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बुधवार, 18 अगस्त 2010

अब बुढ़ापे की हमको हरारत लगे॥


अब बुढ़ापे की हमको हरारत लगे॥

आँख से धुधला पन यूं दिख रहा॥

कापता तन लिए धूठ को संग में॥

पाँव आने को जाने से अब रुक रहा॥

कान को कम सुनायी अब देने लगा॥

कौन बकता है क्या ये नहीं सुन रहा॥

जीभ को स्वाद लेना अब महागा पड़े॥

साथ दूगा नहीं पेट यूं कह रहा॥

अब तो लगता है हूँ मरने के मोड़ पर॥

संग छूटेगा अब मौन बन कह रहा॥

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

हमरा गउवा बदल के शहर होय गवा॥

मिल गय आजादी अव भय खुल गवा॥
हमरा गउवा बदल के शहर होय गवा॥
हर गाँव स्कूल खुले है ,,शिक्षा के जले है दीप॥
पक्की सड़क दुवारे तक है,, न मांगे अब कोऊ भीख॥
हमारे देशवा पकका बाज़ार खुल गवा...
हमरा गउवा बदल के शहर होय गवा॥
कम्पूटर कय आवा ज़माना॥
नेटवोर्किंग पय सुने लागे गाना॥
अपने लोगवन के मनाई कय भाग जग गवा॥
हमरा गउवा बदल के शहर होय गवा॥

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

मनवा उदास कय के हमें फुश्लावय ल॥

आय के अंधेरिया मा हमके जगावे ला॥

मनवा उदास कय के हमें फुश्लावय ल॥

संग मा मिठायी और लाये रसगुल्ला॥

खुश भइल जियरा करय हस्गुल्ला॥

हथवा से अपने हमके खियावे ला॥

मनवा उदास कय के हमें फुश्लावय ल॥


रिम -झिम सवनवा बहुत झकझोरय॥

बैरी पवनवा नसिया फोरय॥

पीछे वाला बाजू बंद धीरे धीरे खोलेला॥

मनवा उदास कय के हमें फुश्लावय ल॥

कनवा मा धीरे धीरे बोले बोलिया॥

भैली मदहोश खाए नशा वाली गोलिया॥

हथवा दिला पे हमरे लागावे ला॥

मनवा उदास कय के हमें फुश्लावय ल॥

सखी दय दा दवायी॥

हमरा देवरवा बीमार बा...

सखी दय दा दवायी॥

पहली बिमारी उनके अंखिया पे आयी॥

मौक़ा देख मच्लायी...

सखी दय दा दवायी॥

दूसरी बीमारी उनके मुहवा पे आयी॥

पाय अकेले मुस्कायी॥

सखी दय दा दवायी॥

तीसरी बिमारी उनके जिभिया पे आयी।

देखत लार टपकायी॥

सखी दय दा दवायी॥

चौथी बिमारी उनके हथवा पे आयी॥

रतिया में करय चतुरायी॥

सखी दय दा दवायी॥

पाचवी बिमारी उनके देहिया पे आयी॥

चर चर चर करय चारपायी॥

सखी दय दा दवायी॥

सोमवार, 9 अगस्त 2010

बहू देखावय ड्रामा..

जब से बेतवा परदेश गवा॥

बहू देखावय ड्रामा॥

छत पय चढ़ के सिटी बजावै॥

करय रोज़ हंगामा॥

करय रोज हंगामा॥

मंगू कय खटिया तोडिस॥

सीढ़ी साधी हमरे बुधिया कय॥

बूढ खोपडिया फोरिस॥

सारी रात जल्दी बाज़ी मा॥

फाड़ीस हमरव पजामा॥

जब से बेतवा परदेश गवा॥
बहू देखावय ड्रामा॥

लरिकन के संग टुक्की टुइया॥

रात अंधेरिया खेले॥

बड़े बड़े औज्हड़ जब मारय॥

हंस हंस ओहका झेलय॥

हमरी बुढिया रोज़ खियावय॥

बनाय के उनका खाना।

जब से बेतवा परदेश गवा॥
बहू देखावय ड्रामा॥

बहू देखावय ड्रामा..

बुधवार, 4 अगस्त 2010

भौजी मारे माठा॥

भैया हमरे भैस चरावै॥

भौजी मारे माठा॥

जब भौजी पे धाक जमावे॥

भौजी मारे चाटा॥

लेडाहता सारी रात घूमे ॥

एक साल कय लरिका बाटे॥

भूख से बेहाल॥

भौजी अपने मा मस्त बाटी॥

बेटवा का नहीं है ख्याल॥

रात अंधेरिया मस्का मारे॥

पकडे खड़ी ओसार॥

अकड़त दारू के ठेका से आवय॥

मस्ताना के मस्ती मा झूमे॥

लेडाहता सारी रात घूमे ॥

अचरवा हे गोइया उड़ उड़ जाला॥



हंस हंस अखिया मा चमके कजरवा॥


अचरवा हे गोइया उड़ उड़ जाला॥


हंस हंस के होठवा लागल बिरावय॥


चढ़ती जवानी अब कुछ न बुझाला॥


अचरवा हे गोइया उड़ उड़ जाला॥


बहे पुरवईया आवय अलशायी॥


देख सुरतिया मन मुस्कायी॥


देहिया से निकरत बाटे उजाला॥


अचरवा हे गोइया उड़ उड़ जाला॥


पाँव कय पयलिया छम छम बाजे॥


चंचल मन मोरा खूब नाचे॥


रहि रहि उनके मनवा दिठाला ॥


अचरवा हे गोइया उड़ उड़ जाला॥

घंटन बतलात ही..

खुशुर फुशुर बात करय॥

बहुत अदरात ही॥

छत पय मोबाईल से॥

घंटन बतलात ही॥

मुहवा से बतिया बहुत नीक लागे॥

हंस हंस बहलावे कसमिया खाके॥

रात अम्मा नइखे बहुत सेखियात ही॥

छत पय मोबाईल से॥
घंटन बतलात ही॥

बारह बजे रतिया में ओहके बोलाउली॥

अपनी अटारिया ओहके देखौली ॥

पकड़ के कमरिया खुद बिछलात ही॥

छत पय मोबाईल से॥
घंटन बतलात ही॥

चार बजे पीछे कय खुला दरवाज़ा॥

भैले उजियार बाजन लागे बाजा...

गाँव मा यही सुन्दर लड़की देखात ही॥

छत पय मोबाईल से॥
घंटन बतलात ही॥

रविवार, 1 अगस्त 2010

गोपाल के मम्मी करवट ले ले..

हे गोपाल की मम्मी ॥
करवट ले ले॥
सारी बला टल जायेगी॥
सूखी पड़ी है जो कलियाँ॥
सुबह सुबह मुस्कायेगी॥

चंचल होगी आँख तुम्हारी॥
जब गाल पे भवरा मंडराएगा॥
मेरे आँगन में सावा आके॥
बारिश की बूँद बरसायेगा॥
मेरे बाहों की माला होगी॥
अपने पास बुलायेगी॥
हे गोपाल की मम्मी ॥
करवट ले ले॥
सारी बला टल जायेगी॥
सूखी पड़ी है जो कलियाँ॥
सुबह सुबह मुस्कायेगी॥

बजने लगेगी पायल तेरी॥
तन मेरा बौरायेगा.. ॥
कमर पकड़ तुझको जानू॥
अपने पास बुलाएगा॥
रात अँधेरी कोई नहीं॥
क्यों सुन्दर रूप छुपाओगी॥
हे गोपाल की मम्मी ॥
करवट ले ले॥
सारी बला टल जायेगी॥
सूखी पड़ी है जो कलियाँ॥
सुबह सुबह मुस्कायेगी॥

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥



जब जवानी की यादे॥ बुढापे में आती॥

गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥

हांड भय शरिरिया गुमान भैला ढीला॥

जौन जौन चाहे उहे उहे कीन्हा॥

अब आवे न निंदिया बहुत है लजाती॥

जब जवानी की यादे॥ बुढापे में आती॥

गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥

जवानी के जोश छपरा हिलाए॥

अंधन का रास्ता साहिये बताये॥

ढिठाई तो दूर हमें देख भाग जाती॥

जब जवानी की यादे॥ बुढापे में आती॥

गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥

रारी से राह करे अधर्मी का पीटे॥

बुरायी से दूर रहे सच्चायी का जीते॥

अब कडुई लागे बतिया हमें न सुहाती॥

जब जवानी की यादे॥ बुढापे में आती॥
गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥
हांड भय शरिरिया गुमान भैला ढीला॥
जौन जौन चाहे उहे उहे कीन्हा॥
अब आवे न निंदिया बहुत है लजाती॥
जब जवानी की यादे॥ बुढापे में आती॥
गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥
जवानी के जोश छपरा हिलाए॥
अंधन का रास्ता साहिये बताये॥
ढिठाई तो दूर हमें देख भाग जाती॥
जब जवानी की यादे॥ बुढापे में आती॥
गम की फुहारों से आँखे भिगाती॥
रारी से राह करे अधर्मी का पीटे॥
बुरायी से दूर रहे सच्चायी का जीते॥

बुधवार, 28 जुलाई 2010

भौजी कय करिहाव लचक गय...

भौजी कय करिहाव लचक गय...

माई गिरी पिछवारे ॥

गोलारे दौड़ आवा॥

भैस आयी बा दुआरे..

