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बुधवार, 30 नवंबर 2011

आते होगे साजन मेरे॥

कागा नित दरवाजे पर मेरे
काव कांव जब करता है
आते होगे साजन मेरे
मन उमंगें भरता है...
सज धज कर मै राह निहारू...
हो जाती है शाम...
काम काज में मन नहीं लगता
ना छाँव लगे घाम...
बीते पल को सोच सोच कर...
सूरज यूं ही ढलता है
आते होगे साजन मेरे॥मन उमंगें भरता है...
फोन की घंटी जब बजती है
दौड़ लगा के जाती हूँ
आवाज सुनती हूँ औरो की जब...
रोटी वापस आती हूँ...
आस का दीपक मन मेरा है
रात दिना जो जलता है...
सासू जेठानी ननद दिवरानी
सब कोई मारे ताना
ससुर हमारे बक बक करते
जल्द बनाओ खाना
सुन सुन बाते मन व्याकुल है
कब होगा साजन आना
लगता नहीं है दिल यहाँ पे
मन मौके जाने को करता है...
आते होगे साजन मेरे॥मन उमंगें भरता है...
गली दादा बन के घुमय
खुद का बनय खलीफा
जब देखा जब करय लडाई
गए रात पीटा
इनकी इतनी नियत बुरी है
करते बुरे है काम
एक नाम से नहीं माहिर
इनके कई है नाम...
राम्कलिया सीना नापय
हाथ लय के फीता
गली म दादा बन के घुमय॥
खुद का बनय खलीफा॥
जब देखा जब करय लडाई॥
गए रात म पीटा॥
उडिहा भुढीय कुछ देखय
सब से आँख लडावे...
अगर अकेली कोऊ मिलय
घर के अन्दर बुल्वावे
यही चक्कर मा काल दुपहरे
जम के गए घसीटा
गली म दादा बन के घुमय॥खुद का बनय खलीफा॥जाब
देखा जब करय लडाई॥गए रात म पीटा॥
घर के लोग बोलय मुह से
अगल बगल के भागय...
जब आवे गली के अन्दर
रात भर सब जागे...

रात यही सोने दे..

जब तूने बढाया हाथ

मैंने दिया जबाब

रात यही सोने दे

ख्वाबो में खोने दे

.तूने दिया था फूल॥

मैंने किया था क़ुबूल

अब कुछ होने दे

रात यही सोने दे

.जब किया तकरार

तुम चले गए बाज़ार...

बात पूरी होने दे

रात यही सोने दे

.मै लाया सुन्दर हार...

तूने समझ के रखा उपहार...

बीज अब बोने दे

रात यही सोने दे..

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

बरसाने में होली दिन आना...
बरसाऊ गी रंग सवारिया
तुमको करूगी तंग
सारे रंगों से भरी मटाकिया
और अबीर की भर के चुटकिया
ऐसे रंगों से रंगूगी तुमको
फडके लागे अंग सवारिया...

रविवार, 27 नवंबर 2011

पूरी बोतल पी गया मै...

मै सारी बोतल पी गया

अपने प्रिया की याद में

सुरूर मुझको छाने लगा

खूब सूरत रात में

जुदायी मुझे बर्दाश्त नहीं

तन्हायी जीने देती

हर पल उसकी याद आती

यादे सोने देती

अब लड़खड़ाने लग गया हूँ

जाम लेके हाथ में

हवाओ ने रुख अदल दिया.है

आती नहीं है पास में

दिल धड़कने लग गया है

पड़ गया हूँ खाट पे

लफडा..

मासूम का दिल मैंने तोड़ा

खरीद सका महगा कपडा

वह अड़ारहा अपनी जिद पर

बीबी करती मुझसे झगडा

बात बढ़ी वह चुप हुआ

गुस्से में मारा तगड़ा thapda

मै कोस रहा था जिनगी को

तक़दीर को गाली देता था

रुपयों को खातिर होता है

सुबह शाम हरदम लफडा

जो दिल के सच्चे होते है

उन्हें महाकाल नहीं खाता...

देख के उसके दिल दरिया को ...

वापस वह चला जाता है...

शिव की महिमा आप पर हमेसा रहेगीहम भी दुआ करे गेआप तरक्की करेगे...

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

परदेश आके खुश नहीं हूँ
मुशिकल हो गया जीना
कल सबेरे जेब कट गयी
हंसती रही हसीना
हंसती रही हसीना
मरती मस्ती बाजी
शर्म हया सब खो चुकी है
कहती आओ मिया जी
अडबड गड़बड़ हो जाएगा
तो होजायेगा एक्सीडेंट
चुपचाप बैठा रहता हूँ
तो देती आके करेंट
अबली डबली बबब्ली भी है
हरकत करती हीना...
कहती काबा देखोगे
की दिखाऊ तुम्हे मदीना
उसकी बाते सुन सुन करके
आत़ा मुझे पसीना

बतावा गोरी सोयी की रात जागी...

अँधेरे मा घाँघरा कय का काम बाटे ..

बतावा गोरी सोयी की रात जागी...

बहुत दिना से अकड़ी बा देहिया

नाहक लगाए तोहसे नेहिया

तोहरी सुरातिया का मन कहय चाटी

बतावा गोरी सोयी की रात जागी...

मन भवा चंचल चुवय लाग लार...

जब तोह्सी चिपकी मचावा गोहार...

लगत बा जबरजस्ती तोहका धांसी

बतावा गोरी सोयी की रात जागी...

दस दिन होय गवा भवा नहीं कमवा

बहुत उतरात बा हमरव मनवा...

खली पिसान काहे ओहका फांकी...

बतावा गोरी सोयी की रात जागी...

चाँद लगे सुर में तुम्हारे...

छू लो गगन का चाँद

नाम सदा होता रहे...

कायम करो मिशाल...

घुइशर नाथ बाबा सारी कनोकमनाये पूरी करे...

थोड़ा मह्गायी कम कर दो...

हे राजनीति के नेता गण

थोड़ा महगाई कम कर दो

जनता पे इतना रहम कर दो...

बच्चो को अब दाल मिलती

खा सकते है सेब...

महगाई मार पड़ी है...

खाली पडा है जेब...

रूठ चुकी है सारी पब्लिक//

जनता का गुस्सा नरक कर दो...

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

लड़का

आवा करा शरमावा करा

काजू कय बार फी खावा करा

चाहे एक टका महगी बिकावा करा

मुला रात अन्धियरिया गोरी आवा

लड़की:

आवा करा शरमावा करा

काजू कय बर्फी खावा करा

चाहे घुइन टका शेर बिकावा करा

मुला रात अन्धियरिया पीया आवा करा

लड़का:

काशी कय लड्डू बनारस कय पड़ा

जाय भुसावल से लाये केला

बड़ा परशान भये रहे जो अकेला

मुहवा पय चिपकावा करा

मुला रात अन्धियरिया गोरी आवा॥

लड़की::

सोने के थाली में जेवना लगायव... ॥

फूलो की खुशबू से सजायव

हंस हंस राजा खावा करा

मुला रात अन्धियरिया पिया आवा.करा

लड़का

झुमका लाये बाली लाये...

एक मोतियाँ कय हार गुहाये

सज धज के मुस्कावा करा

मुला रात अन्धियरिया गोरी आवा॥

इसमे कितनी अच्छायी है...

वर्तमान स्थिति यही है बचवा

भ्रष्टाचार बुरायी है

इन्ही तीनो की गलती से

मह्गायी इतनी छायी है...

सच्चाई की डोर जो खिचती

उससे निकर कोई पाता

भ्रष्टाचार बुरायी जाती...

खुशियों का मौसम फिर से आता

जूते थप्पड़ नेता खाते

इसमे कितनी अच्छाई है?

साफ देश के सही नागरिक ...

हम भारतीय कहाते है

सच्चे नेता लोग को हम सब

सर आँखों पे बिठाते है

लोगो का दिल अब टूट चुका है...

तभी आभा चिल्लायी है..

कोई पसंद अभी नहीं आयी///


दिल तो किसी पे जमा नहीं

सभी तो इठलाती है

किसी का कपडा किसी का नखरा...

कोई कोई कुदरती है

कोई कोई सरमाती है...

कोई कोई मुस्काती है

कोई तो हंस के निकल जाती है

कोई कोई पास बुलाती है

पर मुझको कोई पसंद आई...

कोई कोई हंसी उडाती है...

चौहद्दी म उड़ा जब लहगा..

चौहद्दी मा उड़ा जब लहगा

लौडे शोर मचाय देहेन

भरी जवानी रस टपके ला

बुढाऊ लार टपके देहेन

जुनी की जायी सिटी बाजे

और हिलावय हाथ

केहू केहू तो करय इशारा

कब होए मुला कात...

स्वागत हमरे महफ़िल सज गय

रास्ता भर फूल बिछाय देहेन...

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

जब बबुनी भयी उघार..

जब बबुनी भयी उघार ,.जमाना जान गवा
छाया क्रिकेट कय अजब बुखार..जमाना जान गवा
करू एलान हम कपड़ा उतारब
क्रिकेट खिलाड़िन का हम तारब
अपने देखिया कय करलू उपहार...
जमाना जान गवा
तनवा देखाऊ मन बहलाऊ
महफ़िल मा खूब रंग जमाऊ
काहे काया कय करू व्यापार...
जमाना जान गवा
घूम घूम टी.आर.पी बटोरू
अशिकन कय तू मनवा टटोलू
केतानेन कय करू कल्याण
जमाना जान गवा..

सज-धज करके राजकुमारी

राजकोट से आयी रे

सपने में मुझे जगायी रे

रूप देख कर अजरज माना

हंसते हुआ अचम्भा

चंचल मनवा लालच कर गया

मेरा भसक गया खम्भा..

सोमवार, 21 नवंबर 2011

हमें पूर्वांचल नहीं अवध चाहिए..

हमें पूर्वांचल नहीं अवध चाहिए...
जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश के चार खंड होने वाले हैउससे यह मालुम होने लगा हैकी उत्तर प्रदेश के टुकड़े हो तो अच्छा होगाजैसे की आप सुबह जब मै अखबार पढ़ा तो उसमे लिखा था की इलाहबाद ,प्रतापगढ़,फ़तेह पुर ये सब पूर्वांचल में आयेगेये बात मेरे समझ में नहीं रही हैक्यों की इलाहबाद ,फतेहपुरप्रतापगढ़, इन सब की बोलिया अवधी हैइस लिए इन जिलो को अवध में सम्लित किया जाना चाहिएवैसे जब से थोड़ा भोजपुरी का उत्थान होने लगा है हमारी अवधी भाषा विलुप्त के कगार में आके खड़ी हैक्यों की हमारे लोगो के जिलो में अभूत से कलाकार.खिलाडी है उनको अभी तवज्जो मिल रही हैऔर बाद में मिलने की संभावना रहेगीक्यों वैसे हम गीत लिखते है अवधी और हिंदी में लेकिन मै १० साल से कोशिस कर रहा की कोई सिंगर मेरा गीत गायेलेकिन हमें अधिकतर यही कहा जाता हैकी हम अवधी की जगह भोजपुरी के लिखे वैसे ये तीनो जिले गरीब रेखा नीचे ही आते होगे गर ये पूर्वांचल में सम्मलित किये गए तो निश्चित ही ..इअके दिन बुरे जायेगेइस सब से निवेदन है की आप लोग कोसिस करिए की अगर उत्तर प्रदेश कर बटवारा होता हैतो हमें अवध चाहिए... वैसे भी हम लोग अवध के वासी हैऔर अवध में ही रहना पसंद करेगेवैसे पहले भी हमारे यहाँ के राजाओ का नाम अवध या अवदेशऔर अभी भी हम लोग उत्तर प्रदेश के बाद भी अवध

धन्यवाद