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शुक्रवार, 12 मार्च 2010

आज हमसे ज़माना रूठल हो॥

आज हमसे ज़माना रूठल हो॥

माया की नगरिया झूटल हो॥

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आये यमराज पलंग चठी बैठे॥

सूद वियाज सब पूछल हो...

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चार जाने मिल खात उठावे॥

गंगा जल से हमके नहलावे॥

सबसे नाता टूटल हो॥

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चिता राचावे आंस गिरावे॥

बाह पकड़ हमका पहुडावे॥

हमरी खोपडिया फूटल हो॥

अस्थि कलश को अर्पित कैले॥

घर कय डगरिया वापस धैले॥

मन कय ममता कूटल हो॥

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