खुल गय गठरिया ॥
सफ़र मा पिया॥
मोच खय गय करिहैया ॥
रगड़ मा पिया॥॥
बगल वाली सीट पे रहेली अकेली॥
साथ नइखे रहली हमरे संग के सहेली॥
रात दुई लैका जलाय देखले दिया॥
मोच खय गय करिहैया ॥
रगड़ मा पिया॥॥
पहले तो मैंने अकड़ करके बोली॥
उनके मुहवा से छुटेला ठिठोली॥
गर्मी शरिरिया से निकला धुँआ॥
मोच खय गय करिहैया ॥
रगड़ मा पिया॥॥
धीरे धीरे नीक लाग ॥ अचरज भा मनवा॥
हौले हौले खोले लागे हमरा अचरवा॥
बोले होय्जा राज़ी खिलौबय पुआ॥
मोच खय गय करिहैया ॥
रगड़ मा पिया॥॥
सुन्दर लेखन।
जवाब देंहटाएंcharan pranaam acharya ji,,,
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