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सोमवार, 5 दिसंबर 2011

क्यों वादा भूल गा ये...

वे कहते थे आने को

क्यों आना भूल गए?

लगता है किसी सौतन की

बाहों में झूल गए

होठो की तारीफ़ थे करते

कजरारी आँखों में समाते थे

इन गोरे गोरे गालो को

सौ दफा सहलाते थे

अपना वादा किया पूरा

अब हम टूट गए

वे कहते थे आने को॥क्यों आना भूल गए?

बाहों की डाली में .झूला झुलाते थे

वादों की झड़ी लगाते ॥

सपनो में आते थे

क्या भर गया था दिल मुझसे

या हमसे रूठ गए...

दिल तो दरिया था उनका

वे तारीफ़ के काबिल थे

मेरे दिल में बसे थे वे

मुझमे सामिल थे

क्या हुआ ये रब जाने

क्यों हमको भूल गए...?

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