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मंगलवार, 29 जून 2010

सफ़र मा पिया..

खुल गय गठरिया ॥

सफ़र मा पिया॥

मोच खय गय करिहैया ॥

रगड़ मा पिया॥॥

बगल वाली सीट पे रहेली अकेली॥

साथ नइखे रहली हमरे संग के सहेली॥

रात दुई लैका जलाय देखले दिया॥

मोच खय गय करिहैया ॥
रगड़ मा पिया॥॥

पहले तो मैंने अकड़ करके बोली॥

उनके मुहवा से छुटेला ठिठोली॥

गर्मी शरिरिया से निकला धुँआ॥

मोच खय गय करिहैया ॥
रगड़ मा पिया॥॥

धीरे धीरे नीक लाग ॥ अचरज भा मनवा॥

हौले हौले खोले लागे हमरा अचरवा॥

बोले होय्जा राज़ी खिलौबय पुआ॥

मोच खय गय करिहैया ॥
रगड़ मा पिया॥॥

सोमवार, 28 जून 2010

मै आत्म ह्त्या करने जा रही हूँ..

मुझे क्या पता था । की जिस पथ पर मै चल रहा हूँ। उस पथ पर एक सुंदरी मेरे साथ साथ चल रही है॥ और मै अपनी दिशा को चलता गया कुछ दूर जाते जाते मेरे कानो को पायल की धुन सुनायी देने लगी॥ जो मुझे चंचल करने लगी॥ फिर भी मै आगे को बढ़ता गया। एक सुन्दर बागे के समीप पहुच कर मै रूका और पीछे की तरफ देखा तो अचंभित रह गया । एक सुन्दर सुंदरी मेरे समीप कड़ी थी। मै पूछ बैठा की आप कौन है और कहा को जा रही है॥ तब वह सुंदरी कहने लगी की मै सुविधा हूँ। मै अब इस समय सामने वाली नदी में समाने जा रही हूँ। क्यों की अब महगाई की मार को मै नहीं झेल सकती लोगो को उचित सुविधा देने में समर्थ हूँ। इस लिए मै अब आत्म ह्त्या करने जा रही हूँ।

रविवार, 27 जून 2010

दौलत का भूखा नहीं..

दौलत का भूखा नहीं ॥
न तो करी विरोध॥
जो ममता से मिल गया॥
वही हमारा जोग॥
न तो बोली कटुक बचन॥
न तो शांत सुभाव॥
न तो विद्दा मा पढ़ी॥
न तो तेई सुझाव॥
चार दिना की जिंदगी मा॥
चौविस होय हलाल॥
चौविस को फेकन गए॥
पंडा मिला दलाल॥
धन कय पुतकी छीन लिया॥
मै खोजत फिरता नाव॥

शनिवार, 26 जून 2010

गोरे गोरे गाल..

गोरे गोरे गाल तुम्हारे॥

कजरारी अंखिया॥

चलती जब बीच में तो ॥

हंसती है सखिया॥

छुपा के चेहरा चलती हो कही भूल न हो जाए॥

नज़रे न टकरा जाए जगे प्रेम की माया ॥

भयानक याद न आये॥

प्यारे प्यारे होठ तेरे॥

पतली कमारिया॥

चलती हो धीरे धीरे॥

बजती पयालिया॥

शूट सलवार पे॥

फिसले अंगुरिया॥

मेहदी लगाती तो ॥

सजती हथेलिया॥

लम्बे लम्बे बाल तेरे॥

खिलती फुलझडिया॥

हंसती तो फूल गिरे॥

चमके शरिरिया॥

पडरू कय मेहरारू..

