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शुक्रवार, 26 मार्च 2010

धीरे धीरे बोला॥


अंजोरिया मा राजा॥
केवाडिया न खोला॥
देखाय जाए घाँघरा ॥
धीरे धीरे बोला॥
ऊ घाँघरा जब सासू देखिहय॥
लजाय जाए आचरा॥
धीरे धीरे बोला॥
ऊ घाँघरा जब नंदी देखिहय॥
करवाय देइहय लाफडा॥
धीरे धीरे बोला॥
ऊ घाँघरा जब देवर देखे॥
बिछे देये चादरा ॥
धीरे धीरे बोला॥

सोमवार, 22 मार्च 2010

अब थोड़ी से मुस्कान दे दो॥

रूठ कर क्यों बैठे हो टूटे दिल॥

हमसे भी दो बाते कर लो॥

सूखा है समंदर तपिस बढ़ी॥

हे मेघ राज बरसात कर दो॥

हरियर क्यारी हो जायेगी॥

कलियों का खिलाना जरी होगा...

फिर भवरे मचलते आयेगे॥

बस थोडा सा उपकार कर दो॥

हम आस लगाए बैठे है॥

तुम मांग सजाओ गे मेरी॥

सोलह सिंगर पहन के निकलू॥

सकुचा जायेगे समय सहेली॥

अब देर न कर रुठन वाले॥

अब थोड़ी से मुस्कान दे दो॥

रविवार, 21 मार्च 2010


कहते है की पुराने समय के जानवर भी बोलते थे॥ यह एक समय की बात है एक राजा था उसके तीन रनिया थी॥ लेकिन यह राजा का दुर्भाग्य था की उन तीन रानियों से एक भी औलाद नहीं पैदा हुयी। राजा बड़े चिंता में रहते थे। की हमारे राज्य का उतराधिकारी कौन बनेगा। एक दिन राजा को एक महात्मा जी मिले । राजा ने अपना दुखड़ा मुनिवर को सुनाया। तब मुनिवर ने कहा की हे राजां आप को पुत्र सुख तो लिखा है और यह भी लिखा है । की आप के एक ही औलाद होगा। और तीस रनिया तथा ३० पोते होगे। लेकिन आप को एक बिल्ली से शादी करना पडेगा। राजा को यह बात नागवार लगी । राजा वहा से उठ के चल दिए और मुनिवर भी चले गए । जब राजा को पुत्र की चिंता अधिक होने लगी तो लोगो के कहने पर राजा ने बिल्ली से शादी करने का निर्वे लिया। एक बिल्ली थी जो हमेशा पूर्णिमा को गंगा स्नान करने जाती थी और गंगा माँ से एक ही बार मांगती थी। की हे गंगे माँ हमारे एक लड़का पैदा हो और तीस बहुए और तीस पोते हो। राजा की शादी उसी बिल्ली से हो गयी आखिर कार बिल्ली गर्भवती हो गयी ये बात राजा को रानियों के द्वारा पता चला। तब राजा ने कहा की चलो ठीक है। तुम लोगो को तो कुछ होने वाला नहीं है चलो बिल्ली को तो गर्भ ठहर गया॥ ये बात रानियों को बुरी लगी जब बिल्ली को बच्चा देने का समय नजदीक आ गया तो । रानियों ने कहा की आप को बच्चा ऐसे नहीं होगा आप चूल्हा में सर को छुपा लो। बिल्ली ने वैसे ही किया॥माँ गंगे के आशीर्वाद से बिल्ली se एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ लेकिन रानियों ने चतुराई से बालक को घर के पास कुए में डाल दिया॥ और बिल्ली को बता दिया की बिल्ली के बिल्ली के बच्चे ही जन्म लेगे वे भी मरे थे । जो हम लोगो से फिकवा दिया । बिल्ली बेचारी जानवर तो थी ही वह अपना दुःख दर्द किससे कहती । लेकिन वह हमेशा गंगा स्नान करती थी। धेरे पांच साल हो गए एक दिन किसी बालक के हंसने की आवाज कुए से सुनाई दी रानी ने कुए में झंका तो देखा की ५ साल का लड़का कुए के अन्दर खेल रहा है। वह सीधे कोपभवन में पहुची और लेट गयी ये बात राजा को पता चली की रानी तो कोप भवन में है। राजा देर न करते हुए कोपभवन में पहुचे।