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सोमवार, 31 मई 2010

कलम का पेड़..

कहते है पूत के पाँव पालने में ही बता चल जाता है की लड़का बड़ा होके क्या करेगा॥ कैसे अपने जीवन के डोर को थाम के चलेगा॥ जब हमारी उम्र मात्र ७ साल की थी, जो हमें याद नहीं है, हमारी बुआ जी विस्तार से बताती है॥ क्यों की बुआ जी हमें घुमाने के बहाने ले जाती और साथ में घूम भी लेती थी उनका भी मन आन हो जाता था। हम लोग अपने बैठके के पास इकट्ठी हो के खेला करते थे। एक दिन की बात सावन का समय था आसमान में हस्लोल बादल थे॥ जो मन को लुभाते थे। लोग अपने अपने kहंगे में सब्जी के बीच हो रहे थे॥ मेरे दिमाग में एक ख्याल आया जो हमारे पास कलम थी उसे मै थोड़ा से गड्ढा खोद कर मिट्टी में दबा दिया..जब मै उसे मतलब उस जगह को देखा तो तीन पत्ते का एक लौलीन पेड़ उसी स्थान पर लहरा था । मै बहुत ही खुश हुआ और दोस्तों को बोला की अगर यह हमारा कलम का पेड़ फल देगा तो हम तुम लोगो को एक एक कलम मुफ्त में दूगा। धीरे धीरे समय निकलता गया उस पेड़ में फूल भी आ गए , अब मै और भी सपना सजाने लगा की हमारे कलम के पेड़ में कलम उगेगे और हम उस कलम से सुन्दर सुन्दर शव्दों की माला पिरो कर अपने कविता को पहनाऊ गा। बहुत बड़ा लेखक बनूगा लोग मेरा सम्मान करेगा हमें इज्जत मुफ्त में मिलेगी॥ यही सोच कर हम बहुत ही खुश रहते थे। की अगर अधिक कलम की उत्पन्न हुयी तो मै व्यापार करूगा॥ अपने सगे सम्भंधियो को मुफ्त में बाँट दूगा। एक दिन मै खान्गे से अन्दर गया जहा मेरी माँ घर में आँगन में कड़ी थी मै उतौले पण से बोला माँ माँ मैंने कलम बोअया था उसमे फलिया लगी है । चल कर आप देखो ॥ माँ भी खुश हो करके बोले हाय मेरे बेटे कहा मेरा बेटा कलम उगा रखा है । मै भी चल के देखू माँ खान्गे में आयी तो मैंने कहा माँ यही पेड़ है । जो मै आप को बता rhaa था की मै कलम bo रखा है। माँ देखा और हंसने लगी मै सोचा मैंने जो इतनी म्हणत की है उसपर माँ हंस रही है। लेकिन माँ ने तुरंत बोला मेरे लाल ये कलम का पेड़ नहीं ये सेम का पेड़ और ये फलिया भी सेम है जिसकी सब्जी बनती है। कलम उगाया नहीं जाता बेटा कलां बनती है । इसके कारखाने होते है। मै गुस्से में आके माँ से बोला माँ तुम झूठ बोल रही हो यह मेरा कलम का पेड़ है। माँ कहा बेटा कलम कहा खोद कर गाड़े थे उस स्थान को खोद डालो तुम्हे इसका उत्तर मिल जाएगा जब मै वास्तव में उसी स्थान को खोदा मेरी कलम सुरक्षित निकली उसमे अंकुर नहीं फूटे थे॥ मै कलम तो नहीं उगा पाया लेकिन उस कलम के सहारे कितनी रचनाये रची ॥ वही कलम हमारी रचनाओ को अपने स्वरों से हमेशा सजाती है॥

शुक्रवार, 28 मई 2010

बस एक बार..



अब भेजो हो यहाँ॥ तो कुछ नाम तो kअमाने दो...


