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गुरुवार, 29 जुलाई 2010

गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥



जब जवानी की यादे॥ बुढापे में आती॥

गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥

हांड भय शरिरिया गुमान भैला ढीला॥

जौन जौन चाहे उहे उहे कीन्हा॥

अब आवे न निंदिया बहुत है लजाती॥

जब जवानी की यादे॥ बुढापे में आती॥

गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥

जवानी के जोश छपरा हिलाए॥

अंधन का रास्ता साहिये बताये॥

ढिठाई तो दूर हमें देख भाग जाती॥

जब जवानी की यादे॥ बुढापे में आती॥

गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥

रारी से राह करे अधर्मी का पीटे॥

बुरायी से दूर रहे सच्चायी का जीते॥

अब कडुई लागे बतिया हमें न सुहाती॥

जब जवानी की यादे॥ बुढापे में आती॥
गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥
हांड भय शरिरिया गुमान भैला ढीला॥
जौन जौन चाहे उहे उहे कीन्हा॥
अब आवे न निंदिया बहुत है लजाती॥
जब जवानी की यादे॥ बुढापे में आती॥
गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥
जवानी के जोश छपरा हिलाए॥
अंधन का रास्ता साहिये बताये॥
ढिठाई तो दूर हमें देख भाग जाती॥
जब जवानी की यादे॥ बुढापे में आती॥
गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥
रारी से राह करे अधर्मी का पीटे॥
बुरायी से दूर रहे सच्चायी का जीते॥

बुधवार, 28 जुलाई 2010

भौजी कय करिहाव लचक गय...

भौजी कय करिहाव लचक गय...

माई गिरी पिछवारे ॥

गोलारे दौड़ आवा॥

भैस आयी बा दुआरे..

गोलारे दौड़ आवा॥

ऊ अपने टेधकी सिंघिया से॥

भौजी का देरवईश ॥

कूद गयी खाले मा भौजी॥

कुकुरिया पोव पोव चिल्लाईस॥

लाठी लय के माई खादेरय भैसिया॥

गोलारे दौड़ आवा॥
भैस आयी बा दुआरे॥

झट से लठ माई मारी लाठी गय टूट॥

हौकिस भैस मुह से माई feki पसेरिन थूक॥

फेकिस भैस गिरी पिछवारे हाय हाय चिल्लाय॥

भैस पदरौकी गय बगिया मा हिया नहीं देखे॥

मन जब चेताय गा माई धोती सुधारय॥

गोलारे दौड़ आवा॥
भैस आयी बा दुआरे..

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

भैया हमरे डी.एम बाटे॥

भैया हमरे डी.एम बाटे॥

बीच सड़क दौड़ा दूगी॥

जौ बीच बजरिया अकडो गे॥

सूली पे चढवा दूगी॥

जब मै चलती रुक जाती है॥

सैट सहेलियों की टोली॥

मै रुकती जब खुद रुक जाती॥

सात रंगों से रंगी घोड़ी॥

अगर अब पीछे मेरे पड़ोगे॥

चक्की में पिसवा दूगी॥

बीच बजरिया अकडो गे॥
सूली पे चढवा दूगी॥

मै हंसती तो मोती झरते॥

हर संभव प्रयास के॥

तेरी तो साड़ी चलन बुरी है॥

नियत तो लगती पाप के॥

देखना मेरा सपना छोड़ दे॥

नहीं सरे आम मरवा दूगी॥

बीच बजरिया अकडो गे॥
सूली पे चढवा दूगी॥

मेरे पापा की तूती बोले॥

हाथ इलाका जोड़े॥

प्रधानिं मेरी मम्मी जी है,,

जिधर चाहे उधर मोड़े॥

सभी सभ्यता प्रशंसक बन जा॥

नहीं दंड बैठक करवा दूगी॥

हमरा बलमा बटे दरोग़ा.

हमरा बलमा बाटे दरोगा॥ जा के रपट लिखाऊगी॥

चोरी हमारा दिल भइल बा येही बात बताऊगी॥

साथ मा चोरी भूंख भइल ब नींद शान्ति लय गइला॥

झक झक झक झक भरसे जवानी बड़ा जुलुम कय गइला॥

कानूनी डंडा से उनको थाने में पिटावौगी॥

हमरा बलमा बाटे दरोगा॥ जा के रपट लिखाऊगी॥

जब न रपट लिखे गे हमारी माने गे नहीं बात॥

फिर तो अनर्थ हो जाएगा देखूगी औकात॥

हर धारा में फंसा के उनको जेल तलक पाहुचौगी॥

हमरा बलमा बाटे दरोगा॥ जा के रपट लिखाऊगी॥

लरिकन संग गुल्ली खेला करय...

गली गली बिछुवा हेरा करय

लरिकन संग गुल्ली खेला करय॥

काजू मागावे बादाम बगावे॥

अपने मुड़वा के जुवा हेरवावे।,.

बार बार मुहवा मोड़ा करे...

लरिकन संग गुल्ली खेला करय॥

गोडवा के उनके जब बाजे पयालिया॥

अचरज माने गोरकी सहेलिया॥

फुलवा गुलाब जस खिला करे...

लरिकन संग गुल्ली खेला करय॥

मचलय जवानी लहराय ओढनिया॥

खन खन करली उनकी झुलानिया॥

अटके जब मुसरा हीला करय...

लरिकन संग गुल्ली खेला करय॥

होतय भिनौखा मलीन भइली देहिया॥

नाजुक उमरिया लागौलू तू नेहिया॥

प्यार वाली चुनरी गीला करे...

लरिकन संग गुल्ली खेला करय॥

जब धूल निकलती है...

जब धुप निकलती प्रातः काल कलियाँ खिल खिल हंसती है॥

पेड़ पे बैठी चिड़िया रानी चू चू ची ची करती है...

जग जाते है सरे प्राणी बब्लू स्कूल को जाता है॥

द्वारे द्वारे जोगी जाके प्रभु की अलख जगाता है॥

राम राम जब सों चिरैया ले ले कर रटती है॥

मेरे आँगन में गौरैया फ़र फ़र फुदकती है॥

तब दिन दिवाकर बन जाते है अपनी किरण फैलाते है॥

हर किसान खेतो में अपने काम से जुट जाते है॥

सब सुख शान्ति ले करके उनकी ज्योति चमकती है॥

नींद की सोच...

नींद में चश्मा टूटा लिख न सका वह व्यंग॥

जिसके सातो स्वरों में अलग अलग प्रसंग॥

सोते समय कुछ याद आया शब्दों का व्यवहार॥

काल सुबह अखबार में पढ़े जाते आचार...