जब राजा ने रानी से कारन पूछा तो रानी ने कहा की आप सामने जो कुआ है। उसे भठवा दो । रजा ने बिना सोचे ही बोले ठीक है। सुबह राजा ने अपने नौकरों को आज्ञा दे दी की कुआ को भाट दिया जाय (पहले के जमाने में अगर किसी को हलाल करना मरना है तो उसे एक एक दिन पहले ही बता दिया जाता है॥) कुआ राजा की बुधि पर हंसा और लडके को समीप में रहने वाली कुतिया को दे दी॥ अब कुतिया भी ५ साल तक लडके का पालन पोषण किया एक दिन दूसरी रानी ने लडके को कुतिया के पास देख लिया फिर क्या था रानी ने पहली रानी की तरह किया लेकिन यह माजरा कुआ जैसे नहीं था राजा ने कुतिया को मारने का निमंत्रण भेज दिया अब कुतिया वहा पहुची जहा घोड़े रहते थे। कुतिया ने घोड़े से निवेदन किया । ५ साल तक कुआ और ५ साल तक मै इस बालक की परिवरिश किया अब समय आप को आ गया है। ५ साल तक आप इस लडके की देख भाल करे समय आने पर वक्त बताएगा की आगे क्या होगा। घोड़ा तुरंत राज़ी हो गया और लडके का पालन पोषण करने लगा। धीरे धेरे समय बाटता गया और एक दिन तीसरी रानी की नज़र की लडके पर पद गयी वह भी अन्य रानियों की तरह कोपभवन में जा पहुची ये बात राजा को पता चली तो राजा ने कहा की अब किसको मारने का हुक्म देना है। रानी ने तुरंत कहा घोड़े को। राजा ने बिना समय गवाए बिना सोचे समझे घोड़े को भी निमंत्रण भेज दिया । घोडा वेग में आया और लडके को लेकर्के रात में फुर्र हो गया। अब घोडा भागते भागते सातवे आसमान के तीसरे टापू पे जा पहुचा जहा पर बीरन जगह थी और ७ घर कुम्हार के थे। वही पर रूका अब तो लड़का भी समझदार था वह कुम्हार से बोला की मै आप की सेवा करूगा आप के बच्चो की देख भाल करूगा। आप हमें अपने यहाँ रहने दीजिये घोड़ा घूम घूम के चरता और मस्त रहता था। कुम्हार अपना काम करता था एक दिन की बात है दिवाली का समय था कुम्हार और कुम्हारिन अपने जजमानी में जा रहे थे तो जाते समय लडके को बोल करके गए थे की ये तीस नंदवा है। इसे रंग देना और बच्चा रोने न पाए कही इधर उधर मत जाना। लडके ने बोला ठीक है।अब कुम्हार और कुम्भाहरिन के जाने के बाद जब लड़का नंदवा रंगने के लिए रंग लेके आया तो पानी नहीं था और पानी कहा से लाया जाता है उसे पता भी नहीं था। नदी दूर पर थी अगर वह पानी लाने जाता तो बच्चे को कुछ भी हो सकता था इस लिए उसने सोचा अब क्या करे उसके मनमे एक विचार आया की अंदावा रंगा ही है, तो पानी ही चाहिए वह पेशाब करके तीसो नंदवा रंग दिया। उसके दुसरे दिन कुम्भर ने नंदवा राजा के घर भेज दिया राजा के तीस बेतिया थी दिवाली बीत जाने पर तीसो ने नंदवा की दियाली फोड़ कर खा लिया उसके नौ महीने बाद तीसो के एक एक लड़का पैदा हुआ अब राजा ने सोचा की अगर एक दो बेतिया बदचलन हो सकती है लेकिन तीसो तो नहीं हो सकती यह भगवन की कृपा ही है।