पाय अकेले मुस्कायी॥

सखी दय दा दवायी॥

तीसरी बिमारी उनके जिभिया पे आयी।

देखत लार टपकायी॥

सखी दय दा दवायी॥

चौथी बिमारी उनके हथवा पे आयी॥

रतिया में करय चतुरायी॥

सखी दय दा दवायी॥

पाचवी बिमारी उनके देहिया पे आयी॥

चर चर चर करय चारपायी॥

सखी दय दा दवायी॥

सोमवार, 9 अगस्त 2010

बहू देखावय ड्रामा..

जब से बेतवा परदेश गवा॥

बहू देखावय ड्रामा॥

छत पय चढ़ के सिटी बजावै॥

करय रोज़ हंगामा॥

करय रोज हंगामा॥

मंगू कय खटिया तोडिस॥

सीढ़ी साधी हमरे बुधिया कय॥

बूढ खोपडिया फोरिस॥

सारी रात जल्दी बाज़ी मा॥

फाड़ीस हमरव पजामा॥

जब से बेतवा परदेश गवा॥
बहू देखावय ड्रामा॥

लरिकन के संग टुक्की टुइया॥

रात अंधेरिया खेले॥

बड़े बड़े औज्हड़ जब मारय॥

हंस हंस ओहका झेलय॥

हमरी बुढिया रोज़ खियावय॥

बनाय के उनका खाना।

जब से बेतवा परदेश गवा॥
बहू देखावय ड्रामा॥

बहू देखावय ड्रामा..

बुधवार, 4 अगस्त 2010

भौजी मारे माठा॥

भैया हमरे भैस चरावै॥

भौजी मारे माठा॥

जब भौजी पे धाक जमावे॥

भौजी मारे चाटा॥

लेडाहता सारी रात घूमे ॥

एक साल कय लरिका बाटे॥

भूख से बेहाल॥

भौजी अपने मा मस्त बाटी॥

बेटवा का नहीं है ख्याल॥

रात अंधेरिया मस्का मारे॥

पकडे खड़ी ओसार॥

अकड़त दारू के ठेका से आवय॥

मस्ताना के मस्ती मा झूमे॥

लेडाहता सारी रात घूमे ॥

अचरवा हे गोइया उड़ उड़ जाला॥



हंस हंस अखिया मा चमके कजरवा॥


अचरवा हे गोइया उड़ उड़ जाला॥


हंस हंस के होठवा लागल बिरावय॥


चढ़ती जवानी अब कुछ न बुझाला॥


अचरवा हे गोइया उड़ उड़ जाला॥


बहे पुरवईया आवय अलशायी॥


देख सुरतिया मन मुस्कायी॥


देहिया से निकरत बाटे उजाला॥


अचरवा हे गोइया उड़ उड़ जाला॥


पाँव कय पयलिया छम छम बाजे॥


चंचल मन मोरा खूब नाचे॥


रहि रहि उनके मनवा दिठाला ॥


अचरवा हे गोइया उड़ उड़ जाला॥

घंटन बतलात ही..

खुशुर फुशुर बात करय॥

बहुत अदरात ही॥

छत पय मोबाईल से॥

घंटन बतलात ही॥

मुहवा से बतिया बहुत नीक लागे॥

हंस हंस बहलावे कसमिया खाके॥

रात अम्मा नइखे बहुत सेखियात ही॥

छत पय मोबाईल से॥
घंटन बतलात ही॥

बारह बजे रतिया में ओहके बोलाउली॥

अपनी अटारिया ओहके देखौली ॥

पकड़ के कमरिया खुद बिछलात ही॥

छत पय मोबाईल से॥
घंटन बतलात ही॥

चार बजे पीछे कय खुला दरवाज़ा॥

भैले उजियार बाजन लागे बाजा...

गाँव मा यही सुन्दर लड़की देखात ही॥

छत पय मोबाईल से॥
घंटन बतलात ही॥

रविवार, 1 अगस्त 2010

गोपाल के मम्मी करवट ले ले..

हे गोपाल की मम्मी ॥
करवट ले ले॥
सारी बला टल जायेगी॥
सूखी पड़ी है जो कलियाँ॥
सुबह सुबह मुस्कायेगी॥

चंचल होगी आँख तुम्हारी॥
जब गाल पे भवरा मंडराएगा॥
मेरे आँगन में सावा आके॥
बारिश की बूँद बरसायेगा॥
मेरे बाहों की माला होगी॥
अपने पास बुलायेगी॥
हे गोपाल की मम्मी ॥
करवट ले ले॥
सारी बला टल जायेगी॥
सूखी पड़ी है जो कलियाँ॥
सुबह सुबह मुस्कायेगी॥

बजने लगेगी पायल तेरी॥
तन मेरा बौरायेगा.. ॥
कमर पकड़ तुझको जानू॥
अपने पास बुलाएगा॥
रात अँधेरी कोई नहीं॥
क्यों सुन्दर रूप छुपाओगी॥
हे गोपाल की मम्मी ॥
करवट ले ले॥
सारी बला टल जायेगी॥
सूखी पड़ी है जो कलियाँ॥
सुबह सुबह मुस्कायेगी॥