avadhi poem/geet
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गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009
महक मुस्कान बबुनी॥
काहे छोडू महक मुस्कान बबुनी॥
हमके बुझत बा लेबू तू जान बबुनी॥
लौकल सुरातिया दीमाकवा में घूमे॥
लमहर लमहर बलवा मनवा में झूमे॥
दिलवा में आवा तूफ़ान बबुनी॥
रतिया में आके हमके जगौलू॥
प्रेम वाली तीनो बतिया बताउलू॥
चला भाग चली बलिया सिवान बबुनी॥
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