राजा ने बड़े आनंद मन से अपने लडकियों के बच्चो का बारहव करने का निश्चय किया । और पूरे नगर मेंडुग्गी पिटवा दिया की परसों हमारे घर में बारहव है। गाँव का कोई सदस्य बाकी न रहे सब हमारे घर में आके खाना खायेगे। समय आया और लोग खाना खाने लगे तथा राजा का खुफिया तंत्र यह पता लगाने में जुटा था की कौन नहीं आया है। लोगो को नगर से ढूढ़ करके राजा के घर पर लाते थे। खाने के लिए अब कुंभार के घर पर गए तो पता चला की यह लड़का नहीगया था। बल्कि कुम्भारिन कहने लगी की हम इसके लिए खाना लाये है। यह घर पर ही खा लेना लेकिन सैनिक नहीं माने और लडके को अपने साथ ले गए.समय ज्यादा हो गया था। लोग खा के चले गए थे अब राजा की लडिया ही बाकी थी तो लोगो ने कहा के ही लड़का बचा है.इसे आँगन में खाना खिला दो।जब लड़का आँगन में खाना खाने के लिए गया तो । १२ दिन के तीसो बालन खुद चल के आँगन में आ गए और उसका कंधा पकड़ लिए । अब लोदो के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। राजा बड़ा ही संस्कारी प्रतापी था। वह समझ गया की ये सब भोले की महिमा है। लड़का भी अचम्भे में पद गया। सब पूछने लगे की क्या माजरा है। अब लड़का भी समझ गया था की तब उसने बोला की आप हे राजन ॥ आप अपने लडकियों से पूछे की इन्होने जो नंदवा मैंने भेजा था उसे खा तो नहीं लिया था तब सभी लडकियों ने हां में हां मिला दी॥ तब वह बताया की पानी न मिलाने की वजह से मैंने कैसे इसे रंगा था। तब राजा ने पूछा की आप कहा के रहने वाले हो। तब तक घोड़ा भी पहुच गया सीधे आँगन में घोड़ा बताने लगा की यह भी किसी राजा का लड़का है। उसकी कहानी सुन राजा ने बहुत से धन और दौलत दिया वह राजकुमार अब अपने नगर जाने की जिद करने लगा। और हाथी घोड़े धन दौलत के साथ अपनी तीसो रनिया तीसो बच्चो के साथ रण्वन हो गया । साथ में कुंभार के परिवार को बहुत सी धन दौलत दिया। जब पूरी फ़ौज के साथ वह अपने बाप के नगर में प्रवेश किया और बाग़ में तम्बू गाद दिया।अब राजा को यह बात पता चली की कोई दूसरा राजा बाग़ में तम्बू लगा दिया है। तो उन्होंने सैनिको को भेजा लेकिन सैनिक वापस आ गए और कहने लगे की महाराज वह तो कोई राजकुमार है। जो आप का घोड़ा भाग गया था वह भी साथ में है। अब बिल्ली के ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। रात में ही उसे गंगा मैया ने बताया था की तुम्हारा पुत्र तीस पुरता और रानियों के साथ वापस आ रहा है। अब बिल्ली उछाती कूदती पहुच गयी । तीसो बच्चो के साथ रानियों ने आशीर्वाद लिया॥ राजकुमार ने भी आशीर्वाद लिया। अब बिल्ली ख़ुशी मन से वापस आ गयी । राजा को आश्चर्य हुआ वे भी पैदल बिना सैनिको के साथ पहुच । सबने राजा का पैर छुआ और आशीर्वाद लिए। और आप बीती राजा को बताये राजा को अफ़सोस हुया॥ फिर राजा ने अपने रानियों को फांसी की सजा का हुक्म दिया लेकिन राजकुमार ने कहा वे भी मेरी माता है। उनका उन्हें मिल गया है। वे बिना संतान के है। और पूर्व जनम में भी रहेगी इसलिए हे राजन इन्हें माफ़ कर दिया जाय ॥ राजा ने रानियों को माफ़ कर दिया। और पुत्र बहुए पोतो के साथ महल में आये राजकुमार का राज्यविशेक किये। नगर में उत्सव का माहौल था॥ अब राजा अपनी रानियों को छोड़ करके बिल्ली के साथ तीरथ यात्रा पर निकल पड़े॥

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

गवार तोहरी जातिया॥



नइखे तोड़ेया बतिया॥


गवार तोहरी जातिया॥


ज्यादा न बोला न ॥


उतार लेबय इज्जतिया...


ज्यादा न बोला न ॥


हमें छिछोरी न सम्झेया॥


न आवारा पकडंदी॥


तोहरी कला हमें मालुम बा।


कितना पडा पाखंडी॥


देखे देवेय न तोहका तोहरी अवकतिया।


हाथ गोड़ से समरथ बाटी॥


जांगर बा दमदार॥


न तो हमका कॉन्व चिंता॥


न चाहि उपकार॥


देखाय देबय न ॥


तोहरी काली सुरतिया ॥


नइखे तोड़ेया बतिया॥
गवार तोहरी जातिया॥
ज्यादा न बोला न ॥
उतार लेबय इज्जतिया...




गुरुवार, 18 मार्च 2010

नाजुक दर्दे दिल

नाजुक दर्दे दिल को ॥

अभी न दुखाओ॥

की ठुम हो हमारे॥

हमें न बताओ...

सारा सा चूक जाए तो॥

अचम्भे ताजुब लगते॥

कली खिलने नहीं देते॥

पहले से टूट पड़ते है॥

लगेगा तीर न मुझपर॥

हमें नगमा नहीं सुनाओ॥

नाजुक दर्दे दिल को ॥
अभी न दुखाओ॥
की ठुम हो हमारे॥
हमें न बताओ।

फिर नींद दूर भागेगी॥

चैन हंसने नहीं देगा॥

मन मलिन हो बैठा॥

दिल हमारा कहेगा॥

अभी डगर दूर है॥

हमें न बुलाओ॥

नाजुक दर्दे दिल को ॥
अभी न दुखाओ॥
की ठुम हो हमारे॥
हमें न बताओ.

मंगलवार, 16 मार्च 2010

हठ कर बैठा मानव एक दिन॥

हठ कर बैठा मानव एक दिन॥

धरा गगन सब मौन हुए॥

पशु पक्षी नहीं कलरव करते॥

सागर सरिता मंद खुये॥

वह बोल रहा था भक्ति भाव से॥

उस पथ पर मुझे जाने दो,,

तरस रहे है नयना मेरे॥

अपना स्वप्न सजाने दो॥

संघर्ष ठहाका मार रहा था॥

काल रूप विकराल भयानक॥

जहरीली कीड़ो का समूह॥

देख दांग भय तन अचानक॥

फिर भी हटा नहीं हत्कर्मी॥

उसकी किया न कोई होड़॥

चला गया जीवन की लय में॥

फिर आया न कोई मोड़ ॥

सोमवार, 15 मार्च 2010

महगाई कय मौसम आवा॥



महगाई कय मौसम आवा॥


रोवे लरिका मलाई का॥


दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।


बढ़िया माल खिलायी का॥


अठन्नी चवन्नी केहू न पूछे॥


सौ रूपया मा भरी न पेट॥


डीजल इतना महागा होइगा॥


सूख गवा गेहू कय खेत॥


बड़की बिटिया पड़ी कुवारी॥


कौने हाट बिकाई का॥


दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।
बढ़िया माल खिलायी का॥


माल दार कय बतिया सुन के॥


थर थर कांपे हाड॥


अक्ल तो हमारी गुमसुम भैली॥


लागत अबतो निकले प्राण॥


फताही कुर्ती पहिन के घूमी॥


कौने दर्जी सिलाई का॥


दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।
बढ़िया माल खिलायी का॥



सच्चे पहरे दार है॥


हम स्वतंत्र भारत के ॥

सच्चे पहरे दार है॥

परतंत्र मेरा काम है॥

गणतंत्र के गुलाम है॥

रूकते नहीं कभी हम॥

थकते न पाँव मेरे॥

चढाते है शिखा पे॥

जहा कठिन घटा घनेरे॥

दिया है जिसने चमन मुझे॥

उनको मेरा सलाम है॥

परतंत्र मेरा काम है॥
गणतंत्र के गुलाम है॥

सच का साथ देता ॥

संकट भी दूर रहता॥

बढे चलो बढे चलो॥

मन हमारा कहता॥

सच्चाई के सिवा कोई॥

दूजा नहीं लगाम॥

परतंत्र मेरा काम है॥
गणतंत्र के गुलाम है॥

रविवार, 14 मार्च 2010

दिल दीवाना बना दिया॥


दिल दीवाना बना दिया॥
जगाया आस इतनी क्यो?