टिपिर टिपिर बात करय॥

पहिन के नथुनिया॥

बड़ी चमकदार बा॥

पडरू कय मेहरिया॥

बात करय लागे तो देवार लग जाए॥

नानका बेटाव्ना खटिया पे चिल्लाय॥

बड़ी बलखात बा ओहके कमरिया॥

टिपिर टिपिर बात करय॥
पहिन के नथुनिया॥
बड़ी चमकदार बा॥
पडरू कय मेहरिया॥

हंस हंस के अंखिया से किले इशारा॥

कहे रात आया खोलव किवाड़ा॥

बड़ी चटकोर लागे ओढ़े जब ओढनिया॥

टिपिर टिपिर बात करय॥
पहिन के नथुनिया॥
बड़ी चमकदार बा॥
पडरू कय मेहरिया॥

सोहदा पडारुवा बाटे करय नाही खेला॥

झुलावे न झुलवा देखावे न मेला॥

देखय मा ज्यादा लागे ओहकी उमारिया॥

शुक्रवार, 25 जून 2010

कई लडकिया पटा लिए..

चढ़ा बुखार जवानी का तो॥
सोलह चक्कर लगा लिए॥
फिर तनहा तनहा नहीं घूमे॥
कई लडकिया पटा लिए॥
कोई शूट में कोई जींस में ॥
कोई मोडल दिखती॥
कोई हिंदी कोई अंग्रेजी॥
कोई फारसी लिखती॥
हिंदी वाली सूरत पे॥
अपनी जान हम फ़िदा किये॥
फिर तनहा तनहा नहीं घूमे॥
कई लडकिया पटा लिए॥
हिन्दुस्तानी प्यारी गुडिया॥
मेरे मन को भा गयी॥
छुप छुप को मिलने से॥
बाहों में मेरे आ गयी॥
उसकी अदाओं पे फ़िदा मेरा दिल॥
सब कुछ हम कुर्बान किये॥
फिर तनहा तनहा नहीं घूमे॥
कई लडकिया पटा लिए॥

गुरुवार, 24 जून 2010

आप भी तो झूलिए..

हाथो की लकीरे प्रिये कहती है क्या? सुनिए॥

तारीफ़ करती है आप की आप भी कुछ बोलिए॥

कहती है साजन तेरा बड़ा समीप समुन्दर है॥

अपने में समेट लेता दिल को वह अन्दर है॥

आप के होठो की हंसी बन जाती एक पहेली॥

पहले दिन की बात याद kar हसती मुझपर मेरी सहेली॥

मै प्यार के झूले में बैठी आप भी तो झूलिए॥

जवानी कय दाह बुझाय आवा..

पहली बार जब नैहर छोड़ा॥

ससुरे मा जाय पगुराय आवा॥

चुनरी मा दाग लगाय आवा॥

सुजिया पे उधम मचाय आवा॥

सासू कय गोड़ दवाय आवा॥

देवरा से अठिलाय आवा॥

चुनरी मा दाग लगाय आवा॥
सुजिया पे उधम मचाय आवा॥

पहिला दिन बीता जोगा छेमा मा॥

रतिया मा हलचल मच गयी॥

बंद केवाडिया ताकत रहली..

माथे पे तिलक लगाया आवा॥

चुनरी मा दाग लगाय आवा॥
सुजिया पे उधम मचाय आवा॥

रहन सहन सब बूझत रहली॥

आँगन भीतर के चक्कर मा॥

देवरा से नैना चारी होय्गे॥

रस भरी नयन से टक्कर मा॥

मन तसल्ली अब कर बैठा ॥

आधे मा नाम लिखे आवा॥

चुनरी मा दाग लगाय आवा॥
सुजिया पे उधम मचाय आवा॥

जवानी कय दाह बुझाय आवा..