गोलारे दौड़ आवा॥

ऊ अपने टेधकी सिंघिया से॥

भौजी का देरवईश ॥

कूद गयी खाले मा भौजी॥

कुकुरिया पोव पोव चिल्लाईस॥

लाठी लय के माई खादेरय भैसिया॥

गोलारे दौड़ आवा॥
भैस आयी बा दुआरे॥

झट से लठ माई मारी लाठी गय टूट॥

हौकिस भैस मुह से माई feki पसेरिन थूक॥

फेकिस भैस गिरी पिछवारे हाय हाय चिल्लाय॥

भैस पदरौकी गय बगिया मा हिया नहीं देखे॥

मन जब चेताय गा माई धोती सुधारय॥

गोलारे दौड़ आवा॥
भैस आयी बा दुआरे..

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

भैया हमरे डी.एम बाटे॥

भैया हमरे डी.एम बाटे॥

बीच सड़क दौड़ा दूगी॥

जौ बीच बजरिया अकडो गे॥

सूली पे चढवा दूगी॥

जब मै चलती रुक जाती है॥

सैट सहेलियों की टोली॥

मै रुकती जब खुद रुक जाती॥

सात रंगों से रंगी घोड़ी॥

अगर अब पीछे मेरे पड़ोगे॥

चक्की में पिसवा दूगी॥

बीच बजरिया अकडो गे॥
सूली पे चढवा दूगी॥

मै हंसती तो मोती झरते॥

हर संभव प्रयास के॥

तेरी तो साड़ी चलन बुरी है॥

नियत तो लगती पाप के॥

देखना मेरा सपना छोड़ दे॥

नहीं सरे आम मरवा दूगी॥

बीच बजरिया अकडो गे॥
सूली पे चढवा दूगी॥

मेरे पापा की तूती बोले॥

हाथ इलाका जोड़े॥

प्रधानिं मेरी मम्मी जी है,,

जिधर चाहे उधर मोड़े॥

सभी सभ्यता प्रशंसक बन जा॥

नहीं दंड बैठक करवा दूगी॥

हमरा बलमा बटे दरोग़ा.

हमरा बलमा बाटे दरोगा॥ जा के रपट लिखाऊगी॥

चोरी हमारा दिल भइल बा येही बात बताऊगी॥

साथ मा चोरी भूंख भइल ब नींद शान्ति लय गइला॥

झक झक झक झक भरसे जवानी बड़ा जुलुम कय गइला॥

कानूनी डंडा से उनको थाने में पिटावौगी॥

हमरा बलमा बाटे दरोगा॥ जा के रपट लिखाऊगी॥

जब न रपट लिखे गे हमारी माने गे नहीं बात॥

फिर तो अनर्थ हो जाएगा देखूगी औकात॥

हर धारा में फंसा के उनको जेल तलक पाहुचौगी॥

हमरा बलमा बाटे दरोगा॥ जा के रपट लिखाऊगी॥

लरिकन संग गुल्ली खेला करय...

गली गली बिछुवा हेरा करय

लरिकन संग गुल्ली खेला करय॥

काजू मागावे बादाम बगावे॥

अपने मुड़वा के जुवा हेरवावे।,.

बार बार मुहवा मोड़ा करे...

लरिकन संग गुल्ली खेला करय॥

गोडवा के उनके जब बाजे पयालिया॥

अचरज माने गोरकी सहेलिया॥

फुलवा गुलाब जस खिला करे...

लरिकन संग गुल्ली खेला करय॥

मचलय जवानी लहराय ओढनिया॥

खन खन करली उनकी झुलानिया॥

अटके जब मुसरा हीला करय...

लरिकन संग गुल्ली खेला करय॥

होतय भिनौखा मलीन भइली देहिया॥

नाजुक उमरिया लागौलू तू नेहिया॥

प्यार वाली चुनरी गीला करे...

लरिकन संग गुल्ली खेला करय॥

जब धूल निकलती है...

जब धुप निकलती प्रातः काल कलियाँ खिल खिल हंसती है॥

पेड़ पे बैठी चिड़िया रानी चू चू ची ची करती है...

जग जाते है सरे प्राणी बब्लू स्कूल को जाता है॥

द्वारे द्वारे जोगी जाके प्रभु की अलख जगाता है॥

राम राम जब सों चिरैया ले ले कर रटती है॥

मेरे आँगन में गौरैया फ़र फ़र फुदकती है॥

तब दिन दिवाकर बन जाते है अपनी किरण फैलाते है॥

हर किसान खेतो में अपने काम से जुट जाते है॥

सब सुख शान्ति ले करके उनकी ज्योति चमकती है॥

नींद की सोच...

नींद में चश्मा टूटा लिख न सका वह व्यंग॥

जिसके सातो स्वरों में अलग अलग प्रसंग॥

सोते समय कुछ याद आया शब्दों का व्यवहार॥

काल सुबह अखबार में पढ़े जाते आचार...

कुर्सी गिरी चश्मा टुटा फूटा मेरा कपार॥

बेहोशी में अस्पताल गया करवाता उपचार...

लिखना था लोभी नीच पर जो बनाते बहुत दबंग॥

उनकी करतूतों की कडिया कितनी है बदरंग॥

नर्स बड़ी अच्छी मिली थी बहुताय मिलनसार॥

समझ गया था उसके गुण को अच्छा था व्यवहार...

मै बोला मुझको चाहिए कागज़ कलम दवात॥

प्रेस को लिख के भेज दी उनकी कटही औकात॥

अखबार में लिखा देख के किया विषय का अंत॥

नींद की सोच...

सोमवार, 26 जुलाई 2010

रात नाही सोयली..

भइली जवानी जब से॥
चटकोर चाँद लागली॥
आधी आधी रतिया॥
निदारिया से जगती॥

चारो आँख लड़ते बहुत कुछ कहती॥
कैसे हाल चाल इशारा इधर करती॥
बैठो आवा बगली बिजली गुल भइली॥
आधी आधी रतिया॥
निदारिया से जगती॥

बोलिया तो उनकी कैली मदहोश॥
हथवा लागौतय चढ़ गइला जोश॥
रतिया बेकार भइल बिजली आय गइली॥
आधी आधी रतिया॥
निदारिया से जगती॥

माई पूछे कहा आवत बाटू धिरिया।
कहू नाही गय रहली खाय गए क्रिया॥
जल्दी भिनौखा भैला रात नहीं सोयली॥
आधी आधी रतिया॥ निदारिया से जगती॥

हमारे शरिरिया कय खिल गइली कलियाँ॥
चारो जून पहरा दिये लाग मलिया॥
प्यार बड़ा महागा पडा मार हम खैली॥
आधी आधी रतिया॥
निदारिया से जगती॥

तीन तराने गाऊगी॥

हे महा युद्ध के महारथी॥
आज तुम्हे अजमाऊगी॥
तेरे सीने पर चढ़ के॥
तीन तराने गाऊगी॥

पहला तराना यही है मेरा॥
शौक सिंगार सुहाना हो॥
भरी सभा में आभा चमके॥
ऐसा मेरा ज़माना हो॥
अपने इशारे पर तुमको॥
तेरह बार नाचाऊगी॥
तेरे सीने पर चढ़ के॥
तीन तराने गाऊगी॥
दूसरा तराना यही रहेगा॥
दूसरा तराना यही रहेगा।
कोई हमें न झांके॥
तेरी बंद पड़ी पुतकी को॥
कोई और न खोले॥
हर संभव प्रयास करूगी॥
अपनी माँग सजवाऊगी॥
तेरे सीने पर चढ़ के॥
तीन तराने गाऊगी॥
तीसरा तराना यही हमारा॥
मेरे बच्चे भविष्य सजाये॥
संस्कारों की ज्योति जलाए॥
सुख संपाति घर आये॥
सात जन्मो तक हंस हंस करके॥
तुमसे ब्याह रचाऊगी॥
तेरे सीने पर चढ़ के॥
तीन तराने गाऊगी॥

तड़का..

करय लागी बतिया ॥
कमरिया हिलाय के॥
लाज शर्म भूल गयी॥
सासुरवा से आय के॥
भूल गयी आन मान मारे लंगोटी॥
अगवा का घुमय खोल के छोटी॥
हमके ललचाय गयी अंचरा गिरे के॥
लाज शर्म भूल गयी॥
सासुरवा से आय के॥
पाय के अकेले करती रैसा॥
कहय हिया कय लिया देबय पैसा॥
हमें फुसलाय गयी तडका लगाय के॥
लाज शर्म भूल गयी॥
सासुरवा से आय के॥
रात अंधेरिया हमके टटोले.॥
हमारे शरिरिया मा ताकत घोले॥
हमके हिलाय गयी झटका लगाय के॥
लाज शर्म भूल गयी॥
सासुरवा से आय के॥

रविवार, 25 जुलाई 2010

बाजू वाली अंटी //////



बाजू वाली अंटी चारो जून॥मुझको दूध पिलातीहै॥


तेल मालिश करके फिर मुझको नहलाती है॥


मम्मी का सहारा छूट गया है॥


दीदी स्कूल जाती है॥


पापा तो मकदून गए है॥


अंटी ही हमें सजाती है॥


जब मै तंग करता उनको॥


वे हमको फुसलाती है॥



कहती बन्दर आयेगा॥ तुम्हे मिठाई लाएगा॥


तुम हंस के मिठाई खाओगे॥ बन्दर से लड़ जाओगे॥


तोता मैना का किस्सा हमको रोज़ रात सुनाती है॥


तेल मालिश करके फिर मुझको नहलाती है॥


दुःख तकलीफ हमें जब होता॥ अंटी जी रात भर जागती है॥


गोद में मुझको ले कर के॥ इधर उधर भटकती है।


मेरी माँ से ज्यादा ममता॥ वे मुझपे दिखलाती है॥


तेल मालिश करके फिर मुझको नहलाती है॥


छप्पन छुरी खेला करे..



छप्पन छुरी खेला करे॥


रतिया में कलियाँ खिला करे॥


पहली बाते वे नयी नवेली॥


लप लप चमके उनकी हवेली॥


कुर्ती कय बाजू ढीला करे॥


रतिया में कलियाँ खिला करे॥


लगवा गुलाब लागे ओठवा चमेली॥


सजली मेहदिया से उनकी हथेली॥


बहे पुरवैया तो हिला करे...


