हठ कर बैठा मानव एक दिन॥
धरा गगन सब मौन हुए॥
पशु पक्षी नहीं कलरव करते॥
सागर सरिता मंद खुये॥
वह बोल रहा था भक्ति भाव से॥
उस पथ पर मुझे जाने दो,,
तरस रहे है नयना मेरे॥
अपना स्वप्न सजाने दो॥
संघर्ष ठहाका मार रहा था॥
काल रूप विकराल भयानक॥
जहरीली कीड़ो का समूह॥
देख दांग भय तन अचानक॥
फिर भी हटा नहीं हत्कर्मी॥
उसकी किया न कोई होड़॥
चला गया जीवन की लय में॥
फिर आया न कोई मोड़ ॥
बहुत खूब, लाजबाब !
जवाब देंहटाएंthankyour sir,
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