हम अपने बिटिया के चौथी मा॥
बोटी रोटी खाय आवा॥
धोती करता हेरवाय आवा॥
पुरखन कय नाक कटाय आवा॥
अपने मंझली बिटिया के घर॥
चौथी लय के चला गए हम॥
पांच सात जन साथ रहे जौन॥
बिटिया के घर रुक गए हम॥
इज्जत पानी जम के भय॥
रोटी बोली कय जुआड़ बना॥
महुआ कय दारू पड़ी मेज पे॥
बगल भुकी मा दाल चना॥
लौडन के मन का भाय गवा।
हमहू पैग चटकाय आवा॥
बोटी रोटी खाय आवा॥
धोती करता हेरवाय आवा॥
पुरखन कय नाक कटाय आवा॥
गप्पन पय गप्पे चलत रही ॥
जाम पय जाम टकरात रहा॥
झिन झिन मा झंझट होत रही॥
हमरव मुद्वा टकरात रहा॥
चार किलो तक बोटी रोली॥
हम नशे मा खाय आवा॥
बोटी रोटी खाय आवा॥
धोती करता हेरवाय आवा॥
पुरखन कय नाक कटाय आवा॥
नशा मा इतना जुल्म भवा॥
हम याददाश्त सब भूल गए॥
जैसे मस्ती मा सांप लोटे ॥
वैसी मस्ती मा झूल गए॥
उही नशा मा चला गए ॥
एक बगली ऊख के खेते म॥
गोड़ लगा मेड़े के बगली॥
जाय गिरे चपेटे मा॥
वही नशा के औझाद मा॥
सार रुपिया हेर्वाय आवा॥
बोटी रोटी खाय आवा॥
धोती करता हेरवाय आवा॥
पुरखन कय नाक कटाय आवा॥
भवा भिनौखा तक मेहरारुवान ॥
टट्टी का जब जात रही॥
हाय हाय हम करत रहे॥
हमरिव बात ओनात रही॥
पड़ी निगाह समधिन कय हमरे॥
मुह से निकल हे दैया॥
लागत तो हमारे समधी बाटे॥
बहु देख तोहरे अहे बपैया॥
अपने बिटिया के ससुरे म हम॥
सागरी नाक कटाय आवा॥
बोटी रोटी खाय आवा॥धोती करता हेरवाय आवा॥
पुरखन कय नाक कटाय आवा॥
इतनी अच्छी समधिन हमरे॥
हमका साल ओधाय दिही॥
आँचल से मुह ढकवाय दिही॥
हमरिव इज्जत बच्वे लिही॥
पीछे वाले दरवाजे से .घर के अन्दर लाय दिही॥
महकौवा साबुन लय के हमका खूब नहवाय दिही॥
अपने दिहिया कय कोयला माटी ॥
समधिन से धुलवाय आवा॥
बोटी रोटी खाय आवा॥धोती करता हेरवाय आवा॥
पुरखन कय नाक कटाय आवा॥
जब हम समधिन कय सूरत देखी॥
मनही मन कुछ बोली॥
खडा रहे बिलकुल लख्ताक्वा॥
न येह्मू डोली न ओहमू डोली॥
झट से समधिन बोल पड़ी ई कैसें रात गुजार हा॥
लखत रहेया अगली बगली कतहू का मुह मारेया हां॥
दिल कय बात हमसे मत पूछा ..फ़ोकट मा रात गुजार आवा॥
बोटी रोटी खाय आवा॥धोती करता हेरवाय आवा॥
पुरखन कय नाक कटाय आवा॥
इतनी अर्ज हमारी बाटे ई राज कतव तू खोलू न।
हमरी बिटिया जो बहू तुम्हारी ई बात तू ओहसी बोलू न॥
ई आपस कय मसला आटे दिल के अन्दर छुपे लिहू॥
अगर जरुरत कभो पड़े तो पीछे दरवाजे बोले लिहू॥
हंसी ठिठोली मा पल बीता समधिन से आँख लडाय आवा...
बोटी रोटी खाय आवा॥धोती करता हेरवाय आवा॥पुरखन कय नाक कटाय आवा॥