पृष्ठ

रविवार, 4 दिसंबर 2011

हम धरती के पुत्र है

देते तुम्हे उपदेश...

तुम तो मुर्ख बन बैठे हो

सुनते नहीं सन्देश....

चारो तरफ जो हरियाली है

पर्वत नदिया झरने

ये दिव्य ज्योति है भारत के

दुर्लभ मोती के गहने

यहाँ पे आने को तरस जाते है...

सच्चे बड़े नरेश...

तुम तो मुर्ख बन बैठे हो॥सुनते नहीं सन्देश....

जो गमक रही है सुंदर बतिया

उसको ज़रा सजाओ तो...

बन सकते हो महापुरुष

सोयी ख़ुशी जगाओ तो

कर्म धर्म सच्चा रखोगे

होगा नहीं क्लेश

तुम तो मुर्ख बन बैठे हो॥सुनते नहीं सन्देश....

प्राकृतिक संपदा को नष्ट करो मत

नदिया तालाब सुखाओ तुम

अपने भारत के आन मान का

सच्चा गीत गाओ तुम...

सुख शान्ति साथ रहेगे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें