चार दिन कय चंचल बतिया॥
जीवन भर अब नहीं भुलात॥
न तो देखे ऊपर नीचे॥
न तो देखे उंच ढलान॥
याद जवानी अब आवे तो॥
बड़ा जोर जियरा चिल्लान॥
गिरी आन्स गद गद भुइया पे॥
राह भयानक लगी देखाय॥
बतिया काटे खट्कीरवा जस॥
रही रही के अब जिव मत्लाय॥
भुर्कुश देखिया होय गे बाटे॥
अंखिया से कुछ न फरियाय॥
घटत उमरिया टे होई जाबय॥
सब जाए सपना बिथराय॥
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