रतिया में कलियाँ खिला करे॥


अंखिया चकोर उनकी लागे लडावे ॥


अपने गहरा पे शम्भू का बुलावे॥


तीन दायी कपड़ा गीला करे॥


रतिया में कलियाँ खिला करे॥

हम सच्चायी लिखते है...

गहराई समुन्दर से॥

सच को लाते है॥

सच को उजागर करते॥

सच ही दिखाते है॥

हम लौह पुरुष बन के॥

उनके पीछे लगे जाते है।,॥

उनके कर्म कुकर्मो का रूप॥

दिखाते है...

फिर परदे पर आने में वे॥

दुल्हन जैसे शर्माते है॥

पत्रकारों की रचना पढ़ लेते है प्राणी॥

उनको मुर्ख समझ के अपने को समझे ग्यानी॥

ताजुब वाली बात हम सच सच बतलाते है॥

पत्रकार की कलम जब चलती..



पत्रकार की कलम जब चलती॥


लिख देती सच्चाई को॥


बरखुरदार को नींद न आती॥


देख देख तन्हाई को॥


पत्रकार की कलम जब चलती॥
लिख देती सच्चाई को॥


भन्दा फोड़ देते पापी के॥


कानून सख्त हो जाता॥


सही शब्द का सही अर्थ अब ॥


उनको बहुत रुलाता॥


नाप तौल के मैंने लिख दी॥


लालच और ठिठाई को॥


पत्रकार की कलम जब चलती॥
लिख देती सच्चाई को॥


बड़े बड़े लोगो का हाथ है सर पर॥


गूंगा बनाता कानून॥


जिसकी जंग वही है जीता॥


अब भी रहे शुकून॥


हमारा मालिक अब तो रब है॥


मै दूर करूगा बुरायी को...


पत्रकार की कलम जब चलती॥
लिख देती सच्चाई को॥

सतरंगी सपना..

हिलय लाग खटिया ,,

बहारे लाग बढ़नी,,

बाजय लाग टठिया॥

चालय लाग चलानी॥

कैसी अनोखी घटना॥

ई घट गइली...

जाय के नदिया मा मारे डुबकी॥

हमका गटक गय एक ठी मेढकी॥

ताजुब वाली बात आज ॥ आँख देख आइली॥

कैसी अनोखी घटना॥
ई घट गइली...

अखिया तो देखिस बहुते अचम्भा॥

सोने के घरवा मा खोने के खम्भा॥

बोलय लाग सुपवा ,,खुटिया मुस्कैली॥

कैसी अनोखी घटना॥
ई घट गइली...

घोड़ा रामायण पढ़े॥बकरी पोथी ॥

भैस पहने घाँघरा..गाय पहने धोती॥

ऐसी बिच्त्र बतिया हुआ घट गइली॥

कैसी अनोखी घटना॥
ई घट गइली...

एक ठौर कुकरा से भैली मुलाक़ात॥

कैसे बाहर जायी पूछले बवाल...

भौ भौ कैले तो आँख टूट गइली॥

कैसी अनोखी घटना॥
ई घट गइली...

सतरंगी सपना..

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

प्रेमी...

मै प्यासा एक प्रेमी हूँ॥

जो इधर उधर भटकता हूँ॥

अपनी प्यारी प्रिया के गम में॥

बिन बरसात तड़पता हूँ॥

मै घर वालो के अरमानो का॥

एक अनमोल सितारा था।

अपने घरवालो का प्यारा॥

उनकी आँखों का तारा था।

पढ़ते पढ़ते इश्क लगाया॥

अब आँखों से आंसू छिड़कता हूँ॥

कुछ दिन तक मौसम मूक बना था।

सपना बहुत सजाये थे।

उसके प्यार में पींगे भरते॥

सावन में गीत भी गाये थे।

वह दूर गयी अब न आयेगी॥

यही सोच कर बिलखता हूँ॥

शायद उसकी शादी हो गयी।

या दे दी होगी कूद के जान॥

मै तो उसका आशिक बन बैठा॥

बन न सका प्यारा इंसान॥

उसके ही ख्यालो में अब तक॥

टूटे बाल झटकता हूँ...

प्रेमी॥

पहली पहली मुलाक़ात हो....

जब खिला चंद्रमा रात हो॥

पहली पहली मुलाक़ात हो॥

प्यारे तारो का साथ हो॥

सँघ प्रियेतम का हाथ हो॥

तब नदिया कल कल बोलेगी॥

मस्त पवन भी डोलेगी॥

बन में मोर भी नाचेगा॥

पायल का घुघरू बाजेगा॥

ऐसी सजी वह रात हो॥

जब साजन का साथ हो॥

जब खिला चंद्रमा रात हो॥
पहली पहली मुलाक़ात हो॥

वन उपवन सज जायेगे॥

भौरे कलियों पर आयेगे॥

प्रेम गीत भी गायेगे॥

अपनी बात बतायेगे॥

तब चहरे पर साज़ हो॥

जब खिला चंद्रमा रात हो॥
पहली पहली मुलाक़ात हो॥

मन चंचल होके डोलेगा॥

प्रिये से प्रेमी बोलेगा॥

छुपे राज़ को खोलेगा॥

कानो में मिठास तो घोलेगा॥

होठो पर मुस्कान हो...

जब खिला चंद्रमा रात हो॥
पहली पहली मुलाक़ात हो॥

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

राम्लाल्वा कय किस्मत फूटी..


रम्लाल्वा कय किस्मत फूटी॥
कलयुगी मेहरिया आइल बा॥
चार हण्डिया का चाट चूट के॥
रम्लाल्वा पे घात लागाइल बा॥
रम्लाल्वा कय किस्मत फूटी॥कलयुगी मेहरिया आइल बा॥

करय इशारा हयने आवा॥पहले तेल लगावा॥
गमकौवा साबुन लय हमका॥
गोदिया मा नहवावा॥
बड़ी गरू देहिया बा ओके।
भैसी जस मोटईल बा॥
रम्लाल्वा कय किस्मत फूटी॥
कलयुगी मेहरिया आइल बा॥


सास का धक्का दय देहलिस॥
ससुर कय खोलिस धोती॥
ननदी का जम के गरियाईस॥
देवरा कय खिचिस लंगोटी॥
धमा चौकड़ी दिन दुपहरिया॥
संध्या भोर मचैल बा॥
रम्लाल्वा कय किस्मत फूटी॥कलयुगी मेहरिया आइल बा॥

छत पे चढ़ के सिटी बजावे॥
खोले बाटे अखाड़ा॥
बड़े बड़े पहलवान है आवय॥
फट फट होय किवाड़ा॥
फ़ोकट माँ लाठी चल जाए॥
ऐसी उधम मचाइल बा॥
रम्लाल्वा कय किस्मत फूटी॥कलयुगी मेहरिया आइल बा॥

पियारे कय बिटिया..



घर मा खटिया बिछावा लुटावा न इज्जतिया॥


गन्धाय जाबू पियारे कय बिटिया ........................


तोहरे अंखिया कय कजरा बिरावे॥


हंस हंस तोहरा होठवा बोलावय॥


जाने गउवा के तोहरी अदातिया॥


घर मा खटिया बिछावा लुटावा न इज्जतिया॥
गन्धाय जाबू पियारे कय बिटिया ........................


नाजुक कलियाँ तोहरी खिली है॥


चुनरिया मैली कैसे भइल है॥


बिना मतलब नइखे बोलावा बिपतिया॥


घर मा खटिया बिछावा लुटावा न इज्जतिया॥
गन्धाय जाबू पियारे कय बिटिया ........................


सीधा स्वाभाव तोहरा भइल चतकोर॥


छुप छुप बात करा चर्चा चारिव और॥


दाग न लगावा कितनी सुन्दर सुरतिया॥


घर मा खटिया बिछावा लुटावा न इज्जतिया॥
गन्धाय जाबू पियारे कय बिटिया ........................

रविवार, 18 जुलाई 2010

मै महा दरिद्र की बिटिया हूँ..


मै महा दरिद्र की बिटिया हूँ...

जो सच्ची बात बताती हूँ॥

तुमतो सरकारी अफसर हो॥

तुमसे नहीं सुहाती हूँ॥


हमें न आवे हेल्लो हाय ॥

हाउ आर न जानू॥

जो संस्कारों की डूरी पहनी॥

उसी को सब कुछ मानू॥

मै चुल्हा चौका करने वाली॥

कहने में थोड़ा लजाती हूँ॥

मै महा दरिद्र की बिटिया हूँ...
जो सच्ची बात बताती हूँ॥


काली कलूटी अनपढ़ हूँ॥

तुम सीप के निकले मोती हो॥

तेरे संग चलने में मुझको॥

हवा कहे तुम छोटी हो...

मै कथरी पर सोने वाली॥

डनलप सुन पछताती हूँ॥

ईजा पीजा बिरयानी ॥

मै महा दरिद्र की बिटिया हूँ...
जो सच्ची बात बताती हूँ॥


हमें बनाने नहीं आती॥

मेरी परछाई ही से॥

दूध कीछे काळी पद जाती॥

समय बहुत सुन्दर होता॥

दशा देख रूक जाती हूँ॥

मै महा दरिद्र की बिटिया हूँ...
जो सच्ची बात बताती हूँ॥

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

आनर किलिंग

राम दास बिटिया मरवाये॥

कैहय का ज़माने का॥

सारा खजाना खाली होए॥

सड़ जैहै जेलखाने माँ॥

बहुत पढौले बहुत लिखौले॥

बहुत किये उपचार ॥

सांझ सबेरे फूक लागौले॥

बहुत थे करते प्यार॥

प्रेम रोग लागा लड़की के॥

कय देहलेश इज़हार॥

अपुना तो पापी खुद बनले॥

संग फसौले पांडे का॥

राम दास बिटिया मरवाये॥
कैहय का ज़माने का॥

मन पसंद शादी कय लहलिश॥

तो कौन किया अपराध॥

कौन सी इज्ज़त मान घटल बा॥

कहा से घटी बा शान॥

बड़ा क्रूर अब बना ज़माना॥

सोचा नफ़ा घराने का॥

आय लगा कानून कय डंडा॥

का हाल बा कैद खाने माँ...