कुर्सी गिरी चश्मा टुटा फूटा मेरा कपार॥

बेहोशी में अस्पताल गया करवाता उपचार...

लिखना था लोभी नीच पर जो बनाते बहुत दबंग॥

उनकी करतूतों की कडिया कितनी है बदरंग॥

नर्स बड़ी अच्छी मिली थी बहुताय मिलनसार॥

समझ गया था उसके गुण को अच्छा था व्यवहार...

मै बोला मुझको चाहिए कागज़ कलम दवात॥

प्रेस को लिख के भेज दी उनकी कटही औकात॥

अखबार में लिखा देख के किया विषय का अंत॥

नींद की सोच...

सोमवार, 26 जुलाई 2010

रात नाही सोयली..

भइली जवानी जब से॥
चटकोर चाँद लागली॥
आधी आधी रतिया॥
निदारिया से जगती॥

चारो आँख लड़ते बहुत कुछ कहती॥
कैसे हाल चाल इशारा इधर करती॥
बैठो आवा बगली बिजली गुल भइली॥
आधी आधी रतिया॥
निदारिया से जगती॥

बोलिया तो उनकी कैली मदहोश॥
हथवा लागौतय चढ़ गइला जोश॥
रतिया बेकार भइल बिजली आय गइली॥
आधी आधी रतिया॥
निदारिया से जगती॥

माई पूछे कहा आवत बाटू धिरिया।
कहू नाही गय रहली खाय गए क्रिया॥
जल्दी भिनौखा भैला रात नहीं सोयली॥
आधी आधी रतिया॥ निदारिया से जगती॥

हमारे शरिरिया कय खिल गइली कलियाँ॥
चारो जून पहरा दिये लाग मलिया॥
प्यार बड़ा महागा पडा मार हम खैली॥
आधी आधी रतिया॥
निदारिया से जगती॥

तीन तराने गाऊगी॥

हे महा युद्ध के महारथी॥
आज तुम्हे अजमाऊगी॥
तेरे सीने पर चढ़ के॥
तीन तराने गाऊगी॥

पहला तराना यही है मेरा॥
शौक सिंगार सुहाना हो॥
भरी सभा में आभा चमके॥
ऐसा मेरा ज़माना हो॥
अपने इशारे पर तुमको॥
तेरह बार नाचाऊगी॥
तेरे सीने पर चढ़ के॥
तीन तराने गाऊगी॥
दूसरा तराना यही रहेगा॥
दूसरा तराना यही रहेगा।
कोई हमें न झांके॥
तेरी बंद पड़ी पुतकी को॥
कोई और न खोले॥
हर संभव प्रयास करूगी॥
अपनी माँग सजवाऊगी॥
तेरे सीने पर चढ़ के॥
तीन तराने गाऊगी॥
तीसरा तराना यही हमारा॥
मेरे बच्चे भविष्य सजाये॥
संस्कारों की ज्योति जलाए॥
सुख संपाति घर आये॥
सात जन्मो तक हंस हंस करके॥
तुमसे ब्याह रचाऊगी॥
तेरे सीने पर चढ़ के॥
तीन तराने गाऊगी॥

तड़का..

करय लागी बतिया ॥
कमरिया हिलाय के॥
लाज शर्म भूल गयी॥
सासुरवा से आय के॥
भूल गयी आन मान मारे लंगोटी॥
अगवा का घुमय खोल के छोटी॥
हमके ललचाय गयी अंचरा गिरे के॥
लाज शर्म भूल गयी॥
सासुरवा से आय के॥
पाय के अकेले करती रैसा॥
कहय हिया कय लिया देबय पैसा॥
हमें फुसलाय गयी तडका लगाय के॥
लाज शर्म भूल गयी॥
सासुरवा से आय के॥
रात अंधेरिया हमके टटोले.॥
हमारे शरिरिया मा ताकत घोले॥
हमके हिलाय गयी झटका लगाय के॥
लाज शर्म भूल गयी॥
सासुरवा से आय के॥

रविवार, 25 जुलाई 2010

बाजू वाली अंटी //////



बाजू वाली अंटी चारो जून॥मुझको दूध पिलातीहै॥


तेल मालिश करके फिर मुझको नहलाती है॥


मम्मी का सहारा छूट गया है॥


दीदी स्कूल जाती है॥


पापा तो मकदून गए है॥


अंटी ही हमें सजाती है॥


जब मै तंग करता उनको॥


वे हमको फुसलाती है॥



कहती बन्दर आयेगा॥ तुम्हे मिठाई लाएगा॥


तुम हंस के मिठाई खाओगे॥ बन्दर से लड़ जाओगे॥


तोता मैना का किस्सा हमको रोज़ रात सुनाती है॥


तेल मालिश करके फिर मुझको नहलाती है॥


दुःख तकलीफ हमें जब होता॥ अंटी जी रात भर जागती है॥


गोद में मुझको ले कर के॥ इधर उधर भटकती है।


मेरी माँ से ज्यादा ममता॥ वे मुझपे दिखलाती है॥


तेल मालिश करके फिर मुझको नहलाती है॥


छप्पन छुरी खेला करे..



छप्पन छुरी खेला करे॥


रतिया में कलियाँ खिला करे॥


पहली बाते वे नयी नवेली॥


लप लप चमके उनकी हवेली॥


कुर्ती कय बाजू ढीला करे॥


रतिया में कलियाँ खिला करे॥


लगवा गुलाब लागे ओठवा चमेली॥


सजली मेहदिया से उनकी हथेली॥


बहे पुरवैया तो हिला करे...


रतिया में कलियाँ खिला करे॥


अंखिया चकोर उनकी लागे लडावे ॥


अपने गहरा पे शम्भू का बुलावे॥


तीन दायी कपड़ा गीला करे॥


रतिया में कलियाँ खिला करे॥

हम सच्चायी लिखते है...

गहराई समुन्दर से॥

सच को लाते है॥

सच को उजागर करते॥

सच ही दिखाते है॥

हम लौह पुरुष बन के॥

उनके पीछे लगे जाते है।,॥

उनके कर्म कुकर्मो का रूप॥

दिखाते है...

फिर परदे पर आने में वे॥

दुल्हन जैसे शर्माते है॥

पत्रकारों की रचना पढ़ लेते है प्राणी॥

उनको मुर्ख समझ के अपने को समझे ग्यानी॥

ताजुब वाली बात हम सच सच बतलाते है॥

पत्रकार की कलम जब चलती..



