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मंगलवार, 27 जुलाई 2010

नींद की सोच...

नींद में चश्मा टूटा लिख न सका वह व्यंग॥

जिसके सातो स्वरों में अलग अलग प्रसंग॥

सोते समय कुछ याद आया शब्दों का व्यवहार॥

काल सुबह अखबार में पढ़े जाते आचार...

कुर्सी गिरी चश्मा टुटा फूटा मेरा कपार॥

बेहोशी में अस्पताल गया करवाता उपचार...

लिखना था लोभी नीच पर जो बनाते बहुत दबंग॥

उनकी करतूतों की कडिया कितनी है बदरंग॥

नर्स बड़ी अच्छी मिली थी बहुताय मिलनसार॥

समझ गया था उसके गुण को अच्छा था व्यवहार...

मै बोला मुझको चाहिए कागज़ कलम दवात॥

प्रेस को लिख के भेज दी उनकी कटही औकात॥

अखबार में लिखा देख के किया विषय का अंत॥

नींद की सोच...

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