सोमवार, 21 जून 2010

अब तो राहत दे दो राम॥

तप के देहिया कलुयी पडिगे॥

टुटही बखरी माँ लगे घाम॥

अब तो राहत दे दो राम॥

पूरा जयेष्ट बीत गइल बा॥

अब तो लाग आषाढ़ ॥

तन से हमारे आग है निकरत॥

चटके लाग कपार॥

अब तो राहत दे दो राम॥

पशु पक्षी सब ब्याकुल भागे॥

खड़े पेड़ सब पानी मांगे॥

नदिया तरसे अब आपनी का॥

सूखा पडा तालाब ॥

अब तो राहत दे दो राम॥

पडाने वाली पूड़ी॥

दैया रे दैया॥ गरम गरम लागे॥

पडाने वाली पूड़ी॥

वह पूड़ी को ससुर जी खाया॥

सासू के हमारे फट गयी मूड़ी॥

दैया रे दैया॥ गरम गरम लागे॥
पडाने वाली पूड़ी॥

उस पूड़ी को जयेष्ट जी ने खाया॥

जेठानी के हमारे आय गयी जूडी॥

दैया रे दैया॥ गरम गरम लागे॥
पडाने वाली पूड़ी॥

उस पूड़ी को देवरा जी ने खाया॥

देवरानी जी करती हां हुजूरी॥

दैया रे दैया॥ गरम गरम लागे॥
पडाने वाली पूड़ी॥

उस पूड़ी को सिया जी खाया॥

हमसे बोले चलो मंसूरी॥

दैया रे दैया॥ गरम गरम लागे॥
पडाने वाली पूड़ी॥

मै इतिहास लिखा छू मंतर का..

मै इतिहास लिखा छू मंतर का॥

थोड़ा बाड़ा कुछ अन्दर था॥

मै मानव सर का ताज बना॥

वह बेईमानी का खंजर था॥

मै सच की रीती ओढ़ लिया॥

वह दारू पी कर आटा था॥

भोले बाबा के मंदिर पे॥

शिव जी को बहुत गरियाता था॥

मै जग वालो का बना हितैषी॥

वह महा मुलीश कुकर्मी था॥

मै हाथ जोड़ कर काम चलाऊ॥

वह खुदगर्जी हठधर्मी था॥

मै सफल किया जीवन अपना॥

वह पड़े पड़े चिल्लाता है॥

अंतिम क्षण में भगवन को॥

मौत की भीख लगाता है॥

शुक्रवार, 18 जून 2010

राहुल गाँधी.. जी.. जियो हज़ारो साल..

तुम बनो हमारे रक्षक॥

भ्रष्टाचार को ख़त्म करो॥

रहे न कोई भक्षक॥

रहे न कोई भक्षक

सफलता कदम चूमेगी॥

हर दलित किसानो के घर फिर से॥

खुशिया झूमेगी॥

सजेगी दुनिया ॥ हँसेगी मुनिया॥

आप तूती बोलेगी...

barsegaa saawan hansegaa gagan॥

rituyo pushp barsaayegi॥

aashaa lagaaye sab baithe hai॥

suhagin geet gaayegi॥

तुम हमारे bhaarat के taaz ho॥

tumhi to desh के youraaj ho॥

राहुल गाँधी.. जी.. जियो हज़ारो साल..

अहंकार..दोनों का






लड़की:



करा न बवाल हिया होए पिटाई॥



दरोगा बड़ा टाईट बा कहा तो बोलाई॥



लड़का:



पापा हमारे डी.ऍम बाटे करवय ठिठाई॥



सीधे साधे मान जा करा न मोटाई॥



लड़की:



भैया हमरे पत्रकार॥ मामा पेशकार है॥



जीजा हमरे मंत्रीं के बहुत बड़ा यार है॥



साड़ी अंगडाई तोहरी जाए भुलाई॥



लड़का:



दीदी हमरे जज बाटी जीजा कल्लाक्टर॥



हमरा बडका भैया भइल इंस्पेक्टर॥



आना कानी जिन करा ॥



कहा हथवा लगाई॥











कितनी मीठी बोली है...


