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बुधवार, 7 जुलाई 2010

कैसे प्रेम प्रीति होती..

प्रेम रस के स्वाद की॥

टोनिक पिलाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥

तुमको बत्ताती हूँ,।

जब कलियाँ खिलने लगती है॥

करती आकर्षित है॥

हँसते ही मोती गिरते॥

हो जाते हर्षित॥

kउछ ही पल में मै खिल जाती

॥आवे na laaz ab शर्म भी लुटाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

कुछ पल याद करती ॥

कुछ जाती भूल॥

जब सो जाती हूँ॥

पहनाते माला फूल॥

जब वे पास आते ॥

कुछ पल ही लजाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

गली गली गाव में ॥

हो जाती चर्चा॥

रोज़ रोज़ मिलने में ॥

होने लगा हर्जा॥

बड़ी ऊब सांस लगती॥

मै भी कुम्भ्लाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

जब कुल्लम खुल्ला होती है बात॥

कहते पास आओ रचाऊगा रास॥

अभी पर्दा मत खोलो ॥

मोहे आवे लाज।

पडा पल सुख देता॥

तुमको सुनाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

सादी हम कर लेते॥

घर को बसाते है॥

जीवन के सपने ॥

सारे सजाते है॥

कटीली डगर है॥

जो पैर खुजलाती है॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

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