पत्रकार की कलम जब चलती॥


लिख देती सच्चाई को॥


बरखुरदार को नींद न आती॥


देख देख तन्हाई को॥


पत्रकार की कलम जब चलती॥
लिख देती सच्चाई को॥


भन्दा फोड़ देते पापी के॥


कानून सख्त हो जाता॥


सही शब्द का सही अर्थ अब ॥


उनको बहुत रुलाता॥


नाप तौल के मैंने लिख दी॥


लालच और ठिठाई को॥


पत्रकार की कलम जब चलती॥
लिख देती सच्चाई को॥


बड़े बड़े लोगो का हाथ है सर पर॥


गूंगा बनाता कानून॥


जिसकी जंग वही है जीता॥


अब भी रहे शुकून॥


हमारा मालिक अब तो रब है॥


मै दूर करूगा बुरायी को...


पत्रकार की कलम जब चलती॥
लिख देती सच्चाई को॥

सतरंगी सपना..

हिलय लाग खटिया ,,

बहारे लाग बढ़नी,,

बाजय लाग टठिया॥

चालय लाग चलानी॥

कैसी अनोखी घटना॥

ई घट गइली...

जाय के नदिया मा मारे डुबकी॥

हमका गटक गय एक ठी मेढकी॥

ताजुब वाली बात आज ॥ आँख देख आइली॥

कैसी अनोखी घटना॥
ई घट गइली...

अखिया तो देखिस बहुते अचम्भा॥

सोने के घरवा मा खोने के खम्भा॥

बोलय लाग सुपवा ,,खुटिया मुस्कैली॥

कैसी अनोखी घटना॥
ई घट गइली...

घोड़ा रामायण पढ़े॥बकरी पोथी ॥

भैस पहने घाँघरा..गाय पहने धोती॥

ऐसी बिच्त्र बतिया हुआ घट गइली॥

कैसी अनोखी घटना॥
ई घट गइली...

एक ठौर कुकरा से भैली मुलाक़ात॥

कैसे बाहर जायी पूछले बवाल...

भौ भौ कैले तो आँख टूट गइली॥

कैसी अनोखी घटना॥
ई घट गइली...

सतरंगी सपना..

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

प्रेमी...

मै प्यासा एक प्रेमी हूँ॥

जो इधर उधर भटकता हूँ॥

अपनी प्यारी प्रिया के गम में॥

बिन बरसात तड़पता हूँ॥

मै घर वालो के अरमानो का॥

एक अनमोल सितारा था।

अपने घरवालो का प्यारा॥

उनकी आँखों का तारा था।

पढ़ते पढ़ते इश्क लगाया॥

अब आँखों से आंसू छिड़कता हूँ॥

कुछ दिन तक मौसम मूक बना था।

सपना बहुत सजाये थे।

उसके प्यार में पींगे भरते॥

सावन में गीत भी गाये थे।

वह दूर गयी अब न आयेगी॥

यही सोच कर बिलखता हूँ॥

शायद उसकी शादी हो गयी।

या दे दी होगी कूद के जान॥

मै तो उसका आशिक बन बैठा॥

बन न सका प्यारा इंसान॥

उसके ही ख्यालो में अब तक॥

टूटे बाल झटकता हूँ...

प्रेमी॥

पहली पहली मुलाक़ात हो....

जब खिला चंद्रमा रात हो॥

पहली पहली मुलाक़ात हो॥

प्यारे तारो का साथ हो॥

सँघ प्रियेतम का हाथ हो॥

तब नदिया कल कल बोलेगी॥

मस्त पवन भी डोलेगी॥

बन में मोर भी नाचेगा॥

पायल का घुघरू बाजेगा॥

ऐसी सजी वह रात हो॥

जब साजन का साथ हो॥

जब खिला चंद्रमा रात हो॥
पहली पहली मुलाक़ात हो॥

वन उपवन सज जायेगे॥

भौरे कलियों पर आयेगे॥

प्रेम गीत भी गायेगे॥

अपनी बात बतायेगे॥

तब चहरे पर साज़ हो॥

जब खिला चंद्रमा रात हो॥
पहली पहली मुलाक़ात हो॥

मन चंचल होके डोलेगा॥

प्रिये से प्रेमी बोलेगा॥

छुपे राज़ को खोलेगा॥

कानो में मिठास तो घोलेगा॥

होठो पर मुस्कान हो...

जब खिला चंद्रमा रात हो॥
पहली पहली मुलाक़ात हो॥

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

राम्लाल्वा कय किस्मत फूटी..


रम्लाल्वा कय किस्मत फूटी॥
कलयुगी मेहरिया आइल बा॥
चार हण्डिया का चाट चूट के॥
रम्लाल्वा पे घात लागाइल बा॥
रम्लाल्वा कय किस्मत फूटी॥कलयुगी मेहरिया आइल बा॥

करय इशारा हयने आवा॥पहले तेल लगावा॥
गमकौवा साबुन लय हमका॥
गोदिया मा नहवावा॥
बड़ी गरू देहिया बा ओके।
भैसी जस मोटईल बा॥
रम्लाल्वा कय किस्मत फूटी॥
कलयुगी मेहरिया आइल बा॥


सास का धक्का दय देहलिस॥
ससुर कय खोलिस धोती॥
ननदी का जम के गरियाईस॥
देवरा कय खिचिस लंगोटी॥
धमा चौकड़ी दिन दुपहरिया॥
संध्या भोर मचैल बा॥
रम्लाल्वा कय किस्मत फूटी॥कलयुगी मेहरिया आइल बा॥

छत पे चढ़ के सिटी बजावे॥
खोले बाटे अखाड़ा॥
बड़े बड़े पहलवान है आवय॥
फट फट होय किवाड़ा॥
फ़ोकट माँ लाठी चल जाए॥
ऐसी उधम मचाइल बा॥
रम्लाल्वा कय किस्मत फूटी॥कलयुगी मेहरिया आइल बा॥

पियारे कय बिटिया..



घर मा खटिया बिछावा लुटावा न इज्जतिया॥


गन्धाय जाबू पियारे कय बिटिया ........................


तोहरे अंखिया कय कजरा बिरावे॥


हंस हंस तोहरा होठवा बोलावय॥


जाने गउवा के तोहरी अदातिया॥


घर मा खटिया बिछावा लुटावा न इज्जतिया॥
गन्धाय जाबू पियारे कय बिटिया ........................


