इस बढ़ते हुए भ्रष्टाचार में नेताओ की बोल चार चाँद लगा देती है । नेता लोग सोचते है की उनकी मधुर आवाज में मिसरी का मिश्रण हो । जिससे जनता आनंदित हो जाये। वे अपने विपक्षी लोगो पर ब्यंग तीर छोडने के लिए उत्सुक रहते है। ये लोग बिना सोचे समझे आरोप पर आरोप या उस नेता के खिलाफ बोलते रहते है । ये विकाश की बात कभी नहीं सोचते जिससे जनता का हित हो॥ ये मौके की तलाश में रहते है मौका न छोटे नौका भले छूट जाए॥ यहाँ तक कहते है की जनता से उअर किसी से माफ़ी मागे। और बहुत कुछ कहते है । जैसे राहुल बाबा ने अपने फूल पुर भाषण में कहा "कि हमें महाराष्ट्र जा के भीख नहीं मागने पड़ेगी। तो इसमे क्या गलत बोल दिया उन्होंने यहो तो बोला है कि "हम सोचते है कि उत्तर प्रदेश एक खुशहाल राज्य बने यहाँ के लोगो को दुसरे शहर में जाके नौकरी न करना पड़े॥ यहो तो बोला है। हमारे बड़े बुज़ुर्ग लोग कहते थे। कि हमने किसी गुलामी पसंद नहीं थी इस लिए हमने नौकरी नहीं । अरे भाई ये भी तो लोग कहते है । कि हाथ का फैलाना भीग मागने के बराबर है। लोग उपमाये क्यों देते है । पर्यायवाची क्यों बनी है। ये तो नेता नहीं बनाये है। कुछ कायदे कानून बनाए गए है जिसके अन्दर ही रह कर लोग बात करते है। उससे बाहर निकल कर कार्य करने पर दण्डित किये जाते है । और जुरमाना भी लिया जाता। जैसे क्रिकेटर है मैदान में जब हद को पार करते है। तो उनपर जुरमाना जगाया जाता है। वे भुगतान करते है। वैसे नेताओ कि उतनी सीमाए होनी चाहिए .वे भी हद न पार करे। इनकी जो भी महा शक्तिया है। उन्हें शक्त निर्देश देना चाहिए। इससे आने वाले कल के लिए नुकशान होना प्रतीत होता है। और इससे नेताओ का आचरण साफ़ सुथरा रहेगा॥
नेता इतना स्वतंत्र क्यों ?
शम्भू नाथ प्रताप गढ़ा ..
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