कर्ण: झर झर झर झर आँस गिरत बा॥
थर थर कांपे प्राण॥
तन की शक्ति क्षीण भइल बा॥
उतर गइल बा शारी शान॥
हे प्रभू संकट अब टाला॥
नहीं बचा का देई दान॥
कृष्ण जी: कीर्ति तूम्हारी फैली चहु दिश ॥
दान वीर कह होए बखान॥
सुबर्ण दान अब चाही॥
अब कहा गवा दानी कय मान॥
कर्ण: कठिन घडी मा हट कर बैठेया॥
का खोजी दुसर विज्ञान॥
दांत सोने कय मुह म हमरे॥
ओहाके तोड़ के देबय दान॥
कठिन तपस्या सरल हम करवय॥
राखब भगवन आप के मान॥
लेके पत्थर को दांत को तोड़ा॥
बोले भगवन शुद्ध करा॥
दानवीर तह तीर है मारा॥
निकली धारा गंगा की,,
तब प्रकट हुए भगवान्॥
दानवीर तब स्वर्ग गए॥
dhanyavaad bhaskar ji,,,,,,,
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