नाजुक कलियाँ तोहरी खिली है॥


चुनरिया मैली कैसे भइल है॥


बिना मतलब नइखे बोलावा बिपतिया॥


घर मा खटिया बिछावा लुटावा न इज्जतिया॥
गन्धाय जाबू पियारे कय बिटिया ........................


सीधा स्वाभाव तोहरा भइल चतकोर॥


छुप छुप बात करा चर्चा चारिव और॥


दाग न लगावा कितनी सुन्दर सुरतिया॥


घर मा खटिया बिछावा लुटावा न इज्जतिया॥
गन्धाय जाबू पियारे कय बिटिया ........................

रविवार, 18 जुलाई 2010

मै महा दरिद्र की बिटिया हूँ..


मै महा दरिद्र की बिटिया हूँ...

जो सच्ची बात बताती हूँ॥

तुमतो सरकारी अफसर हो॥

तुमसे नहीं सुहाती हूँ॥


हमें न आवे हेल्लो हाय ॥

हाउ आर न जानू॥

जो संस्कारों की डूरी पहनी॥

उसी को सब कुछ मानू॥

मै चुल्हा चौका करने वाली॥

कहने में थोड़ा लजाती हूँ॥

मै महा दरिद्र की बिटिया हूँ...
जो सच्ची बात बताती हूँ॥


काली कलूटी अनपढ़ हूँ॥

तुम सीप के निकले मोती हो॥

तेरे संग चलने में मुझको॥

हवा कहे तुम छोटी हो...

मै कथरी पर सोने वाली॥

डनलप सुन पछताती हूँ॥

ईजा पीजा बिरयानी ॥

मै महा दरिद्र की बिटिया हूँ...
जो सच्ची बात बताती हूँ॥


हमें बनाने नहीं आती॥

मेरी परछाई ही से॥

दूध कीछे काळी पद जाती॥

समय बहुत सुन्दर होता॥

दशा देख रूक जाती हूँ॥

मै महा दरिद्र की बिटिया हूँ...
जो सच्ची बात बताती हूँ॥

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

आनर किलिंग

राम दास बिटिया मरवाये॥

कैहय का ज़माने का॥

सारा खजाना खाली होए॥

सड़ जैहै जेलखाने माँ॥

बहुत पढौले बहुत लिखौले॥

बहुत किये उपचार ॥

सांझ सबेरे फूक लागौले॥

बहुत थे करते प्यार॥

प्रेम रोग लागा लड़की के॥

कय देहलेश इज़हार॥

अपुना तो पापी खुद बनले॥

संग फसौले पांडे का॥

राम दास बिटिया मरवाये॥
कैहय का ज़माने का॥

मन पसंद शादी कय लहलिश॥

तो कौन किया अपराध॥

कौन सी इज्ज़त मान घटल बा॥

कहा से घटी बा शान॥

बड़ा क्रूर अब बना ज़माना॥

सोचा नफ़ा घराने का॥

आय लगा कानून कय डंडा॥

का हाल बा कैद खाने माँ...

राम दास बिटिया मरवाये॥
कैहय का ज़माने का॥

होय जाबय बदनाम बबुवा॥

नाहक रार मचावत बाटेया ॥

न करा उपद्दरी काम॥

बबुआ॥

होय जाबय बदनाम बबुवा॥

न मिला कोलिया पिछवारे॥

न मिला नदिया के तीर॥

न तो मीठी बोली बोला॥

न बजावा रतिया बीन॥

करा पदाई छोड़ा लफडा॥

बन जाबेया इंसान बबुवा॥
होय जाबय बदनाम बबुवा॥

न आँख चलावा न मुस्कावा॥

न करेया घर पे फ़ोन॥

बडका भैया पुलिस मा हमरे॥

छोटका बहुत बहावै खून॥

kरूर समय जल्दी आ जाए॥

बुरा होए अंजाम बबुवा॥

होय जाबय बदनाम बबुवा॥

दमदार पीया...



जा गिरा दुपट्टा थाने में॥


दमदार पीया लेके आना॥


मत डरना थाने दार से ॥


ना जाके भरना हर्जाना॥


ताकत है तुम्हारे बाजू में॥


डरने का कोई नाम नहीं॥


कह देना उससे वह मेरा है॥


ना माने तो सुनाना मेरा aफसाना॥


मै थाल सजा के रखू गी॥


आते ही तिलक लगाऊगी॥


मेरे चरणों की दासी बन कर॥


तेरा ही गुण तो गाऊगी॥


उस थाने को ठंडा कर दूगी॥


जब कोई बताये गा औरा बहाना॥


जा गिरा दुपट्टा थाने में॥
दमदार पीया लेके आना॥
मत डरना थाने दार से ॥
ना जाके भरना हर्जाना॥


सोमवार, 12 जुलाई 2010

फिर भी जी रहा हूँ.....................

आंसूओ से गिरते गम को॥
दारू में पी रहा हूँ॥
उलझी पडी है जिंदगी॥
फिर भी मै जी रहा हूँ॥

दिन भी लगा चिढाने॥
रात तडपाती है॥
सूरज न हंसने देता॥
बीती बाते रुलाती है॥
कैसा तूफ़ान आया॥
जो घुट घुट के जी रहा हूँ॥
उलझी पडी है जिंदगी॥
फिर भी मै जी रहा हूँ॥

कोयल की बोली मुझको॥
कौआ सुनाता है॥
सूखा चमन पडा है॥
कुछ नजर नहीं आटा है,,,
अपने ही कर कर्मो पे॥
आंसू बहा रहा हूँ॥
उलझी पडी है जिंदगी॥
फिर भी मै जी रहा हूँ॥

घर के लोग पागल की...
उपमा तक दे डाली॥
मुझे देखते ही...
बंद करते है॥
किवाड़ी...
मैंने किया गलत था क्या॥
जो अब पछता रहा हूँ॥
उलझी पडी है जिंदगी॥
फिर भी मै जी रहा हूँ॥

दरिन्दे लोग बिलखता कूप..