दिल दीवाना बना दिया॥

सोयी थी प्रेम की राहे ॥

उसे फ़िर से जगह दिया॥

जोड़ कर प्रेम के नाते॥

रशिली बातें करके तुम॥

न जाने कैसे बदली चाई॥

तुने अपना बना लिया॥

अबतो जलते है पड़ोसी ॥बोलना गुनाह हो जाएगा॥

गुलशन में आना कम कर दो॥

नही मिलना दुश्वार हो जाएगा॥

डर लगता है कही सूख ना जाए ये क्यारी॥

बगीचे की रौनक में क्यो ॥

जाली लगा दिया॥

सजा के थाल रखी हूँ जेवना बना डाली हूँ॥

तुम्हे आने की चाहत में सेजिया डाली हूँ॥

या तो आना जाना तुम छुप के॥आँचल में छुपा लूगी॥

तुम्हारी प्रेम की बगिया सजन ॥हस के सजा दूगी॥

निगाहें झपटी नही यारा॥जो टिका लगा दिया॥

हँसे बहेतू खडा.खडा॥



पहिन के नथुनी .चलय जब बबुनी॥


हँसे बहेतू खडा.खडा॥


मुस्की मारे सीटी बजावे॥


बात बनावय बड़ा..बड़ा॥


अगवारे पिछवारे से देखे॥


अंखिया गय चोधियाय॥


मन कय बतिया मुह से उगलय॥


तनिकव न शर्माय॥


मुह से बदबू उनके आवय॥


लउके देहिया सड़ा सड़ा॥


गन्दी सड़क गली सब कैले॥


गाँव मोहल्ला नार॥


कुवना नदिया सुखाय लागी॥


सूख गवा तालाब॥


पाप के इनके घडा भरल बा॥


माथा लागे चढ़ा चढ़ा॥





हुमक के मारू लात॥



ऐसी क्या है प्रीटी प्रिये॥


सोवत भैव हलाल॥


तनिक मनिक झटके लगा॥


हुमक के मारू लात॥


हंस के हम तो सह गए॥


पर आवे तोहे न लाज॥


गुणवान कय साथ मिला॥


अंगना लगा भभाय॥


थिरकत जियरा मगन भा॥


अब कली नहीं कुम्भलाय॥


ढर्रा सीधे पकड़ चला॥


नहीं आय जाए भूचाल..




शनिवार, 13 मार्च 2010

दानवीर..

कर्ण: झर झर झर झर आँस गिरत बा॥

थर थर कांपे प्राण॥

तन की शक्ति क्षीण भइल बा॥

उतर गइल बा शारी शान॥

हे प्रभू संकट अब टाला॥

नहीं बचा का देई दान॥

कृष्ण जी: कीर्ति तूम्हारी फैली चहु दिश ॥

दान वीर कह होए बखान॥

सुबर्ण दान अब चाही॥

अब कहा गवा दानी कय मान॥

कर्ण: कठिन घडी मा हट कर बैठेया॥

का खोजी दुसर विज्ञान॥

दांत सोने कय मुह म हमरे॥

ओहाके तोड़ के देबय दान॥

कठिन तपस्या सरल हम करवय॥

राखब भगवन आप के मान॥

लेके पत्थर को दांत को तोड़ा॥

बोले भगवन शुद्ध करा॥

दानवीर तह तीर है मारा॥

निकली धारा गंगा की,,

तब प्रकट हुए भगवान्॥

दानवीर तब स्वर्ग गए॥

टका शेर न बिकाबू :टका शेर न बिकाबू ॥

कच्ची उमरिया गुमान न करा॥

टका शेर न बिकाबू :टका शेर न बिकाबू ॥

कच्ची उमरिया गुमान न करा॥

राह चलतू करा न पंगा॥

गाँव के लरिकन करिहै दंगा॥

चढली जवानिया खिलवाड़ न करा॥

टका शेर न बिकाबू :टका शेर न बिकाबू ॥

आँख न लड़ावा रूमाल न गिरावा॥

धानी चुनरिया मा दाग न लगावा॥

चार दिन के जिनगी बवाल न करा॥

टका शेर न बिकाबू :टका शेर न बिकाबू ॥

हाट न घूमा बाज़ार न घूमा॥

यारन के बहिया न झूमा॥

घर म अंजोर ब अंधियार न करा॥

टका शेर न बिकाबू :टका शेर न बिकाबू ॥

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

आज हमसे ज़माना रूठल हो॥

आज हमसे ज़माना रूठल हो॥

माया की नगरिया झूटल हो॥

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आये यमराज पलंग चठी बैठे॥

सूद वियाज सब पूछल हो...

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चार जाने मिल खात उठावे॥

गंगा जल से हमके नहलावे॥

सबसे नाता टूटल हो॥

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चिता राचावे आंस गिरावे॥

बाह पकड़ हमका पहुडावे॥

हमरी खोपडिया फूटल हो॥

अस्थि कलश को अर्पित कैले॥

घर कय डगरिया वापस धैले॥

मन कय ममता कूटल हो॥

तूने गर्दिश क्यों बोया लिलार पे॥

गम के गमछे को ओढ़ा हूँ मै॥
धुप लगती है फिर भी शिला पे॥
चिंता चतुरंगनी बनके नाचे॥
कैसे घायल पडा हूँ चिता पे॥
साथ छोड़ा सभी कोई साथी नहीं॥
मेरी छाया भी नजदीक आती नहीं॥
आसमा और धरती के बीच में॥
खुद को पाता हूँ काले किला पे॥
साथ जिसका दिया दूर हमसे हुए॥
उनको सुख तो दिया खुद गम को पिया॥
कोई पूछे तो आके कहानी मेरी॥
तूने गर्दिश क्यों बोया लिलार पे॥

