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रविवार, 4 दिसंबर 2011

कब तक झेलब रहब झमेल..

सोलहे साल मा झोंका आवा

टूट गवा सब हरियर पेड़

रुक रुक रेल चलय दिन रतिया

इहय जिनगी कय खेल

पहले माई चारो जूनी

हाथ से खाना खियावय

तनिकव दर्द होय देहिया मा

हल्दी तेल लगावय...

जब से आयी हमरी दुल्हिनिया

होयगा छोटका इंजन फेल

रुक रुक रेल चलय दिन रतिया॥

इहय आ जिनगी कय खेल॥

चार लरिका कय बाप भये अब।,.

जाय के रिक्शा चलायी

सोवत मिले महरिया हमरी

आय के ओहका जगायी...

ऐड़ीबीडी चाल चलय

नहीं हमसे बा कौनव मेल

रुक रुक रेल चलय दिन रतिया॥

इहय आ जिनगी कय खेल॥

लरिका बच्चा मारे दौडे

और हमे गरियावे...

अगर महतारी का कुछ बोली

नदिया तक दौडावय...

अंधकार जिनगी लगत बा

कब तक झेलत रहब झमेल...

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