राम दास बिटिया मरवाये॥
कैहय का ज़माने का॥

होय जाबय बदनाम बबुवा॥

नाहक रार मचावत बाटेया ॥

न करा उपद्दरी काम॥

बबुआ॥

होय जाबय बदनाम बबुवा॥

न मिला कोलिया पिछवारे॥

न मिला नदिया के तीर॥

न तो मीठी बोली बोला॥

न बजावा रतिया बीन॥

करा पदाई छोड़ा लफडा॥

बन जाबेया इंसान बबुवा॥
होय जाबय बदनाम बबुवा॥

न आँख चलावा न मुस्कावा॥

न करेया घर पे फ़ोन॥

बडका भैया पुलिस मा हमरे॥

छोटका बहुत बहावै खून॥

kरूर समय जल्दी आ जाए॥

बुरा होए अंजाम बबुवा॥

होय जाबय बदनाम बबुवा॥

दमदार पीया...



जा गिरा दुपट्टा थाने में॥


दमदार पीया लेके आना॥


मत डरना थाने दार से ॥


ना जाके भरना हर्जाना॥


ताकत है तुम्हारे बाजू में॥


डरने का कोई नाम नहीं॥


कह देना उससे वह मेरा है॥


ना माने तो सुनाना मेरा aफसाना॥


मै थाल सजा के रखू गी॥


आते ही तिलक लगाऊगी॥


मेरे चरणों की दासी बन कर॥


तेरा ही गुण तो गाऊगी॥


उस थाने को ठंडा कर दूगी॥


जब कोई बताये गा औरा बहाना॥


जा गिरा दुपट्टा थाने में॥
दमदार पीया लेके आना॥
मत डरना थाने दार से ॥
ना जाके भरना हर्जाना॥


सोमवार, 12 जुलाई 2010

फिर भी जी रहा हूँ.....................

आंसूओ से गिरते गम को॥
दारू में पी रहा हूँ॥
उलझी पडी है जिंदगी॥
फिर भी मै जी रहा हूँ॥

दिन भी लगा चिढाने॥
रात तडपाती है॥
सूरज न हंसने देता॥
बीती बाते रुलाती है॥
कैसा तूफ़ान आया॥
जो घुट घुट के जी रहा हूँ॥
उलझी पडी है जिंदगी॥
फिर भी मै जी रहा हूँ॥

कोयल की बोली मुझको॥
कौआ सुनाता है॥
सूखा चमन पडा है॥
कुछ नजर नहीं आटा है,,,
अपने ही कर कर्मो पे॥
आंसू बहा रहा हूँ॥
उलझी पडी है जिंदगी॥
फिर भी मै जी रहा हूँ॥

घर के लोग पागल की...
उपमा तक दे डाली॥
मुझे देखते ही...
बंद करते है॥
किवाड़ी...
मैंने किया गलत था क्या॥
जो अब पछता रहा हूँ॥
उलझी पडी है जिंदगी॥
फिर भी मै जी रहा हूँ॥

दरिन्दे लोग बिलखता कूप..

हमारा देश क्रषि प्रधान देश है , जैसे जैसे लोगो के ज्ञान का उदय हुआ वैसे वैसे आव्शायाक्ताये बढाती गयी। नयी नयी सभ्यताओं का उदय हुआ , पहले के लोग अपनी खेती नदिया.ताल्बो , तथा कुआ से करते थे,,

यही नहीं जो लोग कुआ तालाब kहुदाते थे, उन्हें रईसों में गिनती की जाती थी। यही कहानी कचनार पुर गाँव की है,। यहाँ पर एक कुआ है गाँव की सीमा पर है, जो उस जगह के वातावरण को बनाए रखा था। कुछ लोग कहते है की ये मुसलमानों के शाशन काल का है, क्या भी बहुत ही बड़ा और सुन्दर बना था, पहले यहाँ पर इस कुआ का पानी ऋषि,मुनि, राजा महाराजा, गाँव के २० किलो मीटर के लोग इस कुए का पानी पीते थे, एक बार की बात यहाँ लोग गाय। भैस चराते थे,। अनजान में कुए के अन्दर के बछिया गिर गयी लोग ढूढते रहे लेकिन कुए के पास कोई नहीं आया , रात बीत गयी सुबह हो गयी। तो लोग उधर दिशा मैदान के लिए जा रहे थे की कुए से बछिया की आवाज़ आ रही थी। लोगो ने कुए के अन्दर देखा तो बछिया आराम से खड़ी थी और बाहर निकालने के लिए उतावली थी। लोगो को आश्चर्य का ठिकाना न रहा क्यों की कुआ सूख गया था, जब लोगो के प्रयास से बछिया को बाहर निकाला गया तो ,। कुए के अन्दर फिर से पानी आ गया॥ लोग उस कुए की पूजा करते थे। दिवाली पर दिया जलाते थे। अब लोगो को सरकार ने सुविधाए उप्लाव्ध्करा दी है, अब तो कोई उस कुए के पास जाता ही नहीं,,, कुछ स्कूली सरारती छात्र रोज़ उस कुए के पास जाते है, और उस किये की छुही गिरा गिरा के कुआ भांठ रहे है, आज वही कुआ रो रहा है, इस जमाने पर क्यों की पहले के लोग कुए का सम्मान करते थे। अब तो लोग कुए को भांठ रहे है, और उसमे थूक भी रहे है, कुआ कहता है की हमें भान्ठाने का डर नहीं मुझे इस बात का अफसोश है , की अब मै किसी की प्यास नहीं बुझा सकता हूँ। मेरा पानी अशुद्द हो गया है, मेरा अश्तित्व समाप्त हो रहा है,

शनिवार, 10 जुलाई 2010

करम फूट किस्मत का कोसी..

रोज़ नये नए संवाद बीबी घर ले आती॥
पड़ोसियों के काले करतूतों को बतलाती॥

कहती रामुवा कए भैस बियाई है पड़िया॥
ओकरे गले मा बधी पांच किलो कय हड़िया॥
पड़िया पैदा होत भैसिया बहुत चिल्लात रही॥
मोनुवा कय बिटिया खड़ी बात ओनात रही॥
हमहू रहे जवान कतहू गह्दाला नहीं मारे॥
न ताके आगे कोने न ताके टटिया पिछवारे॥
मन मा बहुत ग्लानी भरी बा एही खातिर तुतलाती॥

मै बोला की श्रीमती जी जाके लाओ पानी॥
हमें नहीं सुननी है तुम्हारी मनगढ़ंत कहानी॥

करम फूट किस्मत का कोसी॥

शम्भू नाथ

हां मै झूठ बोल रही हूँ मन की मटमैली हूँ॥
जो मन भाये वही तुम बोलो क्या कागज़ की थैली हूँ॥
आँख मा आंसू भरि आवा नाहक रार मचाती॥

ठंडा कैसे मै भी पड़ता मिला न मुझको दाना पानी॥
राम केहू का अब मत देना हमरे जैसे घरवाली॥
मन उदास चितवन कलुई भय चारपाई पे बैठी॥
करम फूट हम रोटी बनाई लरिकन से भी ईठी॥
किस्मत फूट करम का कोसी ऐसी रही कहानी॥

ससुरा बेईमान.. हमके नज़रिया मारे..

फुसुर फुसु रतिया मा॥

ससुरा जब बोलय॥

कौन के कहा बा ॥

अँधेरे मा टटोले॥

लागल सवनवा घर मा अकेली॥

नइखे कुछ पता बा नयी नवेली॥

देख के अकेले बुरी नज़र फेरय॥

फुसुर फुसु रतिया मा॥
ससुरा जब बोलय॥
कौन के कहा बा ॥
अँधेरे मा टटोले॥

अपने सजनवा से करवे शिकायत॥

हिया नहीं रहवे चलवे बिलायत॥

सुबह शाम देहरी बार बार छेड़े॥

फुसुर फुसु रतिया मा॥
ससुरा जब बोलय॥
कौन के कहा बा ॥
अँधेरे मा टटोले॥

बुत बर्दास्त करे बहुत समझाए॥

मानय न बुढ़वा बिना लटकाए॥

होय के उघार घुमय॥ प्रेम छोडे॥

फुसुर फुसु रतिया मा॥
ससुरा जब बोलय॥
कौन के कहा बा ॥
अँधेरे मा टटोले॥

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

डगर अनजानी..

पढो इसे ध्यान से जो लिखता कहानी॥
कच्ची कली थी वह चढ़ती जवानी॥
मन में गुरुर था कहती थी बाणी॥
मुझे देके बोली ये छोटी निशानी॥
॥ मै कैची की तरह कतरती हूँ॥
जो मुझपर चक्कर चलाता है॥
हाय हाय वह चिल्लाता है॥
बाप भी दौड़ा आता था॥
मुझको भी भाती है तेरी नादानी॥
कभी मेरी चुनरी उडी न वहा से॥
मै गयी भी कही न जो पूछे कहा से॥
मुझे भी तुम दे दो कोई निशानी॥
मै हुआ तर-बतर अचानक क्या हो रहा है॥
आज पहली बार कोई अपना कह रहा है॥
पर कैसे विस्वास करू डगर अनजानी॥

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

गाँव की निति..

