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मंगलवार, 1 सितंबर 2009

महगाई से हाल बुरा ब ॥

महगाई से हाल बुरा ब ॥
रोवय पेटू बोटी का॥
चार दिना से नही ब खाए॥
सब्जी मिलय न छोटी का॥

बाप बेहाल विधाता कोशय॥
कैसे कर्मठ गांठी राम॥
लरिकन का कैसे समझायी॥
चौपट धंधा छूटा काम॥
नन्कौवा बनियानी का फाड़े॥
रूपया मांगे लंगोटी का...

यही झंझट म देही बोली गय ॥
पौरुष तन से भागत ब॥
कैसे चले अब घर कय खर्चा॥
रात बहेतू जागत बा॥
कहा से रूपया मांग के लायी ॥
आता नही बा रोटी का॥

चारव जूनी चाचर होत॥
ऊब गवा बा जान॥
तल्लुक्दारय उलटा बोलाय ॥
होत रोज अपमान॥
bओले महरिया छत के ऊपर॥
हठ कर बैठी धोती का॥

महगाई से हाल बुरा ब ॥
रोवय पेटू बोटी का॥

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