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शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

डगर अनजानी..

पढो इसे ध्यान से जो लिखता कहानी॥
कच्ची कली थी वह चढ़ती जवानी॥
मन में गुरुर था कहती थी बाणी॥
मुझे देके बोली ये छोटी निशानी॥
॥ मै कैची की तरह कतरती हूँ॥
जो मुझपर चक्कर चलाता है॥
हाय हाय वह चिल्लाता है॥
बाप भी दौड़ा आता था॥
मुझको भी भाती है तेरी नादानी॥
कभी मेरी चुनरी उडी न वहा से॥
मै गयी भी कही न जो पूछे कहा से॥
मुझे भी तुम दे दो कोई निशानी॥
मै हुआ तर-बतर अचानक क्या हो रहा है॥
आज पहली बार कोई अपना कह रहा है॥
पर कैसे विस्वास करू डगर अनजानी॥

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