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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

चली उताने..



पनवा खैली लगवा फुलैली॥


चली उतान बजरिया में॥


दोना गाडा पकड़ के खैचय॥


संझलौका अरहरिया में ॥


लाली लगाऊ लिपस्टिक लगाऊ॥


अव पहनू पाजेब॥


चारिव पुरवा घूम के आइली॥


नरवा मा होई गय भेंट॥


खीचा तानी मा फट गय धोती॥


झरती लीये कोठरिया में॥


पनवा खैली लगवा फुलैली॥
चली उतान बजरिया में॥


छुप-छुप बोली धीरे-धीरे डोली॥


रच रच लाज शर्म सब खोली॥


रोज़ अंधेरिया मिला करा तो॥


लौके लागे अंजोरिया में॥


पनवा खैली लगवा फुलैली॥
चली उतान बजरिया में॥






गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

लागत बा करबू तू गड़बड़ घोटाला॥



जब जब आवय याद हे जनिया॥


जवानिया के दुई बूँद खून घट जाला॥


नाहक नेहिया लगौले हम तोहसे॥


लागत बा करबू तू गड़बड़ घोटाला॥


अंखिया मा चमके ला तोहरी सुरतिया॥


मनवा के भावे ला प्यार वाली बतिया॥


आंधेरवा भा गायब आइल उजाला॥


जवानिया के दुई बूँद खून घट जाला॥


माई अब पूछले का भात भाईले॥


तोहरी चमकिया कहा उड़ गैले॥


कैसे बोली बतिया लगैले हम ताला॥


जवानिया के दुई बूँद खून घट जाला॥




मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

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सेवा में,

श्रीमान उप मण्डल अधिकारी महोदय जी॥

सेक्टर - ०३ बल्लभगढ़ - फरीदाबाद।

बिषय: - मीटर रीडिंग सुधार हेतु आवेदन पत्र ।

सविनय निवेदन है । की मै प्राथी अहल चन्द सेक्टर-०३ मकान नंबर ३८७१ है। मेरा मीटर रीडिंग गलत है । पुराना मीटर रीडिंग ५७५० है। और बर्तमान मीटर रीडिंग ५८१४.३ है । और बिल मीटर रीडिंग ५९३० भेजा गया है। यह गलत रीडिंग है।

अत: आप से विनम्र निवेदन है की इस पर उचित कार्यवाही करने की कृपा करे ।

आप की अति कृपा होगी॥

प्राथी:

अहल चन्द

सेक्टर -०३

मकान नंबर ३८७१

बल्लभ गढ़ ,फरीदाबाद।

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

जमनवा इन्टरनेट कय भवा॥



जब से चला मोबाईल॥


दूर भइल अर्चानवा॥


जमनवा इन्टरनेट कय भवा॥


काकी दादी बात करय॥


बिटिया बा परदेश मा॥


चैटिंग करय बड़का कय बेटवा॥


दुल्हिन ढूढे विदेश मा॥


मोलवी चच्चा दुबई से बोले॥


बदल गवा इन्सनवा॥


जमनवा इन्टरनेट कय भवा॥


छोटकी दीदी हेलो हाय कह ॥


दियय फोन पय पप्पी॥


कहा बाटेया खाया का बबुआ॥


काहे लेत हां झप्पी॥


भौजी बोले भैया से लाया॥


गोल्ड वाला कंगनवा॥


जमनवा इन्टरनेट कय भवा॥


देर न लागे दुई मिनट मा॥


भाग के आवय सुबिधा॥


नालिश करबे भरी कचेहरी॥


होए तनिकव दुविधा॥


नेटवोर्किंग मा जुडी बा दुनिया॥


अचरज करय जहानावा॥


जमनवा इन्टरनेट कय भवा॥







बीते हुए पल...


