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सोमवार, 15 मार्च 2010

महगाई कय मौसम आवा॥



महगाई कय मौसम आवा॥


रोवे लरिका मलाई का॥


दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।


बढ़िया माल खिलायी का॥


अठन्नी चवन्नी केहू न पूछे॥


सौ रूपया मा भरी न पेट॥


डीजल इतना महागा होइगा॥


सूख गवा गेहू कय खेत॥


बड़की बिटिया पड़ी कुवारी॥


कौने हाट बिकाई का॥


दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।
बढ़िया माल खिलायी का॥


माल दार कय बतिया सुन के॥


थर थर कांपे हाड॥


अक्ल तो हमारी गुमसुम भैली॥


लागत अबतो निकले प्राण॥


फताही कुर्ती पहिन के घूमी॥


कौने दर्जी सिलाई का॥


दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।
बढ़िया माल खिलायी का॥



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