छप्पन छुरी खेला करे॥
रतिया में कलियाँ खिला करे॥
पहली बाते वे नयी नवेली॥
लप लप चमके उनकी हवेली॥
कुर्ती कय बाजू ढीला करे॥
रतिया में कलियाँ खिला करे॥
लगवा गुलाब लागे ओठवा चमेली॥
सजली मेहदिया से उनकी हथेली॥
बहे पुरवैया तो हिला करे...
रतिया में कलियाँ खिला करे॥
अंखिया चकोर उनकी लागे लडावे ॥
अपने गहरा पे शम्भू का बुलावे॥
तीन दायी कपड़ा गीला करे॥
रतिया में कलियाँ खिला करे॥
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
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