एक बार हमको इन्सान तो बन जाने दो।


हाथ दान देंगे जुबा मीठी बोल बोलेगी॥


चारो पहर खुशिया आँगन में तेरे डोलेगी॥


थोड़ा इशारा कर दो वक्त को तो आने दो॥


पैर करेगे तीरथ व्रत गंगा स्नान होगा॥


चित्रकूट में बैठ कर राम गान होगा॥


जब खिल गयी है कलियाँ..इनपे रहम तो कर दो॥


तन तरुवर करे तपस्या मेरा बड़ा भाग होगा॥


जब आप सरीक होगे आप का भी साथ होगा॥


मेरी कलम की कविता को एक बार तो सज जाने दो॥


बुधवार, 26 मई 2010

बेरामिगादा भतरा ,,,,,,,,,



ताकत ताकत भोर भइल अब॥


आवा नहीं भितरा॥


लागल बेकार बा॥


बेरामी गाडा भतरा॥


कलियन पे भवरा


नहीं बैठे देहली॥


मन के प्रितिया केहू से॥


न कहली,,


जवानी बरजोर करे॥


उडे लाग अंचरा॥


लागल बेकार बा॥
बेरामी गाडा भतरा॥


अंखिया न देखय॥


दुसरे कय सपना॥


तोहके बनौली ॥


सब कुछ अपना॥


दूर से देवरा ..ताके घघरा॥


लागल बेकार बा॥
बेरामी गाडा भतरा॥

शुक्रवार, 21 मई 2010

सहना तो पडेगा..

सहना तो पडेगा ..जब साजन तुम्हे बनाऊगी॥

अपने दर्द को भूल कर हर पल तुम्हे हसाऊ गी॥

अर्पण किया है तन को ये क्यारी हुयी तुम्हारी॥

छुपा के रखू दिल में खोली नहीं पिटारी॥

चहके तुम्हारी बतिया हाथो से उसे सजाऊगी॥

नाचेगी मेरी बिंदिया गाएगी मेर निंदिया॥

चरणों की धुल साजन मांग में सजाऊगी॥

वास्तव में भगवान् नहीं है ?

जिस प्रकार से बैज्ञानिको ने यह सिद्ध कर दिया है । की वह इंसान बना सकता है। वह उसे जीवन दे सकता है। इससे तो यही प्रमाणित होता है। की भगवान् नाम की कोई इंसान भगवान् जीव नहीं है। लोग भगवान् पर विश्वास करना छोड़ देगे। तो अनायास ही भयानक दिन देखने को मिलेगे और मानव की सभ्यताओं का अंत हो जाएगा।

वास्तव में भगवान् नहीं है?

चलो चलते आराम करे..



हम भी दीवाने तू भी दीवानी॥


चल मतवाली चाल चले॥


मौज करेगे मस्ती करेगे॥


वापस आयेगे शाम ढले॥


खुशिया होगी मौसम होगा॥


कलरव नदिया प्रभात करे॥


हम भी दीवाने तू भी दीवानी॥
चल मतवाली चाल चले॥
मौज करेगे मस्ती करेगे॥
वापस आयेगे शाम ढले॥


बंगला होगा गाडी होगी॥


चले पवन तो आह भरे॥


हम भी दीवाने तू भी दीवानी॥
चल मतवाली चाल चले॥
मौज करेगे मस्ती करेगे॥
वापस आयेगे शाम ढले॥


सपना सजाये गे अपना बनाए गे॥


सुआ बैठ पुराण पढ़े॥


हम भी दीवाने तू भी दीवानी॥
चल मतवाली चाल चले॥
मौज करेगे मस्ती करेगे॥
वापस आयेगे शाम ढले॥

गुरुवार, 20 मई 2010

दाग लगावलू माथे मा॥



ई मर्द कय महत्वाकांक्षा का तू॥


भाप न पवलू साथे मा॥


वादा कय के चम्पत भैलू॥


दाग लगावलू माथे मा॥


तू दुसरे कय बाह पकड़ लेहलू॥


हम ढर्रा तोहरी ताकत बाते॥


तोहरी सूरत बिसरत नाही॥


मनवा फंसगा घाटे मा॥


ई कौन शास्त्र मा लिखा बा जानू॥


की वादा कय के छोड़ दिया॥


मंदिर मा इतनी कसम खायलू॥


धागा बांधू हाथे मा॥


माला तोहरे नाम मय॥


जपत रहब दिन रात॥


या तव तू औबे करबू॥


या देबैय हम जान॥


ऐसे हमका दैमारु तू॥


देहिया पड़ी उचाटे मा॥



मुरहा बेटवा..

मुरहा बेटवा पैदा होतय॥

बाप कय दहिनी टूटी टांग॥

घर कय काम अमंगल होय गा॥

महतारी कय फूटी आँख॥

ऐसा असगुन भुइया परते॥

घर कय कुइया गयी सुखाय॥

गाभिन भैंस मरी सरिया मा॥

एकव तिकनम नहीं सुझाय॥

घर मा सब का सांप सूंघ गा॥

क्रोध कय कैसी जल गय आग॥