हमारा देश क्रषि प्रधान देश है , जैसे जैसे लोगो के ज्ञान का उदय हुआ वैसे वैसे आव्शायाक्ताये बढाती गयी। नयी नयी सभ्यताओं का उदय हुआ , पहले के लोग अपनी खेती नदिया.ताल्बो , तथा कुआ से करते थे,,

यही नहीं जो लोग कुआ तालाब kहुदाते थे, उन्हें रईसों में गिनती की जाती थी। यही कहानी कचनार पुर गाँव की है,। यहाँ पर एक कुआ है गाँव की सीमा पर है, जो उस जगह के वातावरण को बनाए रखा था। कुछ लोग कहते है की ये मुसलमानों के शाशन काल का है, क्या भी बहुत ही बड़ा और सुन्दर बना था, पहले यहाँ पर इस कुआ का पानी ऋषि,मुनि, राजा महाराजा, गाँव के २० किलो मीटर के लोग इस कुए का पानी पीते थे, एक बार की बात यहाँ लोग गाय। भैस चराते थे,। अनजान में कुए के अन्दर के बछिया गिर गयी लोग ढूढते रहे लेकिन कुए के पास कोई नहीं आया , रात बीत गयी सुबह हो गयी। तो लोग उधर दिशा मैदान के लिए जा रहे थे की कुए से बछिया की आवाज़ आ रही थी। लोगो ने कुए के अन्दर देखा तो बछिया आराम से खड़ी थी और बाहर निकालने के लिए उतावली थी। लोगो को आश्चर्य का ठिकाना न रहा क्यों की कुआ सूख गया था, जब लोगो के प्रयास से बछिया को बाहर निकाला गया तो ,। कुए के अन्दर फिर से पानी आ गया॥ लोग उस कुए की पूजा करते थे। दिवाली पर दिया जलाते थे। अब लोगो को सरकार ने सुविधाए उप्लाव्ध्करा दी है, अब तो कोई उस कुए के पास जाता ही नहीं,,, कुछ स्कूली सरारती छात्र रोज़ उस कुए के पास जाते है, और उस किये की छुही गिरा गिरा के कुआ भांठ रहे है, आज वही कुआ रो रहा है, इस जमाने पर क्यों की पहले के लोग कुए का सम्मान करते थे। अब तो लोग कुए को भांठ रहे है, और उसमे थूक भी रहे है, कुआ कहता है की हमें भान्ठाने का डर नहीं मुझे इस बात का अफसोश है , की अब मै किसी की प्यास नहीं बुझा सकता हूँ। मेरा पानी अशुद्द हो गया है, मेरा अश्तित्व समाप्त हो रहा है,

शनिवार, 10 जुलाई 2010

करम फूट किस्मत का कोसी..

रोज़ नये नए संवाद बीबी घर ले आती॥
पड़ोसियों के काले करतूतों को बतलाती॥

कहती रामुवा कए भैस बियाई है पड़िया॥
ओकरे गले मा बधी पांच किलो कय हड़िया॥
पड़िया पैदा होत भैसिया बहुत चिल्लात रही॥
मोनुवा कय बिटिया खड़ी बात ओनात रही॥
हमहू रहे जवान कतहू गह्दाला नहीं मारे॥
न ताके आगे कोने न ताके टटिया पिछवारे॥
मन मा बहुत ग्लानी भरी बा एही खातिर तुतलाती॥

मै बोला की श्रीमती जी जाके लाओ पानी॥
हमें नहीं सुननी है तुम्हारी मनगढ़ंत कहानी॥

करम फूट किस्मत का कोसी॥

शम्भू नाथ

हां मै झूठ बोल रही हूँ मन की मटमैली हूँ॥
जो मन भाये वही तुम बोलो क्या कागज़ की थैली हूँ॥
आँख मा आंसू भरि आवा नाहक रार मचाती॥

ठंडा कैसे मै भी पड़ता मिला न मुझको दाना पानी॥
राम केहू का अब मत देना हमरे जैसे घरवाली॥
मन उदास चितवन कलुई भय चारपाई पे बैठी॥
करम फूट हम रोटी बनाई लरिकन से भी ईठी॥
किस्मत फूट करम का कोसी ऐसी रही कहानी॥

ससुरा बेईमान.. हमके नज़रिया मारे..

फुसुर फुसु रतिया मा॥

ससुरा जब बोलय॥

कौन के कहा बा ॥

अँधेरे मा टटोले॥

लागल सवनवा घर मा अकेली॥

नइखे कुछ पता बा नयी नवेली॥

देख के अकेले बुरी नज़र फेरय॥

फुसुर फुसु रतिया मा॥
ससुरा जब बोलय॥
कौन के कहा बा ॥
अँधेरे मा टटोले॥

अपने सजनवा से करवे शिकायत॥

हिया नहीं रहवे चलवे बिलायत॥

सुबह शाम देहरी बार बार छेड़े॥

फुसुर फुसु रतिया मा॥
ससुरा जब बोलय॥
कौन के कहा बा ॥
अँधेरे मा टटोले॥

बुत बर्दास्त करे बहुत समझाए॥

मानय न बुढ़वा बिना लटकाए॥

होय के उघार घुमय॥ प्रेम छोडे॥

फुसुर फुसु रतिया मा॥
ससुरा जब बोलय॥
कौन के कहा बा ॥
अँधेरे मा टटोले॥

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

डगर अनजानी..

पढो इसे ध्यान से जो लिखता कहानी॥
कच्ची कली थी वह चढ़ती जवानी॥
मन में गुरुर था कहती थी बाणी॥
मुझे देके बोली ये छोटी निशानी॥
॥ मै कैची की तरह कतरती हूँ॥
जो मुझपर चक्कर चलाता है॥
हाय हाय वह चिल्लाता है॥
बाप भी दौड़ा आता था॥
मुझको भी भाती है तेरी नादानी॥
कभी मेरी चुनरी उडी न वहा से॥
मै गयी भी कही न जो पूछे कहा से॥
मुझे भी तुम दे दो कोई निशानी॥
मै हुआ तर-बतर अचानक क्या हो रहा है॥
आज पहली बार कोई अपना कह रहा है॥
पर कैसे विस्वास करू डगर अनजानी॥

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

गाँव की निति..

चक्रौली पुर में २० लोगो का गाँव था । उस गाँव में सारे दबंग थे और एक ही जाति के ही थे॥ उसी गाँव के एक संपन्न किस्म का आदमी रहता था जिसका नाम था धीरज बहुत ही शान्ति प्रिये आदमी थे उनके अन्दर भक्ति भाव के अंश थे॥ और तो लोग बड़े अदाबंगे थे उस गाँव के ..लेकिन धीरज उन लोगो के से कम धनवान था फिर भी घर की रोज़ी रोटी चलती थी किसी के यहाँ भीख नहीं मांगना पड़ता था । धीरेअज़ अपने किसानी खेती में मस्त रहता था॥ धीरज के पांच बेटे पैदा हुए और धीरज ने नामकरण के अनुसार पहले का नाम पंचम दुसरे दूजे तीसरे का तीजे चौथे का चरुवा और पांचवे का पंचम रखा॥ बच्चे धीरे बड़ा होने लगा पंचम ने बच्चो को गाँव के रहन सहन से दूर रखा क्यों की पंचम का गांव से थोड़ा हट के था ॥ बच्चे पढ़ने में मस्त थे और वह दिन भी गया नौकरी करने लगे अब पंचम ने बहुत ही सुन्दर घर बनवाया जिसमे उसकी पांच बहुए रहेगी ,, पंचम यही बात सब से कहता था । अब गाँव के जो दबंग लोग थे॥ पंचम से जलने लगे ॥ पंचम का एक पडोसी था गाँव के दबंग लोग उसके कान भरने लगे की एबे पंचम तोहरा तो जमीनिया हड़प लहे है ॥ ओहमा आधा हिसा ली ले हम लोग तोहरे साथे है॥ आखिकार पंचम और पंचम के पडोसी में आये दिन तू मै मै होने लगी ॥ धीरे धीरे कई महीने बीत गए दिवाली का दिन था पंचम के पांचो बेटे शहर से घर पर आये थे और पडोसी के भी दोनों बेटे गाँव आये थे ,गाँव में उल्लास था गाँव एबी लोग मस्त होके पडोशी के घर पर आ के पडोसी से कहते है ॥ अब तोहे दुई लरिका आ गए है॥ फैसल्वा करवाय लिया यह बार ॥ पडोसी के बच्चे भी बोले हम उनसे कम थोड़े है ॥ देख लेगे ॥ इतने गाँव के लोग पंचम को पडोसी के घर से गलिया देने लगे पंचम के बच्चो ने पूछा अरे भाई क्यों गाली दे रहे तभी पंचम ने बोला चुप रहो इन लोगो का रोज़ का काम है हमें गाली देते है ॥ आज दिवाली है चलो घर के अन्दर तभी धाय की आवाज़ आती पंचम के सीने में गोली लग जाती सारे बच्चो पंचम को अस्पताल ले जाने के कोशिश कर ही रहे थे की पडोसी के यहाँ दो गोली दागने की आवाज लेकिन दिवाली का दिन था चारो तरफ से धाय धाय की आवाज़ आ रही थी पंचम को बच्चे अस्पताल ले गए । अब पडोसी के गाँव के १५ लोगो का तांता था बोले पंचम के पांचो लड़को ने इन बाप बेटो को मार डाला अब जो पंकज का पडोसी का एक बेटा बचा था वह भी कहने लगा ही इन्ही लोगो ने मारा होगा अकडू ने पंचम पर गोली चाल्या और पंचम मर गया लेकिन पंचम के बेटे तो उसे अस्पताल लेके चले गए॥ अब उस इमान दार आदमी को गाँव वालो पर सक हुआ लेकिन वह स्थिति को समझ कर कुछ नहीं कह सका गाँव के दबंगों के कहने पर वह पंचम के घर में आग भी लगा दिया क्यों की घर पक्का था इस लिए कम नुकशान हुया अब ॥ अब आंव के दबंगों के साथ वह इमानदार इंसान भी थाने में जा कर रिपोर्ट लिखवा दिया की पंचम के पांचो लड़को ने मेरे पिटा जी और भाई को गोली मार दिया वह तो मुझे भी मारना जा रहता थी लेकिन तब तक पंचम वहा गया और वह गोली घूम करके पंचम पर लगी जो पंचम को अस्पताल ले गए है॥ अब तो पुलिस भी अपने दल के साथ गाँव गयी और लाश का मुयायना किया ..अब पंचम के पांचो पुत्रो को पुलिस जेल में दाल दिया इसी शोक में पंचम अस्पताल में ही जा बसा सुरधाम ॥ ये पांचो लडके जेल में पडोसी का जो एक लड़का बचा था जो एक इमानदार था ॥ वह अपना दिमाग दौडाता और अपनी नौकरी करता था ॥ वही उसकी एक लड़की से दोस्ती थी जो शादी शुदा थी । एक दिन बात दोनों बैठ करके चाय पी रहे थे॥ तो वह लड़की बोली..(यह शादी शुदा है । लेकिन मै इसे लड़की इस लिए लिख रहा हूँ। की अभी इसका गौना नहीं गया है । यह भी गाँव की है॥ वह उस ईमान दार आदकी की मामा की लड़की है॥ आप अपने सदमे से उभर कर भाहर आइये आप को बहुत कुछ करना है। आप को अपने बाप और अपने भी के अपराधियों को सजा दिलवाना है॥ हां चार दिन बाद फैसला है तुम मेरे साथ चलना गाँव चलेगे वैसे दोनों लोग समयानुसार कोर्ट में चलेगे॥ ठीक है। जब वे लोग गाँव जाते है तो देखते है। की गाँव के दबंग लोग यहाँ पर गाय भैस भंधाना शुरू कर दिए है , दोनों घरो के दरवाजे टूटे पड़े पंचम के घर का और ईमान दार आदमी के घर का ..एमाना दार आदमी का नाम था इंसान ॥ अब वह उस अपने मामा के लड़की को बताने लगा की ये गाँव वालो की सलाह के द्वारा ही दोनों परिवार में फूट पड़ी है॥ इस गाँव के बाहूबली नहीं चाहते की हम लोग उन्नति करे ॥ उन्ही लोगो के कारण की आज पंचम दादा के पांचो लडके जेल में है॥ न तो उन लोगो ने ने हमारे भाई और बाप को गोली मारे और न ही हम लोगो ने पंचम दादा को गोली मारे है ,,हमें बहुत अच्छी तरह याद है। की ..दिवाली का दिन था शाम का समय था लोग अपने घरो खेतो बाग़ हर एक जगह नदी तालाव तक भी दीप जलाए जा रहे थे तभी हमारे घर गाँव के दस लोग हमारे घर पर आये मेरे पिता जी से कहते हुए बोले की आज तो तुम्हारे दोनों बेटे भी है। और पंचाम्वा के भी हो जाने दो॥ तब कुछ लोगो ने हमारे दरवाज़े से पंचम दादा को गाली देने लगे॥ पंचम दादा कहते हुए बोले अरे आज तो बवाल मत करो आज दिवाली है , भाई..तभी अकडू ने गोली चला जिससे पंचम दादा घायल हो गए॥ और भगदड़ मच गयी॥ मै भी सुरक्षित होने की कोशिस करने लगा तभी हमारे घर धाय धाय की आवाज़ और बाबू भैया की चीत्कार भी॥ हां जब मै दौड़ा तो भगदू और झगरू असलहा फेक रहे थी पंचम दादा के अहाता में॥ जिस कपडे से साफ़ करके फेके थी वह कप्का मै भी छुपा के रखा हूँ। मझे पता है पंचम दादा के पांचो लडके बहुत ही सरीफ है॥ वे लोगो ने टी बिना वजह के जेल की तोतिया खा रहे है । ठीक है ॥ लड़की कहती है की कल कोर्ट में हम लोग साड़ी बाते बता देगे की ये पांचो भाई सरीफ है ॥ हां शोमिया आप ठीक कहते है नहीं तो उन पांचो लोगो को सजा हो जायेगी ॥ ठीक है। अब दुसरे दिन सोम्या और शरीफ इंसान कोर्ट में बताते है । की हमारे पिता जी और हमारे भाई और पंचम दादा को हमारे गाँव के पांच दबंगों ने गोली मारी है । उन पांचो सारीफ आदमियों को छो डी दिया जाए और इन पांचो दबंगों को बंद कर दिया जाये॥ मुझे भी ये लोग गोली मारने के चक्कर में थे लेकिन मै तो रात को ही शहर भाग गया था॥ मै वह भी सबूत दे सकता हूँ। इतना ही नहीं ये लोग हमारे और पंचम दादा के घरो के सारे सामान हड़प ले गए है॥ गाँव के पांचो दबंगों को पुलिस पकड़ के जेल में बंद कर देती है और इन पांचो भाइयो को छोड़ देती है...

१२ दिन का बच्चा चल कर.. भगवन को अचरज आया..था..

जब आकाल पडा था पृथ्वी पर॥

महाकाल बौराया था॥

१२ दिन का बच्चा चल करके॥

त्राहि त्राहि चिल्लाया था॥

महाकाल जब देखा बच्चे को॥

मन में शोक जताया था॥

कौन तेरे माँ बाप वत्स है॥

तुमको किसने उसकाया था॥

हाथ जोड़ कर बाला बोला॥

मै पुण्य पुरुष कहलाता हूँ॥

घायल मेरे माँ बाप pअड़े है॥

मै संजीवनी उन्हें पिलाता हूँ॥

समय का चक्र गलत चला है॥

मै भी उससे टकराता हूँ॥

हठ मत कर वहा जाने की...

उस बाग़ की रक्षा करता हूँ॥

बिना इशारा कोई नहीं जाता॥

मै भी उससे लड़ता हूँ॥

बालक अपने मन मंदिर में॥

सेवा की तिलक लगाता था॥

१२ दिन का बच्चा चल करके॥
त्राहि त्राहि चिल्लाया था॥

बालक की हठ पर झुका महाकाल॥

सीने से उसे लगाया था॥

अपने कंधे पर बैठा कर॥

चारो धाम घुमाया था॥

बुधवार, 7 जुलाई 2010

कैसे प्रेम प्रीति होती..

प्रेम रस के स्वाद की॥

टोनिक पिलाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥

तुमको बत्ताती हूँ,।

जब कलियाँ खिलने लगती है॥

करती आकर्षित है॥

हँसते ही मोती गिरते॥

हो जाते हर्षित॥

kउछ ही पल में मै खिल जाती

॥आवे na laaz ab शर्म भी लुटाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

कुछ पल याद करती ॥

कुछ जाती भूल॥

जब सो जाती हूँ॥

पहनाते माला फूल॥

जब वे पास आते ॥

कुछ पल ही लजाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

गली गली गाव में ॥

हो जाती चर्चा॥

रोज़ रोज़ मिलने में ॥

होने लगा हर्जा॥

बड़ी ऊब सांस लगती॥

मै भी कुम्भ्लाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

जब कुल्लम खुल्ला होती है बात॥

कहते पास आओ रचाऊगा रास॥

अभी पर्दा मत खोलो ॥

मोहे आवे लाज।

पडा पल सुख देता॥

तुमको सुनाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

सादी हम कर लेते॥

घर को बसाते है॥

जीवन के सपने ॥

सारे सजाते है॥

कटीली डगर है॥

जो पैर खुजलाती है॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

ममता और क़ानून ..

आज दैनिक जागरण में छपी एक खबर की १४ साल बाद जुडवा बहाने मिली॥ कहानी कुछ अजीब थी इस लिए के माँ को ममता को एक लड़की कैसी कहती क्यों की जम से लेके १४ साल तक उस माँ के पास रहती है जो उसको पाला॥ उसके बाद कानूनी लड़ाई में वह अपने सगी सम्बंधिया के पास मतलब माँ बाप के पास आ जाती है॥



वही तो अच्छी माँ है मेरी॥
जी माँ ने मुझको पाला है॥
थपकी दे दे हमें सुलाती॥
पुचकारो से दुलारा है॥
जब मै मांगू हीरा मोती॥
ला के मुझको देती थी॥
मुझको पलको पे बिठाती॥
मेरी बलैया लेती थी॥
वही मेरी पुजनिये माँ॥
कभी नहीं दुत्कारा है॥
एक बार मै हाथ कर बैठी॥
अमृत सर को जाने को॥
कुछ कपडे गहने लेना था ॥
अपनी शौक मिटाने को॥
अभी उम्र नाजुक है बच्ची ॥
फिर भी मुझको पुचकारा है॥
इस कानूनी लड़ाई में तो॥
सच की हुयी विजय॥
पर उस माँ को नहीं भूलूगी॥
मात रहेगी अजेय॥
आज सगी माँ के घर में हूँ॥
तेरी ममता को बखाना है॥
अब सतायेगे माँ घर के हर कोने कोने॥
याद तुम्हारी जब आती है मै लगती हूँ रोने॥
मगर माँ चिंता तुम मत करना ॥
मै तेरी गोद में आऊगी॥
अपनी सगी माँ की ममता को॥
माते तुम्हे बताऊगी॥
ये माँ मुझको प्यारी है ...
पर तुम तो मुझे सुधारा है॥
शम्भू नाथ
९८७१०८९०२७

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

पहिल पहिल चुम्मा ॥ पहिल पहिल चुम्मा॥

जात रहे संग संग भूल हम कैली॥
पहिल पहिल चुम्मा ॥ पहिल पहिल चुम्मा॥
पप्पू का देके आइली॥
ओह चुम्मा से पपुवा दिंवाना॥
हमें झारियावय बनावय खाना॥
चढली जवानी होश हम खोइली॥
पहिल पहिल चुम्मा ॥ पहिल पहिल चुम्मा॥
पप्पू का देके आइली॥
सोलह सिंगार पपुवा करवावय॥
चमेली कय तेल देहिया मा लगावय॥
चार दाई चारिव जून ओहके नचैली॥
पहिल पहिल चुम्मा ॥ पहिल पहिल चुम्मा॥
पप्पू का देके आइली॥
रतिया मा हमरा नाम लय के सोवय॥
हमरे वीयोगवा मा पपुवा रोवय॥
शरम सारी भूल के पर्दा उठैली॥ पहिल पहिल चुम्मा ॥ पहिल पहिल चुम्मा॥
पप्पू का देके आइली॥

भरी जवानी मचलय देहिया॥

भरी जवानी मचलय देहिया॥

राजैया मा राजा राज आय जातेया॥

दूध जलेबी से भरी पूरी हूँ॥

धीरे धीरे राजा संग संग खातेया...