प्यारी तेरी मीठी बोली॥

dikhati कितनी काली है॥

मधुर स्वरों से गूंजे बगिया॥

तेरी बात निराली है॥

कितने ऋषि मुनियों को तूने॥

प्यारा गीत सुनाया है॥

कितनी वियोगिनियो के उपवन में॥

प्यारा फूल खिलाया है॥

यौवन की मद मस्त कली अब॥

औरो से इठलाती है॥

प्यारी तेरी मीठी बोली॥
dikhati कितनी काली है॥

शव्दकोश में तेरी उपमा॥

सब कवियों ने गाया है॥

सुन्दर सलिल बानी तेरी॥

शम्भू के मन भाया है॥

तभी तो हम सुन्दर शव्दों में॥

तेरी भाषा लिख डाली है॥

प्यारी तेरी मीठी बोली॥
dikhati कितनी काली है॥

ashaay

उंगली पकड़ के चलना सिखाया॥

उस गली के मोड़ तक॥

इस उम्र में छोड़ गए मुझे॥

इस नदी के छोर पर॥

तेरे ऊपर थी तमना ओ मेरे प्यारे लाडले॥

ढ़लती उम्र का सहारा तू बनेगा बावले॥

लेकिन तूने ओ कर दिखाया ॥

जो हर वंश कर सकता नहीं॥

माँ तो तेरी चल बसी बाप लगता हूँ नहीं॥

गुरुवार, 17 जून 2010

नहीं करूगा तुमसे शादी..

लड़का: नहीं करूगा तुमसे शादी॥

मुझे चाहिए अभी आजादी॥

तकाशेर बिकू //

कलियों को चूसा करू॥

लड़की: तुम निकले सनम खुदगर्जी॥

वापस आना तुम्हारी मर्ज़ी॥

मै तकाशेर न बिकू॥

घुट घट के जिया करू॥

लड़का: मै खोज रहा हूँ कलियाँ॥

जिसमे खिलाती फुल्झादिया॥

सुबह शाम मेरी राह जुहारे॥

उसी संग प्रीत करू॥

लडकी: मुझमे क्या है कमिया॥

जब हंसती गिरती फुल्झारिया॥

सांझ सकारे प्रेम पुकारे॥

तेरे सहारे बिहार करू रे॥

जागे नन्कौना..

रात अंधियारिया चटकोर जिन बोला॥
जागे नन्कौअना बाह न सिकोडा॥ जागे नन्कौना ॥
कहत अही मान जा काटा न चकोटी॥
गलवा का टोय के पकड़ा न चोटी॥
तोहे कसम सूना तो ॥ मन न चटोला॥ जगे नन्कौना
मौक़ा के ताड़ मा हमें फुशिलावा॥
मक्खन लगावा क्रीम खिलावा॥
सूना तानी देखा तो॥ नाचय लाग लोटा॥
जागे नन्कौअना बाह न सिकोडा॥ जागे नन्कौना ॥
आज नहीं आने दिन करत आही वादा॥
जा खेते सोवा छोड़ दिया आशा॥
अबतो कर्म ठीक करा॥
हुआ न तट्कोला ॥
जागे नन्कौअना बाह न सिकोडा॥ जागे नन्कौना ॥

समय निकल जाएगा..

लड़का: लगे में खराश है ॥

नहीं लगती प्यार है॥

मुझे अब सोने दो यही अरदास है॥

लड़की: सावन की बहार है॥

पहली बरसात है॥

आओ साथ भीग जाए॥

यही अरदास है॥

लड़का: आज मंगल वार है ॥

मेरा उपवास है॥

मुझसे रहो दूर तुम

यही सही बात है॥

लड़की: आज शुभ रात है॥

नैन बिछालात है॥

आ जाओ मेरे पास तुम ॥

मानो मेरी बात है॥

लड़का: आज सनिवार है॥

ब्रम्हाचारी वार है॥

पास नहीं मेरे आना॥

तुम्हे लगे पाप है॥

बुधवार, 9 जून 2010

भीख दे दो.....

मै इस लिए भीख नहीं मांग रहा हूँ की मै अपना पेट भरू या अपने परिवार वालो का ऐसी बात नहीं है । मै इस लियी भीख मांग रहा की हमें एक संस्था खोलनी है जिसमे गरीब होनहार लूले लंगड़े और भी रोगी बच्चे पढ़ सके इस लिए मै आप लोग से भीख मांग रहा हूँ की मै इतना बड़ा अमीर नहीं हूँ की एक संस्था खोल सकू।

सूर्य ने हंस के कहा..