बीते हुए पल...
हमने भी गुजार दी है॥दर्द भरी जवानी॥हमको भी याद आती है॥बीती हुयी कहानी॥करती थी बात जब वह॥कलियों से खुशबू झरती॥आँखे बड़ी अजीब थी॥मस्त हो मचलती॥अब भी संभाल रखा हूँ॥उसकी एक निशानी॥हमने भी गुजार दी है॥दर्द भरी जवानी॥उसने सजाया चमन को॥मैंने भी उसको सीचा॥आपस ताल मेल था॥शव्दों को दोनों मींजा॥अब रोता हमारा दिल है॥आगे नहीं बतानी ॥हमने भी गुजार दी है॥दर्द भरी जवानी॥नजर लगी किसी की॥य होनी को यही बदा था॥नफरत कहा से आयी॥मुझको नहीं पता था॥उजड़ा मेरा बगीचा॥दूजे पे हक़ जमा ली॥हमने भी गुजार दी है॥दर्द भरी जवानी॥

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

जब से पायलिया बाजन लागी..



जब से पायलिया बाजन लागी॥


तब से उमरिया नाचन लागी॥


माई के प्यारी बपयी कय प्यारी॥


भैया की बहना बहुते दुलारी॥


आय भवरवा जाचन लागे॥


जब से पायलिया बाजन लागी॥
तब से उमरिया नाचन लागी॥


चूमन का दौड़े ओठ के पहेलियाँ॥


मुहवा से बोले प्यारी प्यारी बतिया॥


मन मा उमंग लगा रात हम जागन लागी॥


जब से पायलिया बाजन लागी॥
तब से उमरिया नाचन लागी॥


हथवा लगावे कोमल बदनवा पे॥


कब्जा करय हमरे मंदिर जनवा पे॥


उनके हम राह ताकी संग संग चलन लागे॥


जब से पायलिया बाजन लागी॥
तब से उमरिया नाचन लागी॥


मन अकुलाय तो गले लग बोली॥


मुह से बियोगवा धीरे धीरे खोली॥


प्रेम नशा में भइल प्रेम बर्शन लागे॥


जब से पायलिया बाजन लागी॥

मेरे आँगन से कोयल कब उड़ गयी॥

मैंने ढूध किनारा शहर न मिला॥
जिंदगी ऊब करके नरक बन गयी॥
मौत आके कड़ी थी मेरे सामने॥
लगता जाने की अबतो घडी आ गयी॥
जिसको अपना बनाया बेदर्दी बने॥
ढीठ जीवन की लय से लौ बुझ गयी॥
मन का सच्चा बना कुछ छिपाया नहीं॥
मेरे आँगन से कोयल कब उड़ गयी॥

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

सजनवा शराबी हमार..



सिजिया सुतन कैसे जाऊ रे॥


दारू पीवे सजनवा॥


खटिया हिलावय॥


तकिया गिरावय॥


देहिया पकड़ के ॥


झुलवा झुलावय॥


का दय के ओहे बगदाऊ रे॥


दारू पीवे सजनवा॥


जोर-जोर बोलय॥


टटिया खोलय॥


घुप्प अन्धेरा ॥


हूवा टटोले॥


बारिष भयी बिचलाऊ रे॥


दारू पीवे सजनवा॥


कराय बरजोरी॥


सीना जोरी॥


झपटा झपटी॥


हेरा फेरी॥


हाथ पकड़ मुस्काऊ रे॥


दारू पीवे सजनवा॥





रात कटती नहीं प्रीति हटती नहीं॥

रात कटती नहीं प्रीति हटती नहीं॥
तेरे आने से महफ़िल क्यों जचती सही॥
तुम सूरत की मूर्ति बनी आज हो॥
mएरी सपनों की रानी बनी साज हो॥
तुम बताओ छुपा करके रखू कहा॥
तेरे पायल की छम छम रूकती नहीं॥
रात कटती नहीं प्रीति हटती नहीं॥
तेरे आने से महफ़िल क्यों जचती सही॥
तेरी कजरारी आँखों से मूर्छित हुआ॥
मैंने देखा न खाई कहा है कुआ॥
तुम अब जीवन आधार बन कर चलो॥
अब तो लेना ठिकाना पडेगा कही॥

