avadhi poem/geet
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शुक्रवार, 5 मार्च 2010
आश का आभास लिए॥
लद गयी नाजुक ये डाली॥
आश का आभास लिए॥
कब समय बलवान होगा॥
कौन किसके लिए जिए॥
बन जाते है महल अन्टारी॥
खुशियों का पैगाम लिए॥
पर विधाता घट कर देता॥
आने वाला समय डराए॥
दोस्तों की टोली है हसती॥
उपहास का इतिहास लिए॥
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