मै इतिहास लिखा छू मंतर का॥
थोड़ा बाड़ा कुछ अन्दर था॥
मै मानव सर का ताज बना॥
वह बेईमानी का खंजर था॥
मै सच की रीती ओढ़ लिया॥
वह दारू पी कर आटा था॥
भोले बाबा के मंदिर पे॥
शिव जी को बहुत गरियाता था॥
मै जग वालो का बना हितैषी॥
वह महा मुलीश कुकर्मी था॥
मै हाथ जोड़ कर काम चलाऊ॥
वह खुदगर्जी हठधर्मी था॥
मै सफल किया जीवन अपना॥
वह पड़े पड़े चिल्लाता है॥
अंतिम क्षण में भगवन को॥
मौत की भीख लगाता है॥
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