सूर्य चंदा भी हंस करके कहने लगे॥

हाथ हमसे मिलाओ तो हो फ़ायदा॥

सजा देगे बगिया खिला देगे कलियाँ॥

चहके गी चिड़िया ख़ुशी होगा मलिया॥

बात हमसे बताओ तो हो फ़ायदा॥

भूल जाओगे आदत जो है बेरुखी॥

तेरे आँचल में भर दूगा साड़ी ख़ुशी॥

जांच हमसे कराओ तो हो फ़ायदा॥

प्रातः उठ करके सुमिरन हमारा करो॥

गन्दी आदत से हरदम किनारा करो॥

बात हमसे बनाओ तो हो फ़ायदा॥

शेर...



मै चंडाल किस्म का प्राणी हूँ॥


सबसे बड़ा हरामी हूँ॥


मै भक्षण करता हूँ जीवो को॥


काल का काल सुनामी हूँ॥


मार झपाटा करू शिकार...


मेरी नहीं कोई मिशाल ॥


मेरी आवाजो को सुन करके॥


हाथी बंद करता चिघ्घार॥


हर तजुर्बा मालुम मुझको...


मै सबसे बड़ा खिलाड़ी हूँ...


जोगी बाबा..


फुर्सत के छड में ॥

संकट आटा॥

महा दरिद्र बन जाता हूँ॥

अपनी धुन पे अपनी ढफली॥

द्वारे द्वारे बजाता हूँ॥

कोई देता है दान दक्षिणा॥

कोई कोई धकियाता है॥

मै मतवाला जोगी बन करके॥

घर घर अलख जगाता हूँ॥

राम नाम अब कोई नहीं सुनता॥

न तो आदर सत्कार करे॥

भूखा प्यासा दर दर घूमू॥

सब मेरा उपहास करे॥

फिर भी हमको फर्क न पड़ता॥

जोगी रूप सजाता हूँ॥

अपनी धुन पे अपनी ढफली॥

द्वारे द्वारे बजाता हूँ॥

सच्चा सेवक..


न पछताता सत्कर्मो पर॥

सत्य को नहीं डीगाता हूँ॥

चलता हूँ सच के पथ पर मै॥

सच्चाई की अलख जगाता हूँ॥

हमको पता है थोड़े दिन में॥

मुझपे लांछन लग जाएगा॥

भ्रष्ट हुए जो ऊपर के अफसर॥

गली गली दौडाए गे॥

फिर भी सच का साथी बन कर॥

पर्वत पर चढ़ जाऊगा॥

जो भ्रस्थाचारी भरे हुए है॥

उनका किला गिराऊगा॥

मै एक साधारण सेवक॥

सच्चाई की तिलक लगाता हूँ॥

चलता हूँ सच के पथ पर मै॥
सच्चाई की अलख जगाता हूँ॥

सोमवार, 7 जून 2010

वावली बनी तुम्हारी अक्ल..

चटका शीशा देख कर ॥

मै भी हो गयी दंग॥

प्रियतम की उस पीर में॥

छोड़ दिया था संग॥

छोड़ दिया था संग॥

बिमारी से जूझ रहे थे॥

चार पायी पर पड़े पड़े॥

तन को भीच रहे थे॥

कभी किया न ऐसा काम॥

मल मूत्र रोज़ बहाऊ॥

बदबू तन से आ रही थी॥

फिर उन्हें नहलाऊ॥

सूझ बूझ की रुकी पहेली॥

चढ़ गयी मुझको भंग॥

रोज़ रोज़ के दात्किर्रा से॥

हमहू होय गयी तंग॥

कूद फंड के नैहर आयी॥

बोली मरो अपंग॥

ड्योढ़ी पर जैसे मै पहुची॥

माता बोले ब्यंग॥

तेरी जीवन की रसरी खुल गयी॥

अब सूझे गा सारा छंद॥

वावली बनी तुम्हारी अक्ल॥