काश मेरा घर ऐसा होता॥

काश मेरा घर ऐसा होता॥
जलाते दीप समीप से॥
सात खम्भों से टापू बनता॥
बन जाते दरवाजे॥
शिव की मंदिर अलग चमकती॥
सच्चे होते इरादे॥
हंस हंस कर मै बाते करता॥
प्रिय प्रिया अव मीत से॥
बल अव बुध्ह पहरूवा बनाते॥
मखमल पे मै सोता॥
धन संपत्ति सब हंसते रहते॥
हर संभव सुख होता॥
विपदा हमसे दूर भागती॥
डरते हम विपरीत से॥

बड़े देदर्द हो मिया॥

लड़की: बड़े देदर्द हो मिया॥
हमें फुद्दू बनाते हो॥
खुद छत पे आते हो॥
हमें आँखे दिखाते हो॥
सही है मै भी जाना अपना॥
प्यार की डोर जो बाँधी॥
मै बनू नैया तुम्हारी॥
तुम बनो हमारे मांझी॥
नैनो की ललक यारा॥
नाहक दिखाते हो॥
सोचो जो सही सोचो॥
तुम मेरे सतयुग के साथी॥
मै करू पूजा तुम्हारी॥
फिर बनू चरणों की दासी॥
हँसे गा देखकर मौसम॥
क्यों मेरा मन दुखाते हो॥

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

अब नहीं डूबना पानी ॥

डुबकी लगा के थक गया॥

तेरी मस्त जवानी में॥

अब नहीं डूबना पानी ॥

अब नहीं डूबना पानी ॥

गेरुवा बस्तर मै धारण करके॥

गली गली में जाऊगा॥

राम नाम अब रहेगा मुख पर॥

हरी का नाम ही गाऊगा॥

लालच का यह लफडा है॥

मजा नहीं कहानी ॥अब नहीं डूबना पानी ॥

माया मोह के चक्कर में॥

इतना जीवन मै व्यर्थ किया॥

अत्याचार अनादर ॥

और बुरे भी काम किया॥

अबतो पाप हरो हे देवा॥

मै पकड़ा तेरे निशानी को॥

अब नहीं डूबना पानी ॥

आश का आभास लिए॥

लद गयी नाजुक ये डाली॥
आश का आभास लिए॥
कब समय बलवान होगा॥
कौन किसके लिए जिए॥
बन जाते है महल अन्टारी॥
खुशियों का पैगाम लिए॥
पर विधाता घट कर देता॥
आने वाला समय डराए॥
दोस्तों की टोली है हसती॥
उपहास का इतिहास लिए॥

गुरुवार, 4 मार्च 2010

न हम खेलली गुल्ली डंडा॥

न हम खेलली गुल्ली डंडा॥

न गइली हम तारा रे॥

सबसे प्यारा हमरा सजनवा॥

हंस मुख बड़ा निराला रे॥

जब हँसते तो मोती झरते॥

आँख का जादू आला रे॥

न हम खेलली गुल्ली डंडा॥
न गईली हम तारा रे॥

जब चलते तो अम्बर मचले॥

ठुमक पवन मतवाला रे॥

न हम खेलली गुल्ली डंडा॥
न गईली हम तारा रे॥
उनकी garzan सुन नहीं सकते॥

पढ़े पुराण रोजाना रे॥

न हम खेलली गुल्ली डंडा॥
न गईली हम तारा रे॥

मंगलवार, 2 मार्च 2010

उस रूप के अनछुए स्पर्श का॥

उस रूप के अनछुए स्पर्श का॥
एहसास क्यों होने लगा॥
मान मर्यादाये डिगने लगी है॥
मुझको भी कुछ होने लगा॥
टकटकी लगाए आँखे॥
निहारती है रास्ते॥
फूट रहे है अंकुर॥
अंश बीज बोने लगा॥
तड़प रहे है है॥
बेवजह बेबात में॥
हम भी अब शुद्ध बुध का॥
लिहाज़ होने लगा॥
छोड़ देते है रास्ते ॥
भूल जाते है बाते॥
फिर जाने क्यों
मेरा दिल हिसाब लेने लगा॥