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रविवार, 25 जुलाई 2010

पत्रकार की कलम जब चलती..



पत्रकार की कलम जब चलती॥


लिख देती सच्चाई को॥


बरखुरदार को नींद न आती॥


देख देख तन्हाई को॥


पत्रकार की कलम जब चलती॥
लिख देती सच्चाई को॥


भन्दा फोड़ देते पापी के॥


कानून सख्त हो जाता॥


सही शब्द का सही अर्थ अब ॥


उनको बहुत रुलाता॥


नाप तौल के मैंने लिख दी॥


लालच और ठिठाई को॥


पत्रकार की कलम जब चलती॥
लिख देती सच्चाई को॥


बड़े बड़े लोगो का हाथ है सर पर॥


गूंगा बनाता कानून॥


जिसकी जंग वही है जीता॥


अब भी रहे शुकून॥


हमारा मालिक अब तो रब है॥


मै दूर करूगा बुरायी को...


पत्रकार की कलम जब चलती॥
लिख देती सच्चाई को॥

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