चक्रौली पुर में २० लोगो का गाँव था । उस गाँव में सारे दबंग थे और एक ही जाति के ही थे॥ उसी गाँव के एक संपन्न किस्म का आदमी रहता था जिसका नाम था धीरज बहुत ही शान्ति प्रिये आदमी थे उनके अन्दर भक्ति भाव के अंश थे॥ और तो लोग बड़े अदाबंगे थे उस गाँव के ..लेकिन धीरज उन लोगो के से कम धनवान था फिर भी घर की रोज़ी रोटी चलती थी किसी के यहाँ भीख नहीं मांगना पड़ता था । धीरेअज़ अपने किसानी खेती में मस्त रहता था॥ धीरज के पांच बेटे पैदा हुए और धीरज ने नामकरण के अनुसार पहले का नाम पंचम दुसरे दूजे तीसरे का तीजे चौथे का चरुवा और पांचवे का पंचम रखा॥ बच्चे धीरे बड़ा होने लगा पंचम ने बच्चो को गाँव के रहन सहन से दूर रखा क्यों की पंचम का गांव से थोड़ा हट के था ॥ बच्चे पढ़ने में मस्त थे और वह दिन भी गया नौकरी करने लगे अब पंचम ने बहुत ही सुन्दर घर बनवाया जिसमे उसकी पांच बहुए रहेगी ,, पंचम यही बात सब से कहता था । अब गाँव के जो दबंग लोग थे॥ पंचम से जलने लगे ॥ पंचम का एक पडोसी था गाँव के दबंग लोग उसके कान भरने लगे की एबे पंचम तोहरा तो जमीनिया हड़प लहे है ॥ ओहमा आधा हिसा ली ले हम लोग तोहरे साथे है॥ आखिकार पंचम और पंचम के पडोसी में आये दिन तू मै मै होने लगी ॥ धीरे धीरे कई महीने बीत गए दिवाली का दिन था पंचम के पांचो बेटे शहर से घर पर आये थे और पडोसी के भी दोनों बेटे गाँव आये थे ,गाँव में उल्लास था गाँव एबी लोग मस्त होके पडोशी के घर पर आ के पडोसी से कहते है ॥ अब तोहे दुई लरिका आ गए है॥ फैसल्वा करवाय लिया यह बार ॥ पडोसी के बच्चे भी बोले हम उनसे कम थोड़े है ॥ देख लेगे ॥ इतने गाँव के लोग पंचम को पडोसी के घर से गलिया देने लगे पंचम के बच्चो ने पूछा अरे भाई क्यों गाली दे रहे तभी पंचम ने बोला चुप रहो इन लोगो का रोज़ का काम है हमें गाली देते है ॥ आज दिवाली है चलो घर के अन्दर तभी धाय की आवाज़ आती पंचम के सीने में गोली लग जाती सारे बच्चो पंचम को अस्पताल ले जाने के कोशिश कर ही रहे थे की पडोसी के यहाँ दो गोली दागने की आवाज लेकिन दिवाली का दिन था चारो तरफ से धाय धाय की आवाज़ आ रही थी पंचम को बच्चे अस्पताल ले गए । अब पडोसी के गाँव के १५ लोगो का तांता था बोले पंचम के पांचो लड़को ने इन बाप बेटो को मार डाला अब जो पंकज का पडोसी का एक बेटा बचा था वह भी कहने लगा ही इन्ही लोगो ने मारा होगा अकडू ने पंचम पर गोली चाल्या और पंचम मर गया लेकिन पंचम के बेटे तो उसे अस्पताल लेके चले गए॥ अब उस इमान दार आदमी को गाँव वालो पर सक हुआ लेकिन वह स्थिति को समझ कर कुछ नहीं कह सका गाँव के दबंगों के कहने पर वह पंचम के घर में आग भी लगा दिया क्यों की घर पक्का था इस लिए कम नुकशान हुया अब ॥ अब आंव के दबंगों के साथ वह इमानदार इंसान भी थाने में जा कर रिपोर्ट लिखवा दिया की पंचम के पांचो लड़को ने मेरे पिटा जी और भाई को गोली मार दिया वह तो मुझे भी मारना जा रहता थी लेकिन तब तक पंचम वहा गया और वह गोली घूम करके पंचम पर लगी जो पंचम को अस्पताल ले गए है॥ अब तो पुलिस भी अपने दल के साथ गाँव गयी और लाश का मुयायना किया ..अब पंचम के पांचो पुत्रो को पुलिस जेल में दाल दिया इसी शोक में पंचम अस्पताल में ही जा बसा सुरधाम ॥ ये पांचो लडके जेल में पडोसी का जो एक लड़का बचा था जो एक इमानदार था ॥ वह अपना दिमाग दौडाता और अपनी नौकरी करता था ॥ वही उसकी एक लड़की से दोस्ती थी जो शादी शुदा थी । एक दिन बात दोनों बैठ करके चाय पी रहे थे॥ तो वह लड़की बोली..(यह शादी शुदा है । लेकिन मै इसे लड़की इस लिए लिख रहा हूँ। की अभी इसका गौना नहीं गया है । यह भी गाँव की है॥ वह उस ईमान दार आदकी की मामा की लड़की है॥ आप अपने सदमे से उभर कर भाहर आइये आप को बहुत कुछ करना है। आप को अपने बाप और अपने भी के अपराधियों को सजा दिलवाना है॥ हां चार दिन बाद फैसला है तुम मेरे साथ चलना गाँव चलेगे वैसे दोनों लोग समयानुसार कोर्ट में चलेगे॥ ठीक है। जब वे लोग गाँव जाते है तो देखते है। की गाँव के दबंग लोग यहाँ पर गाय भैस भंधाना शुरू कर दिए है , दोनों घरो के दरवाजे टूटे पड़े पंचम के घर का और ईमान दार आदमी के घर का ..एमाना दार आदमी का नाम था इंसान ॥ अब वह उस अपने मामा के लड़की को बताने लगा की ये गाँव वालो की सलाह के द्वारा ही दोनों परिवार में फूट पड़ी है॥ इस गाँव के बाहूबली नहीं चाहते की हम लोग उन्नति करे ॥ उन्ही लोगो के कारण की आज पंचम दादा के पांचो लडके जेल में है॥ न तो उन लोगो ने ने हमारे भाई और बाप को गोली मारे और न ही हम लोगो ने पंचम दादा को गोली मारे है ,,हमें बहुत अच्छी तरह याद है। की ..दिवाली का दिन था शाम का समय था लोग अपने घरो खेतो बाग़ हर एक जगह नदी तालाव तक भी दीप जलाए जा रहे थे तभी हमारे घर गाँव के दस लोग हमारे घर पर आये मेरे पिता जी से कहते हुए बोले की आज तो तुम्हारे दोनों बेटे भी है। और पंचाम्वा के भी हो जाने दो॥ तब कुछ लोगो ने हमारे दरवाज़े से पंचम दादा को गाली देने लगे॥ पंचम दादा कहते हुए बोले अरे आज तो बवाल मत करो आज दिवाली है , भाई..तभी अकडू ने गोली चला जिससे पंचम दादा घायल हो गए॥ और भगदड़ मच गयी॥ मै भी सुरक्षित होने की कोशिस करने लगा तभी हमारे घर धाय धाय की आवाज़ और बाबू भैया की चीत्कार भी॥ हां जब मै दौड़ा तो भगदू और झगरू असलहा फेक रहे थी पंचम दादा के अहाता में॥ जिस कपडे से साफ़ करके फेके थी वह कप्का मै भी छुपा के रखा हूँ। मझे पता है पंचम दादा के पांचो लडके बहुत ही सरीफ है॥ वे लोगो ने टी बिना वजह के जेल की तोतिया खा रहे है । ठीक है ॥ लड़की कहती है की कल कोर्ट में हम लोग साड़ी बाते बता देगे की ये पांचो भाई सरीफ है ॥ हां शोमिया आप ठीक कहते है नहीं तो उन पांचो लोगो को सजा हो जायेगी ॥ ठीक है। अब दुसरे दिन सोम्या और शरीफ इंसान कोर्ट में बताते है । की हमारे पिता जी और हमारे भाई और पंचम दादा को हमारे गाँव के पांच दबंगों ने गोली मारी है । उन पांचो सारीफ आदमियों को छो डी दिया जाए और इन पांचो दबंगों को बंद कर दिया जाये॥ मुझे भी ये लोग गोली मारने के चक्कर में थे लेकिन मै तो रात को ही शहर भाग गया था॥ मै वह भी सबूत दे सकता हूँ। इतना ही नहीं ये लोग हमारे और पंचम दादा के घरो के सारे सामान हड़प ले गए है॥ गाँव के पांचो दबंगों को पुलिस पकड़ के जेल में बंद कर देती है और इन पांचो भाइयो को छोड़ देती है...

१२ दिन का बच्चा चल कर.. भगवन को अचरज आया..था..

जब आकाल पडा था पृथ्वी पर॥

महाकाल बौराया था॥

१२ दिन का बच्चा चल करके॥

त्राहि त्राहि चिल्लाया था॥

महाकाल जब देखा बच्चे को॥

मन में शोक जताया था॥

कौन तेरे माँ बाप वत्स है॥

तुमको किसने उसकाया था॥

हाथ जोड़ कर बाला बोला॥

मै पुण्य पुरुष कहलाता हूँ॥

घायल मेरे माँ बाप pअड़े है॥

मै संजीवनी उन्हें पिलाता हूँ॥

समय का चक्र गलत चला है॥

मै भी उससे टकराता हूँ॥

हठ मत कर वहा जाने की...

