पृष्ठ

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

तूने गर्दिश क्यों बोया लिलार पे॥

गम के गमछे को ओढ़ा हूँ मै॥
धुप लगती है फिर भी शिला पे॥
चिंता चतुरंगनी बनके नाचे॥
कैसे घायल पडा हूँ चिता पे॥
साथ छोड़ा सभी कोई साथी नहीं॥
मेरी छाया भी नजदीक आती नहीं॥
आसमा और धरती के बीच में॥
खुद को पाता हूँ काले किला पे॥
साथ जिसका दिया दूर हमसे हुए॥
उनको सुख तो दिया खुद गम को पिया॥
कोई पूछे तो आके कहानी मेरी॥
तूने गर्दिश क्यों बोया लिलार पे॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें