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शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

हंसा फूल देख के सूरत..


हंसा फूल देख के सूरत

सज धज कर मै आयी थी

पुष्प बाग़ में अन्दर जाते

सब से पहले शरमायी थी

लज्जित होना स्वाभाविक था

पहली बार चंचल मन देखा

तभी हंस के पवन चली

बूंदे बरसाने लगा मेघा

मेरे तन की चंचल कलियाँ

इठलाती मुस्काती थी

मदहोश हवाए कर देती

प्रीतम की आवाज सुनायी देती

मै दौड़ पड़ी अगुवानी करने

खुशिया मेरी बलाए लेती

मै भी कोई साधारण नहीं थी

सोन परी ही लगती थी..

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