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

हे गोइया रहिया निहार के चला॥

सूरज विचरे मस्त गगन मा॥

डोलन लागी भुइया॥

हंसे हिलोरे बहे बयरिया॥

नाचन लागी कुइया॥

हे गोइया रहिया निहार के चला॥

संस्कार कय डोर न तोड़ा॥

न बूडा उतिराह ॥

बिना बात के बोली न बोला॥

न कहूके घर जाह॥

रगड़ झगड़ से दूर जब रहबू॥

शांत रहे सरसुइया

हे गोइया रहिया निहार के चला॥

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

चार दिन की जिंदगी बा चार दिन का खेल ..



बुडे उतिराय रे॥


भवरिया मा नैया॥


लागत बा बूड़ जाब॥


डर लागे दैया॥


पहिले जब गलियन मा॥


होत रही चर्चा॥


बड़ा बरजोर रहे ॥


बोवत रहे मरचा॥


चौबीस घंटा ताल ठोकी॥


हिलय मढैया॥


बुडे उतिराय रे॥
भवरिया मा नैया॥
लागत बा बूड़ जाब॥
डर लागे दैया॥


चिंता सताईस॥


घुन गय देहिया॥


घर का अब तीत लागी॥


लागावय न नेहिया॥


सीधे देखात नाही॥


नौके न तरैया॥


बुडे उतिराय रे॥
भवरिया मा नैया॥
लागत बा बूड़ जाब॥
डर लागे दैया॥


चालत बेरिया अब तो ॥


बनाय लिया कमवा॥


जियरा निकल जाए॥


सड़ी जाए चमवा॥


भूल जांए चारी दिन मा॥


चलत बेचकैया॥


बुडे उतिराय रे॥
भवरिया मा नैया॥
लागत बा बूड़ जाब॥
डर लागे दैया॥




शनिवार, 10 अप्रैल 2010

क्या जज्बात है आप के..

इतना न दूर जाना ...

कही पीछे रहे तो हम॥

रास्ता भटक हम जायेगे॥

भरता रहेगा गम...

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पकड़ा है हाथ तेरा॥

दूरी करेगे कम॥

हंस के पायलिया बोले॥

मुझमे बड़ा है दम॥

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ऐसा कभी न करना॥

यह रोता रहे यूं तन॥

सौपा तुझे ये जीवन॥

सच्चा है मेरा मन॥

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पर्वत से लड़ हम जायेगे॥

आने न देगे आंच॥

तुम हंस के हमें बुलाओ॥

लाये गे हम बरात॥

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

समर भूमि में कभी नहीं मै झुकाऊ माथ॥

रामायण के पात्र हे॥ हे महाभारत के वीर॥
कौन घडी पैदा हुए क्या क्या रचना कीं॥
बदले सारे नियम कर्म सच्चाई हुयी हसीन॥
छिड़ी मार हम न बने न हम बने कुटीर॥
रहम करम कुछ तो करो हम है तेरे अधीन॥
ध्यान लगाऊ तम्हे हम तुम मेरे जगदीश॥
जब घटना की घंटी बजे तुम रहो हमारे साथ॥
समर भूमि में कभी नहीं मै झुकाऊ माथ॥

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

गिरी आन्स गद गद भुइया पे॥


चार दिन कय चंचल बतिया॥

जीवन भर अब नहीं भुलात॥

न तो देखे ऊपर नीचे॥

न तो देखे उंच ढलान॥

याद जवानी अब आवे तो॥

बड़ा जोर जियरा चिल्लान॥

गिरी आन्स गद गद भुइया पे॥

राह भयानक लगी देखाय॥

बतिया काटे खट्कीरवा जस॥

रही रही के अब जिव मत्लाय॥

भुर्कुश देखिया होय गे बाटे॥

अंखिया से कुछ न फरियाय॥

घटत उमरिया टे होई जाबय॥

सब जाए सपना बिथराय॥