नींव हमारी हील चुकी है॥
इतना बोझ न ढो पायेगे॥
तन का परुष टूट चुका है॥
उस पथ पर न जा पायेगे॥
जहा पर बैठा श्च का साथी॥
थाल सजाये आरति की..
आतुर hai स्वागत karane को..
मेरे karmo के स्वारथ की
अपने कर्मो का फल मिलेगा॥
नैन मेरे फ़िर झुक जायेगे॥
(चिंता से यह बल घटा॥
चतुराई से हो गया छीड़॥
बुरी सांगत का असर पडा जो॥
आधी उमर में हुआ बिलीन॥
लगता है अबकी पुरुवा में॥
आधी कमर से झुक जायेगे..)
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