सोमवार, 31 मई 2010
कलम का पेड़..
शुक्रवार, 28 मई 2010
बस एक बार..
अब भेजो हो यहाँ॥ तो कुछ नाम तो kअमाने दो...
एक बार हमको इन्सान तो बन जाने दो।
हाथ दान देंगे जुबा मीठी बोल बोलेगी॥
चारो पहर खुशिया आँगन में तेरे डोलेगी॥
थोड़ा इशारा कर दो वक्त को तो आने दो॥
पैर करेगे तीरथ व्रत गंगा स्नान होगा॥
चित्रकूट में बैठ कर राम गान होगा॥
जब खिल गयी है कलियाँ..इनपे रहम तो कर दो॥
तन तरुवर करे तपस्या मेरा बड़ा भाग होगा॥
जब आप सरीक होगे आप का भी साथ होगा॥
मेरी कलम की कविता को एक बार तो सज जाने दो॥
बुधवार, 26 मई 2010
बेरामिगादा भतरा ,,,,,,,,,
शुक्रवार, 21 मई 2010
सहना तो पडेगा..
सहना तो पडेगा ..जब साजन तुम्हे बनाऊगी॥
अपने दर्द को भूल कर हर पल तुम्हे हसाऊ गी॥
अर्पण किया है तन को ये क्यारी हुयी तुम्हारी॥
छुपा के रखू दिल में खोली नहीं पिटारी॥
चहके तुम्हारी बतिया हाथो से उसे सजाऊगी॥
नाचेगी मेरी बिंदिया गाएगी मेर निंदिया॥
चरणों की धुल साजन मांग में सजाऊगी॥
वास्तव में भगवान् नहीं है ?
जिस प्रकार से बैज्ञानिको ने यह सिद्ध कर दिया है । की वह इंसान बना सकता है। वह उसे जीवन दे सकता है। इससे तो यही प्रमाणित होता है। की भगवान् नाम की कोई इंसान भगवान् जीव नहीं है। लोग भगवान् पर विश्वास करना छोड़ देगे। तो अनायास ही भयानक दिन देखने को मिलेगे और मानव की सभ्यताओं का अंत हो जाएगा।
वास्तव में भगवान् नहीं है?
चलो चलते आराम करे..
हम भी दीवाने तू भी दीवानी॥
चल मतवाली चाल चले॥
मौज करेगे मस्ती करेगे॥
वापस आयेगे शाम ढले॥
खुशिया होगी मौसम होगा॥
कलरव नदिया प्रभात करे॥
हम भी दीवाने तू भी दीवानी॥
चल मतवाली चाल चले॥
मौज करेगे मस्ती करेगे॥
वापस आयेगे शाम ढले॥
बंगला होगा गाडी होगी॥
चले पवन तो आह भरे॥
हम भी दीवाने तू भी दीवानी॥
चल मतवाली चाल चले॥
मौज करेगे मस्ती करेगे॥
वापस आयेगे शाम ढले॥
सपना सजाये गे अपना बनाए गे॥
सुआ बैठ पुराण पढ़े॥
हम भी दीवाने तू भी दीवानी॥
चल मतवाली चाल चले॥
मौज करेगे मस्ती करेगे॥
वापस आयेगे शाम ढले॥
गुरुवार, 20 मई 2010
दाग लगावलू माथे मा॥
ई मर्द कय महत्वाकांक्षा का तू॥
भाप न पवलू साथे मा॥
वादा कय के चम्पत भैलू॥
दाग लगावलू माथे मा॥
तू दुसरे कय बाह पकड़ लेहलू॥
हम ढर्रा तोहरी ताकत बाते॥
तोहरी सूरत बिसरत नाही॥
मनवा फंसगा घाटे मा॥
ई कौन शास्त्र मा लिखा बा जानू॥
की वादा कय के छोड़ दिया॥
मंदिर मा इतनी कसम खायलू॥
धागा बांधू हाथे मा॥
माला तोहरे नाम मय॥
जपत रहब दिन रात॥
या तव तू औबे करबू॥
या देबैय हम जान॥
ऐसे हमका दैमारु तू॥
देहिया पड़ी उचाटे मा॥
मुरहा बेटवा..
मुरहा बेटवा पैदा होतय॥
बाप कय दहिनी टूटी टांग॥
घर कय काम अमंगल होय गा॥
महतारी कय फूटी आँख॥
ऐसा असगुन भुइया परते॥
घर कय कुइया गयी सुखाय॥
गाभिन भैंस मरी सरिया मा॥
एकव तिकनम नहीं सुझाय॥
घर मा सब का सांप सूंघ गा॥
क्रोध कय कैसी जल गय आग॥