केवाडिया न खोला॥
देखाय जाए घाँघरा ॥
धीरे धीरे बोला॥
ऊ घाँघरा जब सासू देखिहय॥
लजाय जाए आचरा॥
धीरे धीरे बोला॥
ऊ घाँघरा जब नंदी देखिहय॥
करवाय देइहय लाफडा॥
धीरे धीरे बोला॥
ऊ घाँघरा जब देवर देखे॥
बिछे देये चादरा ॥
धीरे धीरे बोला॥
रूठ कर क्यों बैठे हो टूटे दिल॥
हमसे भी दो बाते कर लो॥
सूखा है समंदर तपिस बढ़ी॥
हे मेघ राज बरसात कर दो॥
हरियर क्यारी हो जायेगी॥
कलियों का खिलाना जरी होगा...
फिर भवरे मचलते आयेगे॥
बस थोडा सा उपकार कर दो॥
हम आस लगाए बैठे है॥
तुम मांग सजाओ गे मेरी॥
सोलह सिंगर पहन के निकलू॥
सकुचा जायेगे समय सहेली॥
अब देर न कर रुठन वाले॥
अब थोड़ी से मुस्कान दे दो॥
नइखे तोड़ेया बतिया॥
गवार तोहरी जातिया॥
ज्यादा न बोला न ॥
उतार लेबय इज्जतिया...
ज्यादा न बोला न ॥
हमें छिछोरी न सम्झेया॥
न आवारा पकडंदी॥
तोहरी कला हमें मालुम बा।
कितना पडा पाखंडी॥
देखे देवेय न तोहका तोहरी अवकतिया।
हाथ गोड़ से समरथ बाटी॥
जांगर बा दमदार॥
न तो हमका कॉन्व चिंता॥
न चाहि उपकार॥
देखाय देबय न ॥
तोहरी काली सुरतिया ॥
नइखे तोड़ेया बतिया॥
गवार तोहरी जातिया॥
ज्यादा न बोला न ॥
उतार लेबय इज्जतिया...
नाजुक दर्दे दिल को ॥
अभी न दुखाओ॥
की ठुम हो हमारे॥
हमें न बताओ...
सारा सा चूक जाए तो॥
अचम्भे ताजुब लगते॥
कली खिलने नहीं देते॥
पहले से टूट पड़ते है॥
लगेगा तीर न मुझपर॥
हमें नगमा नहीं सुनाओ॥
नाजुक दर्दे दिल को ॥
अभी न दुखाओ॥
की ठुम हो हमारे॥
हमें न बताओ।
फिर नींद दूर भागेगी॥
चैन हंसने नहीं देगा॥
मन मलिन हो बैठा॥
दिल हमारा कहेगा॥
अभी डगर दूर है॥
हमें न बुलाओ॥
नाजुक दर्दे दिल को ॥
अभी न दुखाओ॥
की ठुम हो हमारे॥
हमें न बताओ.
हठ कर बैठा मानव एक दिन॥
धरा गगन सब मौन हुए॥
पशु पक्षी नहीं कलरव करते॥
सागर सरिता मंद खुये॥
वह बोल रहा था भक्ति भाव से॥
उस पथ पर मुझे जाने दो,,
तरस रहे है नयना मेरे॥
अपना स्वप्न सजाने दो॥
संघर्ष ठहाका मार रहा था॥
काल रूप विकराल भयानक॥
जहरीली कीड़ो का समूह॥
देख दांग भय तन अचानक॥
फिर भी हटा नहीं हत्कर्मी॥
उसकी किया न कोई होड़॥
चला गया जीवन की लय में॥
फिर आया न कोई मोड़ ॥
महगाई कय मौसम आवा॥
रोवे लरिका मलाई का॥
दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।
बढ़िया माल खिलायी का॥
अठन्नी चवन्नी केहू न पूछे॥
सौ रूपया मा भरी न पेट॥
डीजल इतना महागा होइगा॥
सूख गवा गेहू कय खेत॥
बड़की बिटिया पड़ी कुवारी॥
कौने हाट बिकाई का॥
दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।
बढ़िया माल खिलायी का॥
माल दार कय बतिया सुन के॥
थर थर कांपे हाड॥
अक्ल तो हमारी गुमसुम भैली॥
लागत अबतो निकले प्राण॥
फताही कुर्ती पहिन के घूमी॥
कौने दर्जी सिलाई का॥
दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।
बढ़िया माल खिलायी का॥
पहिन के नथुनी .चलय जब बबुनी॥
हँसे बहेतू खडा.खडा॥
मुस्की मारे सीटी बजावे॥
बात बनावय बड़ा..बड़ा॥
