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सोमवार, 26 जुलाई 2010

तड़का..

करय लागी बतिया ॥
कमरिया हिलाय के॥
लाज शर्म भूल गयी॥
सासुरवा से आय के॥
भूल गयी आन मान मारे लंगोटी॥
अगवा का घुमय खोल के छोटी॥
हमके ललचाय गयी अंचरा गिरे के॥
लाज शर्म भूल गयी॥
सासुरवा से आय के॥
पाय के अकेले करती रैसा॥
कहय हिया कय लिया देबय पैसा॥
हमें फुसलाय गयी तडका लगाय के॥
लाज शर्म भूल गयी॥
सासुरवा से आय के॥
रात अंधेरिया हमके टटोले.॥
हमारे शरिरिया मा ताकत घोले॥
हमके हिलाय गयी झटका लगाय के॥
लाज शर्म भूल गयी॥
सासुरवा से आय के॥

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