उस बाग़ की रक्षा करता हूँ॥

बिना इशारा कोई नहीं जाता॥

मै भी उससे लड़ता हूँ॥

बालक अपने मन मंदिर में॥

सेवा की तिलक लगाता था॥

१२ दिन का बच्चा चल करके॥
त्राहि त्राहि चिल्लाया था॥

बालक की हठ पर झुका महाकाल॥

सीने से उसे लगाया था॥

अपने कंधे पर बैठा कर॥

चारो धाम घुमाया था॥

बुधवार, 7 जुलाई 2010

कैसे प्रेम प्रीति होती..

प्रेम रस के स्वाद की॥

टोनिक पिलाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥

तुमको बत्ताती हूँ,।

जब कलियाँ खिलने लगती है॥

करती आकर्षित है॥

हँसते ही मोती गिरते॥

हो जाते हर्षित॥

kउछ ही पल में मै खिल जाती

॥आवे na laaz ab शर्म भी लुटाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

कुछ पल याद करती ॥

कुछ जाती भूल॥

जब सो जाती हूँ॥

पहनाते माला फूल॥

जब वे पास आते ॥

कुछ पल ही लजाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

गली गली गाव में ॥

हो जाती चर्चा॥

रोज़ रोज़ मिलने में ॥

होने लगा हर्जा॥

बड़ी ऊब सांस लगती॥

मै भी कुम्भ्लाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

जब कुल्लम खुल्ला होती है बात॥

कहते पास आओ रचाऊगा रास॥

अभी पर्दा मत खोलो ॥

मोहे आवे लाज।

पडा पल सुख देता॥

तुमको सुनाती हूँ॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

सादी हम कर लेते॥

घर को बसाते है॥

जीवन के सपने ॥

सारे सजाते है॥

कटीली डगर है॥

जो पैर खुजलाती है॥

कैसे प्रेम प्रीति होती॥
तुमको बत्ताती हूँ,।

ममता और क़ानून ..

आज दैनिक जागरण में छपी एक खबर की १४ साल बाद जुडवा बहाने मिली॥ कहानी कुछ अजीब थी इस लिए के माँ को ममता को एक लड़की कैसी कहती क्यों की जम से लेके १४ साल तक उस माँ के पास रहती है जो उसको पाला॥ उसके बाद कानूनी लड़ाई में वह अपने सगी सम्बंधिया के पास मतलब माँ बाप के पास आ जाती है॥



वही तो अच्छी माँ है मेरी॥
जी माँ ने मुझको पाला है॥
थपकी दे दे हमें सुलाती॥
पुचकारो से दुलारा है॥
जब मै मांगू हीरा मोती॥
ला के मुझको देती थी॥
मुझको पलको पे बिठाती॥
मेरी बलैया लेती थी॥
वही मेरी पुजनिये माँ॥
कभी नहीं दुत्कारा है॥
एक बार मै हाथ कर बैठी॥
अमृत सर को जाने को॥
कुछ कपडे गहने लेना था ॥
अपनी शौक मिटाने को॥
अभी उम्र नाजुक है बच्ची ॥
फिर भी मुझको पुचकारा है॥
इस कानूनी लड़ाई में तो॥
सच की हुयी विजय॥
पर उस माँ को नहीं भूलूगी॥
मात रहेगी अजेय॥
आज सगी माँ के घर में हूँ॥
तेरी ममता को बखाना है॥
अब सतायेगे माँ घर के हर कोने कोने॥
याद तुम्हारी जब आती है मै लगती हूँ रोने॥
मगर माँ चिंता तुम मत करना ॥
मै तेरी गोद में आऊगी॥
अपनी सगी माँ की ममता को॥
माते तुम्हे बताऊगी॥
ये माँ मुझको प्यारी है ...
पर तुम तो मुझे सुधारा है॥
शम्भू नाथ
९८७१०८९०२७

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

पहिल पहिल चुम्मा ॥ पहिल पहिल चुम्मा॥

जात रहे संग संग भूल हम कैली॥
पहिल पहिल चुम्मा ॥ पहिल पहिल चुम्मा॥
पप्पू का देके आइली॥
ओह चुम्मा से पपुवा दिंवाना॥
हमें झारियावय बनावय खाना॥
चढली जवानी होश हम खोइली॥
पहिल पहिल चुम्मा ॥ पहिल पहिल चुम्मा॥
पप्पू का देके आइली॥
सोलह सिंगार पपुवा करवावय॥
चमेली कय तेल देहिया मा लगावय॥
चार दाई चारिव जून ओहके नचैली॥
पहिल पहिल चुम्मा ॥ पहिल पहिल चुम्मा॥
पप्पू का देके आइली॥
रतिया मा हमरा नाम लय के सोवय॥
हमरे वीयोगवा मा पपुवा रोवय॥
शरम सारी भूल के पर्दा उठैली॥ पहिल पहिल चुम्मा ॥ पहिल पहिल चुम्मा॥
पप्पू का देके आइली॥

भरी जवानी मचलय देहिया॥

भरी जवानी मचलय देहिया॥

राजैया मा राजा राज आय जातेया॥

दूध जलेबी से भरी पूरी हूँ॥

धीरे धीरे राजा संग संग खातेया...

अंखिया से करली तोहके इशारा॥

पीछे के जाय खोल देबय किवाड़ा॥

कच्ची कच्ची कलियाँ का ॥

धीरे धीरे दबातेया॥

होठवा से होठवा पे लाग जैहे लाली॥

छूटे लागे गोला होए दिवाली॥

आज रात आय धुदम धाय मचातेया॥

सोमवार, 5 जुलाई 2010

मेरे महबूब आये हुए है..

बादलो आके आँगन में बरसो॥

मेरे महबूब आये हुए है॥

उनकी सूरत बड़ी खूब सूरत॥

मेरा सपना सजाये हुए है॥

चुग चुग फूलो की माला बनायी॥

मंडप में हाथो से पिन्हाई॥

अपनी ख़ुशी को ओ॥

मुझपर सब लुटाये है॥

बादलो आके आँगन में बरसो॥
मेरे महबूब आये हुए है॥

सोने की थाली में जेवना सजाई॥

अपने हाथो से उनको खिलायी॥

होठो की हंसी ओ ॥

मुझपर सब बहाए है॥

बादलो आके आँगन में बरसो॥
मेरे महबूब आये हुए है॥

लाची लावागी का वीरा लगाई॥

अपने हाथो को उनको देखाई॥

मेरी हंसी को देख कर॥

पलकों में बिठाए हुए है॥

बादलो आके आँगन में बरसो॥
मेरे महबूब आये हुए है॥

लड़की जवान बैठी कहवा बिहाई॥

ढल गय उमरिया आयी बुढ़ाई ॥
लड़की जवान बैठी कहवा बिहाई॥
जेकरे घर कबहू भैस नहीं चोकदय॥
खर कतवार घरे से न निकरय॥
उनहू मागे मोटर गाडी ॥
कैले ठिठाई॥
लड़की जवान बैठी कहवा बिहाई॥
बी।ये पास लरिका ॥
आवारा घुमय॥
रोजी शराब पियय॥
रास्ता मा झुमय॥
हालत देख ओकय॥
आवे ओकलाई॥
लड़की जवान बैठी कहवा बिहाई॥
बाप अड़ झक्की ॥
माई खेत निरवय॥
बड़ी बाटे फूहर॥
बहुत गरियावय॥
बन chaudhraeen ,,
लेवे अंगडाई॥
लड़की जवान बैठी कहवा बिहाई॥

आये हो इश्क बहार में..

मौसम मेहरवान है॥

कुछ साज तो बजा दो॥

आये हो इश्क बहार में॥

वह राज़ तो बता दो॥

कलियाँ खिल खिला के /॥

अंगडाई ले रही है॥

आओ हमारी बाहों में॥

ये बात कर रही है॥

भरी जवानी आंधी आयी॥

दिल की बगिया में ओट लगा दो॥

आये हो इश्क बहार में॥
वह राज़ तो बता दो॥

मोर है नाचत ॥कोयल गाती॥

मेढक की टर्र टर्र तान सुनाती॥

पड़ी फुहारे मन बौराए॥

आके मेरी प्याद बुझा दो॥

आये हो इश्क बहार में॥
वह राज़ तो बता दो॥

सूरज छुप गया ॥रात अँधेरी॥

देखो सरग में बदरी घनेरी॥

मै सज धज के कड़ी हुयी हूँ॥

प्रीतम मेरी मांग सजा दो॥

आये हो इश्क बहार में॥
वह राज़ तो बता दो॥

रविवार, 4 जुलाई 2010

जिसके कारण आज मै शराब पी रहा हूँ..

क्यों याद करके हंसती हो ॥
मेरी जिंदगी पर॥
अपने पराये बन गए॥
मै तनहा जी रहा हूँ॥
तुम्हारे लिए ही मै॥
खोदा अथाह सागर॥
बीच भावर में छोड़ कर॥
फोड़ दी थी तुमने गागर॥
इसी वियोग में प्रिये॥
जिंदगी को सिल रहा हूँ॥

याद होगा तुमको ॥
हमने जब तुमको थामा॥
कसमे सभी तुम भूल कर॥
दिखा दिया क्या ड्रामा॥
उसी ड्रामे के सदमे से॥
जिंदगी को पी रहा हूँ॥

मुझको समझ अब आयी॥
दिल कैसे टूटता है॥
बड़ा ही क्रूर बन कर॥
जब हमें कूटता है॥
उसके ही वार से मै॥
भिन्न भिन्न हो रहा है॥
तुम याद करके रखना॥
अपनी उस कमी को॥
जिसके कारण आज मै॥
शाराब पी रहा हूँ॥

शम्भू नाथ

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

मुन्नू...