अगवारे पिछवारे से देखे॥
अंखिया गय चोधियाय॥
मन कय बतिया मुह से उगलय॥
तनिकव न शर्माय॥
मुह से बदबू उनके आवय॥
लउके देहिया सड़ा सड़ा॥
गन्दी सड़क गली सब कैले॥
गाँव मोहल्ला नार॥
कुवना नदिया सुखाय लागी॥
सूख गवा तालाब॥
पाप के इनके घडा भरल बा॥
माथा लागे चढ़ा चढ़ा॥
कर्ण: झर झर झर झर आँस गिरत बा॥
थर थर कांपे प्राण॥
तन की शक्ति क्षीण भइल बा॥
उतर गइल बा शारी शान॥
हे प्रभू संकट अब टाला॥
नहीं बचा का देई दान॥
कृष्ण जी: कीर्ति तूम्हारी फैली चहु दिश ॥
दान वीर कह होए बखान॥
सुबर्ण दान अब चाही॥
अब कहा गवा दानी कय मान॥
कर्ण: कठिन घडी मा हट कर बैठेया॥
का खोजी दुसर विज्ञान॥
दांत सोने कय मुह म हमरे॥
ओहाके तोड़ के देबय दान॥
कठिन तपस्या सरल हम करवय॥
राखब भगवन आप के मान॥
लेके पत्थर को दांत को तोड़ा॥
बोले भगवन शुद्ध करा॥
दानवीर तह तीर है मारा॥
निकली धारा गंगा की,,
तब प्रकट हुए भगवान्॥
दानवीर तब स्वर्ग गए॥
कच्ची उमरिया गुमान न करा॥
टका शेर न बिकाबू :टका शेर न बिकाबू ॥
कच्ची उमरिया गुमान न करा॥
राह चलतू करा न पंगा॥
गाँव के लरिकन करिहै दंगा॥
चढली जवानिया खिलवाड़ न करा॥
टका शेर न बिकाबू :टका शेर न बिकाबू ॥
आँख न लड़ावा रूमाल न गिरावा॥
धानी चुनरिया मा दाग न लगावा॥
चार दिन के जिनगी बवाल न करा॥
टका शेर न बिकाबू :टका शेर न बिकाबू ॥
हाट न घूमा बाज़ार न घूमा॥
यारन के बहिया न झूमा॥
घर म अंजोर ब अंधियार न करा॥
टका शेर न बिकाबू :टका शेर न बिकाबू ॥
आज हमसे ज़माना रूठल हो॥
माया की नगरिया झूटल हो॥
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आये यमराज पलंग चठी बैठे॥
सूद वियाज सब पूछल हो...
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चार जाने मिल खात उठावे॥
गंगा जल से हमके नहलावे॥
सबसे नाता टूटल हो॥
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चिता राचावे आंस गिरावे॥
बाह पकड़ हमका पहुडावे॥
हमरी खोपडिया फूटल हो॥
अस्थि कलश को अर्पित कैले॥
घर कय डगरिया वापस धैले॥
मन कय ममता कूटल हो॥
डुबकी लगा के थक गया॥
तेरी मस्त जवानी में॥
अब नहीं डूबना पानी ॥
अब नहीं डूबना पानी ॥
गेरुवा बस्तर मै धारण करके॥
गली गली में जाऊगा॥
राम नाम अब रहेगा मुख पर॥
हरी का नाम ही गाऊगा॥
लालच का यह लफडा है॥
मजा नहीं कहानी ॥अब नहीं डूबना पानी ॥
माया मोह के चक्कर में॥
इतना जीवन मै व्यर्थ किया॥
अत्याचार अनादर ॥
और बुरे भी काम किया॥
अबतो पाप हरो हे देवा॥
मै पकड़ा तेरे निशानी को॥
अब नहीं डूबना पानी ॥
न हम खेलली गुल्ली डंडा॥
न गइली हम तारा रे॥
सबसे प्यारा हमरा सजनवा॥
हंस मुख बड़ा निराला रे॥
जब हँसते तो मोती झरते॥
आँख का जादू आला रे॥
न हम खेलली गुल्ली डंडा॥
न गईली हम तारा रे॥
जब चलते तो अम्बर मचले॥
ठुमक पवन मतवाला रे॥
न हम खेलली गुल्ली डंडा॥
न गईली हम तारा रे॥
उनकी garzan सुन नहीं सकते॥
पढ़े पुराण रोजाना रे॥
न हम खेलली गुल्ली डंडा॥
न गईली हम तारा रे॥