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गुरुवार, 22 जुलाई 2010

प्रेमी...

मै प्यासा एक प्रेमी हूँ॥

जो इधर उधर भटकता हूँ॥

अपनी प्यारी प्रिया के गम में॥

बिन बरसात तड़पता हूँ॥

मै घर वालो के अरमानो का॥

एक अनमोल सितारा था।

अपने घरवालो का प्यारा॥

उनकी आँखों का तारा था।

पढ़ते पढ़ते इश्क लगाया॥

अब आँखों से आंसू छिड़कता हूँ॥

कुछ दिन तक मौसम मूक बना था।

सपना बहुत सजाये थे।

उसके प्यार में पींगे भरते॥

सावन में गीत भी गाये थे।

वह दूर गयी अब न आयेगी॥

यही सोच कर बिलखता हूँ॥

शायद उसकी शादी हो गयी।

या दे दी होगी कूद के जान॥

मै तो उसका आशिक बन बैठा॥

बन न सका प्यारा इंसान॥

उसके ही ख्यालो में अब तक॥

टूटे बाल झटकता हूँ...

प्रेमी॥

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