रोज़ नये नए संवाद बीबी घर ले आती॥
पड़ोसियों के काले करतूतों को बतलाती॥
कहती रामुवा कए भैस बियाई है पड़िया॥
ओकरे गले मा बधी पांच किलो कय हड़िया॥
पड़िया पैदा होत भैसिया बहुत चिल्लात रही॥
मोनुवा कय बिटिया खड़ी बात ओनात रही॥
हमहू रहे जवान कतहू गह्दाला नहीं मारे॥
न ताके आगे कोने न ताके टटिया पिछवारे॥
मन मा बहुत ग्लानी भरी बा एही खातिर तुतलाती॥
मै बोला की श्रीमती जी जाके लाओ पानी॥
हमें नहीं सुननी है तुम्हारी मनगढ़ंत कहानी॥
करम फूट किस्मत का कोसी॥
शम्भू नाथ
हां मै झूठ बोल रही हूँ मन की मटमैली हूँ॥
जो मन भाये वही तुम बोलो क्या कागज़ की थैली हूँ॥
आँख मा आंसू भरि आवा नाहक रार मचाती॥
ठंडा कैसे मै भी पड़ता मिला न मुझको दाना पानी॥
राम केहू का अब मत देना हमरे जैसे घरवाली॥
मन उदास चितवन कलुई भय चारपाई पे बैठी॥
करम फूट हम रोटी बनाई लरिकन से भी ईठी॥
किस्मत फूट करम का कोसी ऐसी रही कहानी॥
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