मुन्नू फुलवा जैसे गमका करा॥

रतिया जुगुनू जस चमका करा॥

उड़न तश्तरी तोहके उडाये॥

बयारी बदरिया जिया लल्चावाये॥

अंखिया मा हमारे मटका करा॥

सूर्य चंद्रमा तोहके दुलारे॥

आवे बयारिया गर्दा झाडे॥

धीरे धीरे चला करा॥

पापा का फुश्लावत रहनी

ऊ बचपन कय दौर गुज़ार दीं॥

जब अम्मा तेल लगावत रहनी॥

हाथ पकड़ के बुआ चलावे॥

मौसी खूब दुलारत रहनी ॥

चाचा चाची की गोदिया माँ।

दादी जब पुचकारत रहनी॥

बाबा नाना कय गज़ब कहानी॥

मामी जी भरमावत रहनी॥

माटी लगाए नंघा घूमी॥

दीदी तेल लगावत रहनी॥

उधम धडाका चुल्हा फोरी॥

पापा का फुश्लावत रहनी॥

मंगलवार, 29 जून 2010

सफ़र मा पिया..

खुल गय गठरिया ॥

सफ़र मा पिया॥

मोच खय गय करिहैया ॥

रगड़ मा पिया॥॥

बगल वाली सीट पे रहेली अकेली॥

साथ नइखे रहली हमरे संग के सहेली॥

रात दुई लैका जलाय देखले दिया॥

मोच खय गय करिहैया ॥
रगड़ मा पिया॥॥

पहले तो मैंने अकड़ करके बोली॥

उनके मुहवा से छुटेला ठिठोली॥

गर्मी शरिरिया से निकला धुँआ॥

मोच खय गय करिहैया ॥
रगड़ मा पिया॥॥

धीरे धीरे नीक लाग ॥ अचरज भा मनवा॥

हौले हौले खोले लागे हमरा अचरवा॥

बोले होय्जा राज़ी खिलौबय पुआ॥

मोच खय गय करिहैया ॥
रगड़ मा पिया॥॥

सोमवार, 28 जून 2010

मै आत्म ह्त्या करने जा रही हूँ..

मुझे क्या पता था । की जिस पथ पर मै चल रहा हूँ। उस पथ पर एक सुंदरी मेरे साथ साथ चल रही है॥ और मै अपनी दिशा को चलता गया कुछ दूर जाते जाते मेरे कानो को पायल की धुन सुनायी देने लगी॥ जो मुझे चंचल करने लगी॥ फिर भी मै आगे को बढ़ता गया। एक सुन्दर बागे के समीप पहुच कर मै रूका और पीछे की तरफ देखा तो अचंभित रह गया । एक सुन्दर सुंदरी मेरे समीप कड़ी थी। मै पूछ बैठा की आप कौन है और कहा को जा रही है॥ तब वह सुंदरी कहने लगी की मै सुविधा हूँ। मै अब इस समय सामने वाली नदी में समाने जा रही हूँ। क्यों की अब महगाई की मार को मै नहीं झेल सकती लोगो को उचित सुविधा देने में समर्थ हूँ। इस लिए मै अब आत्म ह्त्या करने जा रही हूँ।

रविवार, 27 जून 2010

दौलत का भूखा नहीं..

दौलत का भूखा नहीं ॥
न तो करी विरोध॥
जो ममता से मिल गया॥
वही हमारा जोग॥
न तो बोली कटुक बचन॥
न तो शांत सुभाव॥
न तो विद्दा मा पढ़ी॥
न तो तेई सुझाव॥
चार दिना की जिंदगी मा॥
चौविस होय हलाल॥
चौविस को फेकन गए॥
पंडा मिला दलाल॥
धन कय पुतकी छीन लिया॥
मै खोजत फिरता नाव॥

शनिवार, 26 जून 2010

गोरे गोरे गाल..

गोरे गोरे गाल तुम्हारे॥

कजरारी अंखिया॥

चलती जब बीच में तो ॥

हंसती है सखिया॥

छुपा के चेहरा चलती हो कही भूल न हो जाए॥

नज़रे न टकरा जाए जगे प्रेम की माया ॥

भयानक याद न आये॥

प्यारे प्यारे होठ तेरे॥

पतली कमारिया॥

चलती हो धीरे धीरे॥

बजती पयालिया॥

शूट सलवार पे॥

फिसले अंगुरिया॥

मेहदी लगाती तो ॥

सजती हथेलिया॥

लम्बे लम्बे बाल तेरे॥

खिलती फुलझडिया॥

हंसती तो फूल गिरे॥

चमके शरिरिया॥

पडरू कय मेहरारू..

टिपिर टिपिर बात करय॥

पहिन के नथुनिया॥

बड़ी चमकदार बा॥

पडरू कय मेहरिया॥

बात करय लागे तो देवार लग जाए॥

नानका बेटाव्ना खटिया पे चिल्लाय॥

बड़ी बलखात बा ओहके कमरिया॥

टिपिर टिपिर बात करय॥
पहिन के नथुनिया॥
बड़ी चमकदार बा॥
पडरू कय मेहरिया॥

हंस हंस के अंखिया से किले इशारा॥

कहे रात आया खोलव किवाड़ा॥

बड़ी चटकोर लागे ओढ़े जब ओढनिया॥

टिपिर टिपिर बात करय॥
पहिन के नथुनिया॥
बड़ी चमकदार बा॥
पडरू कय मेहरिया॥

सोहदा पडारुवा बाटे करय नाही खेला॥

झुलावे न झुलवा देखावे न मेला॥

देखय मा ज्यादा लागे ओहकी उमारिया॥

शुक्रवार, 25 जून 2010

कई लडकिया पटा लिए..

चढ़ा बुखार जवानी का तो॥
सोलह चक्कर लगा लिए॥
फिर तनहा तनहा नहीं घूमे॥
कई लडकिया पटा लिए॥
कोई शूट में कोई जींस में ॥
कोई मोडल दिखती॥
कोई हिंदी कोई अंग्रेजी॥
कोई फारसी लिखती॥
हिंदी वाली सूरत पे॥
अपनी जान हम फ़िदा किये॥
फिर तनहा तनहा नहीं घूमे॥
कई लडकिया पटा लिए॥
हिन्दुस्तानी प्यारी गुडिया॥
मेरे मन को भा गयी॥
छुप छुप को मिलने से॥
बाहों में मेरे आ गयी॥
उसकी अदाओं पे फ़िदा मेरा दिल॥
सब कुछ हम कुर्बान किये॥
फिर तनहा तनहा नहीं घूमे॥
कई लडकिया पटा लिए॥

गुरुवार, 24 जून 2010

आप भी तो झूलिए..

हाथो की लकीरे प्रिये कहती है क्या? सुनिए॥

तारीफ़ करती है आप की आप भी कुछ बोलिए॥

कहती है साजन तेरा बड़ा समीप समुन्दर है॥

अपने में समेट लेता दिल को वह अन्दर है॥

आप के होठो की हंसी बन जाती एक पहेली॥

पहले दिन की बात याद kar हसती मुझपर मेरी सहेली॥

मै प्यार के झूले में बैठी आप भी तो झूलिए॥

जवानी कय दाह बुझाय आवा..

पहली बार जब नैहर छोड़ा॥

ससुरे मा जाय पगुराय आवा॥

चुनरी मा दाग लगाय आवा॥

सुजिया पे उधम मचाय आवा॥

सासू कय गोड़ दवाय आवा॥

देवरा से अठिलाय आवा॥

चुनरी मा दाग लगाय आवा॥
सुजिया पे उधम मचाय आवा॥

पहिला दिन बीता जोगा छेमा मा॥

रतिया मा हलचल मच गयी॥

बंद केवाडिया ताकत रहली..

माथे पे तिलक लगाया आवा॥

चुनरी मा दाग लगाय आवा॥
सुजिया पे उधम मचाय आवा॥

रहन सहन सब बूझत रहली॥

आँगन भीतर के चक्कर मा॥

देवरा से नैना चारी होय्गे॥

रस भरी नयन से टक्कर मा॥

मन तसल्ली अब कर बैठा ॥

आधे मा नाम लिखे आवा॥

चुनरी मा दाग लगाय आवा॥
सुजिया पे उधम मचाय आवा॥

जवानी कय दाह बुझाय आवा..

सोमवार, 21 जून 2010

अब तो राहत दे दो राम॥

तप के देहिया कलुयी पडिगे॥

टुटही बखरी माँ लगे घाम॥

अब तो राहत दे दो राम॥

पूरा जयेष्ट बीत गइल बा॥

अब तो लाग आषाढ़ ॥

तन से हमारे आग है निकरत॥

चटके लाग कपार॥

अब तो राहत दे दो राम॥

पशु पक्षी सब ब्याकुल भागे॥

खड़े पेड़ सब पानी मांगे॥

नदिया तरसे अब आपनी का॥

सूखा पडा तालाब ॥

अब तो राहत दे दो राम॥

पडाने वाली पूड़ी॥

दैया रे दैया॥ गरम गरम लागे॥

पडाने वाली पूड़ी॥

वह पूड़ी को ससुर जी खाया॥

सासू के हमारे फट गयी मूड़ी॥

दैया रे दैया॥ गरम गरम लागे॥
पडाने वाली पूड़ी॥

उस पूड़ी को जयेष्ट जी ने खाया॥

जेठानी के हमारे आय गयी जूडी॥

दैया रे दैया॥ गरम गरम लागे॥
पडाने वाली पूड़ी॥

उस पूड़ी को देवरा जी ने खाया॥

देवरानी जी करती हां हुजूरी॥

दैया रे दैया॥ गरम गरम लागे॥
पडाने वाली पूड़ी॥

उस पूड़ी को सिया जी खाया॥

हमसे बोले चलो मंसूरी॥

दैया रे दैया॥ गरम गरम लागे॥
पडाने वाली पूड़ी॥

मै इतिहास लिखा छू मंतर का..