अंखिया से करली तोहके इशारा॥

पीछे के जाय खोल देबय किवाड़ा॥

कच्ची कच्ची कलियाँ का ॥

धीरे धीरे दबातेया॥

होठवा से होठवा पे लाग जैहे लाली॥

छूटे लागे गोला होए दिवाली॥

आज रात आय धुदम धाय मचातेया॥

सोमवार, 5 जुलाई 2010

मेरे महबूब आये हुए है..

बादलो आके आँगन में बरसो॥

मेरे महबूब आये हुए है॥

उनकी सूरत बड़ी खूब सूरत॥

मेरा सपना सजाये हुए है॥

चुग चुग फूलो की माला बनायी॥

मंडप में हाथो से पिन्हाई॥

अपनी ख़ुशी को ओ॥

मुझपर सब लुटाये है॥

बादलो आके आँगन में बरसो॥
मेरे महबूब आये हुए है॥

सोने की थाली में जेवना सजाई॥

अपने हाथो से उनको खिलायी॥

होठो की हंसी ओ ॥

मुझपर सब बहाए है॥

बादलो आके आँगन में बरसो॥
मेरे महबूब आये हुए है॥

लाची लावागी का वीरा लगाई॥

अपने हाथो को उनको देखाई॥

मेरी हंसी को देख कर॥

पलकों में बिठाए हुए है॥

बादलो आके आँगन में बरसो॥
मेरे महबूब आये हुए है॥

लड़की जवान बैठी कहवा बिहाई॥

ढल गय उमरिया आयी बुढ़ाई ॥
लड़की जवान बैठी कहवा बिहाई॥
जेकरे घर कबहू भैस नहीं चोकदय॥
खर कतवार घरे से न निकरय॥
उनहू मागे मोटर गाडी ॥
कैले ठिठाई॥
लड़की जवान बैठी कहवा बिहाई॥
बी।ये पास लरिका ॥
आवारा घुमय॥
रोजी शराब पियय॥
रास्ता मा झुमय॥
हालत देख ओकय॥
आवे ओकलाई॥
लड़की जवान बैठी कहवा बिहाई॥
बाप अड़ झक्की ॥
माई खेत निरवय॥
बड़ी बाटे फूहर॥
बहुत गरियावय॥
बन chaudhraeen ,,
लेवे अंगडाई॥
लड़की जवान बैठी कहवा बिहाई॥

आये हो इश्क बहार में..

मौसम मेहरवान है॥

कुछ साज तो बजा दो॥

आये हो इश्क बहार में॥

वह राज़ तो बता दो॥

कलियाँ खिल खिला के /॥

अंगडाई ले रही है॥

आओ हमारी बाहों में॥

ये बात कर रही है॥

भरी जवानी आंधी आयी॥

दिल की बगिया में ओट लगा दो॥

आये हो इश्क बहार में॥
वह राज़ तो बता दो॥

मोर है नाचत ॥कोयल गाती॥

मेढक की टर्र टर्र तान सुनाती॥

पड़ी फुहारे मन बौराए॥

आके मेरी प्याद बुझा दो॥

आये हो इश्क बहार में॥
वह राज़ तो बता दो॥

सूरज छुप गया ॥रात अँधेरी॥

देखो सरग में बदरी घनेरी॥

मै सज धज के कड़ी हुयी हूँ॥

प्रीतम मेरी मांग सजा दो॥

आये हो इश्क बहार में॥
वह राज़ तो बता दो॥

रविवार, 4 जुलाई 2010

जिसके कारण आज मै शराब पी रहा हूँ..

क्यों याद करके हंसती हो ॥
मेरी जिंदगी पर॥
अपने पराये बन गए॥
मै तनहा जी रहा हूँ॥
तुम्हारे लिए ही मै॥
खोदा अथाह सागर॥
बीच भावर में छोड़ कर॥
फोड़ दी थी तुमने गागर॥
इसी वियोग में प्रिये॥
जिंदगी को सिल रहा हूँ॥

याद होगा तुमको ॥
हमने जब तुमको थामा॥
कसमे सभी तुम भूल कर॥
दिखा दिया क्या ड्रामा॥
उसी ड्रामे के सदमे से॥
जिंदगी को पी रहा हूँ॥

मुझको समझ अब आयी॥
दिल कैसे टूटता है॥
बड़ा ही क्रूर बन कर॥
जब हमें कूटता है॥
उसके ही वार से मै॥
भिन्न भिन्न हो रहा है॥
तुम याद करके रखना॥
अपनी उस कमी को॥
जिसके कारण आज मै॥
शाराब पी रहा हूँ॥

शम्भू नाथ

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

मुन्नू...

मुन्नू फुलवा जैसे गमका करा॥

रतिया जुगुनू जस चमका करा॥

उड़न तश्तरी तोहके उडाये॥

बयारी बदरिया जिया लल्चावाये॥

अंखिया मा हमारे मटका करा॥

सूर्य चंद्रमा तोहके दुलारे॥

आवे बयारिया गर्दा झाडे॥

धीरे धीरे चला करा॥

पापा का फुश्लावत रहनी

ऊ बचपन कय दौर गुज़ार दीं॥

जब अम्मा तेल लगावत रहनी॥

हाथ पकड़ के बुआ चलावे॥

मौसी खूब दुलारत रहनी ॥

चाचा चाची की गोदिया माँ।

दादी जब पुचकारत रहनी॥

बाबा नाना कय गज़ब कहानी॥

मामी जी भरमावत रहनी॥

माटी लगाए नंघा घूमी॥

दीदी तेल लगावत रहनी॥

उधम धडाका चुल्हा फोरी॥

पापा का फुश्लावत रहनी॥