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रविवार, 4 दिसंबर 2011

धरती माँ तुम धन्य हो..

धरती माँ तुम धन्य हो
जो सहती इतना पाप...
फिर कोई नहीं शिकायत
कोई संताप...
कोई संताप
पापी पाप है करते..
तेरे सीने पर ही माता
लड़ लड़ कर है मरते
बाँध खडग तलवार समर में
बहे खून की धारा
कितने बूढ़े बच्चे इसमे
निर्बल जाते मारा
फिर भी रहती शांत
देती किसी को श्राप
धरणी माँ तुम धन्य हो
जो सहती इतना पाप
लेती नहीं कुछ किसी से
सब को मोती देती
मल मूत्र से भरी धरा है...
फिर भी बोझ है ढोती
हरे भरे है आँगन तेरे
रोग वियोग को हरती
सब को देती खुशिया जग मग
ज्योति हमेशा जलती रहती
कब तक ढोती रहोगी माता
इस दुनिया का पाप ...
अगर माँ थोड़ा रुष्ट हो जाए...
जाए दुनिया काँप...
धरती माँ तुम धन्य हो॥जो सहती इतना पाप...

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