मै इतिहास लिखा छू मंतर का॥

थोड़ा बाड़ा कुछ अन्दर था॥

मै मानव सर का ताज बना॥

वह बेईमानी का खंजर था॥

मै सच की रीती ओढ़ लिया॥

वह दारू पी कर आटा था॥

भोले बाबा के मंदिर पे॥

शिव जी को बहुत गरियाता था॥

मै जग वालो का बना हितैषी॥

वह महा मुलीश कुकर्मी था॥

मै हाथ जोड़ कर काम चलाऊ॥

वह खुदगर्जी हठधर्मी था॥

मै सफल किया जीवन अपना॥

वह पड़े पड़े चिल्लाता है॥

अंतिम क्षण में भगवन को॥

मौत की भीख लगाता है॥

शुक्रवार, 18 जून 2010

राहुल गाँधी.. जी.. जियो हज़ारो साल..

तुम बनो हमारे रक्षक॥

भ्रष्टाचार को ख़त्म करो॥

रहे न कोई भक्षक॥

रहे न कोई भक्षक

सफलता कदम चूमेगी॥

हर दलित किसानो के घर फिर से॥

खुशिया झूमेगी॥

सजेगी दुनिया ॥ हँसेगी मुनिया॥

आप तूती बोलेगी...

barsegaa saawan hansegaa gagan॥

rituyo pushp barsaayegi॥

aashaa lagaaye sab baithe hai॥

suhagin geet gaayegi॥

तुम हमारे bhaarat के taaz ho॥

tumhi to desh के youraaj ho॥

राहुल गाँधी.. जी.. जियो हज़ारो साल..

अहंकार..दोनों का






लड़की:



करा न बवाल हिया होए पिटाई॥



दरोगा बड़ा टाईट बा कहा तो बोलाई॥



लड़का:



पापा हमारे डी.ऍम बाटे करवय ठिठाई॥



सीधे साधे मान जा करा न मोटाई॥



लड़की:



भैया हमरे पत्रकार॥ मामा पेशकार है॥



जीजा हमरे मंत्रीं के बहुत बड़ा यार है॥



साड़ी अंगडाई तोहरी जाए भुलाई॥



लड़का:



दीदी हमरे जज बाटी जीजा कल्लाक्टर॥



हमरा बडका भैया भइल इंस्पेक्टर॥



आना कानी जिन करा ॥



कहा हथवा लगाई॥











कितनी मीठी बोली है...


प्यारी तेरी मीठी बोली॥

dikhati कितनी काली है॥

मधुर स्वरों से गूंजे बगिया॥

तेरी बात निराली है॥

कितने ऋषि मुनियों को तूने॥

प्यारा गीत सुनाया है॥

कितनी वियोगिनियो के उपवन में॥

प्यारा फूल खिलाया है॥

यौवन की मद मस्त कली अब॥

औरो से इठलाती है॥

प्यारी तेरी मीठी बोली॥
dikhati कितनी काली है॥

शव्दकोश में तेरी उपमा॥

सब कवियों ने गाया है॥

सुन्दर सलिल बानी तेरी॥

शम्भू के मन भाया है॥

तभी तो हम सुन्दर शव्दों में॥

तेरी भाषा लिख डाली है॥

प्यारी तेरी मीठी बोली॥
dikhati कितनी काली है॥

ashaay

उंगली पकड़ के चलना सिखाया॥

उस गली के मोड़ तक॥

इस उम्र में छोड़ गए मुझे॥

इस नदी के छोर पर॥

तेरे ऊपर थी तमना ओ मेरे प्यारे लाडले॥

ढ़लती उम्र का सहारा तू बनेगा बावले॥

लेकिन तूने ओ कर दिखाया ॥

जो हर वंश कर सकता नहीं॥

माँ तो तेरी चल बसी बाप लगता हूँ नहीं॥

गुरुवार, 17 जून 2010

नहीं करूगा तुमसे शादी..

लड़का: नहीं करूगा तुमसे शादी॥

मुझे चाहिए अभी आजादी॥

तकाशेर बिकू //

कलियों को चूसा करू॥

लड़की: तुम निकले सनम खुदगर्जी॥

वापस आना तुम्हारी मर्ज़ी॥

मै तकाशेर न बिकू॥

घुट घट के जिया करू॥

लड़का: मै खोज रहा हूँ कलियाँ॥

जिसमे खिलाती फुल्झादिया॥

सुबह शाम मेरी राह जुहारे॥

उसी संग प्रीत करू॥

लडकी: मुझमे क्या है कमिया॥

जब हंसती गिरती फुल्झारिया॥

सांझ सकारे प्रेम पुकारे॥

तेरे सहारे बिहार करू रे॥

जागे नन्कौना..

रात अंधियारिया चटकोर जिन बोला॥
जागे नन्कौअना बाह न सिकोडा॥ जागे नन्कौना ॥
कहत अही मान जा काटा न चकोटी॥
गलवा का टोय के पकड़ा न चोटी॥
तोहे कसम सूना तो ॥ मन न चटोला॥ जगे नन्कौना
मौक़ा के ताड़ मा हमें फुशिलावा॥
मक्खन लगावा क्रीम खिलावा॥
सूना तानी देखा तो॥ नाचय लाग लोटा॥
जागे नन्कौअना बाह न सिकोडा॥ जागे नन्कौना ॥
आज नहीं आने दिन करत आही वादा॥
जा खेते सोवा छोड़ दिया आशा॥
अबतो कर्म ठीक करा॥
हुआ न तट्कोला ॥
जागे नन्कौअना बाह न सिकोडा॥ जागे नन्कौना ॥

समय निकल जाएगा..

लड़का: लगे में खराश है ॥

नहीं लगती प्यार है॥

मुझे अब सोने दो यही अरदास है॥

लड़की: सावन की बहार है॥

पहली बरसात है॥

आओ साथ भीग जाए॥

यही अरदास है॥

लड़का: आज मंगल वार है ॥

मेरा उपवास है॥

मुझसे रहो दूर तुम

यही सही बात है॥

लड़की: आज शुभ रात है॥

नैन बिछालात है॥

आ जाओ मेरे पास तुम ॥

मानो मेरी बात है॥

लड़का: आज सनिवार है॥

ब्रम्हाचारी वार है॥

पास नहीं मेरे आना॥

तुम्हे लगे पाप है॥

बुधवार, 9 जून 2010

भीख दे दो.....

मै इस लिए भीख नहीं मांग रहा हूँ की मै अपना पेट भरू या अपने परिवार वालो का ऐसी बात नहीं है । मै इस लियी भीख मांग रहा की हमें एक संस्था खोलनी है जिसमे गरीब होनहार लूले लंगड़े और भी रोगी बच्चे पढ़ सके इस लिए मै आप लोग से भीख मांग रहा हूँ की मै इतना बड़ा अमीर नहीं हूँ की एक संस्था खोल सकू।

सूर्य ने हंस के कहा..


सूर्य चंदा भी हंस करके कहने लगे॥

हाथ हमसे मिलाओ तो हो फ़ायदा॥

सजा देगे बगिया खिला देगे कलियाँ॥

चहके गी चिड़िया ख़ुशी होगा मलिया॥

बात हमसे बताओ तो हो फ़ायदा॥

भूल जाओगे आदत जो है बेरुखी॥

तेरे आँचल में भर दूगा साड़ी ख़ुशी॥

जांच हमसे कराओ तो हो फ़ायदा॥

प्रातः उठ करके सुमिरन हमारा करो॥

गन्दी आदत से हरदम किनारा करो॥

बात हमसे बनाओ तो हो फ़ायदा॥

शेर...



मै चंडाल किस्म का प्राणी हूँ॥


सबसे बड़ा हरामी हूँ॥


मै भक्षण करता हूँ जीवो को॥


काल का काल सुनामी हूँ॥


मार झपाटा करू शिकार...


मेरी नहीं कोई मिशाल ॥


मेरी आवाजो को सुन करके॥


हाथी बंद करता चिघ्घार॥


हर तजुर्बा मालुम मुझको...


मै सबसे बड़ा खिलाड़ी हूँ...


जोगी बाबा..


फुर्सत के छड में ॥

संकट आटा॥

महा दरिद्र बन जाता हूँ॥

अपनी धुन पे अपनी ढफली॥

द्वारे द्वारे बजाता हूँ॥

कोई देता है दान दक्षिणा॥

कोई कोई धकियाता है॥

मै मतवाला जोगी बन करके॥

घर घर अलख जगाता हूँ॥

राम नाम अब कोई नहीं सुनता॥

न तो आदर सत्कार करे॥

भूखा प्यासा दर दर घूमू॥

सब मेरा उपहास करे॥

फिर भी हमको फर्क न पड़ता॥

जोगी रूप सजाता हूँ॥

अपनी धुन पे अपनी ढफली॥

द्वारे द्वारे बजाता हूँ॥

सच्चा सेवक..


न पछताता सत्कर्मो पर॥

सत्य को नहीं डीगाता हूँ॥

चलता हूँ सच के पथ पर मै॥

सच्चाई की अलख जगाता हूँ॥

हमको पता है थोड़े दिन में॥

मुझपे लांछन लग जाएगा॥

भ्रष्ट हुए जो ऊपर के अफसर॥

गली गली दौडाए गे॥

फिर भी सच का साथी बन कर॥

पर्वत पर चढ़ जाऊगा॥

जो भ्रस्थाचारी भरे हुए है॥

उनका किला गिराऊगा॥

मै एक साधारण सेवक॥

सच्चाई की तिलक लगाता हूँ॥

चलता हूँ सच के पथ पर मै॥
सच्चाई की अलख जगाता हूँ॥

सोमवार, 7 जून 2010

वावली बनी तुम्हारी अक्ल..

चटका शीशा देख कर ॥

मै भी हो गयी दंग॥

प्रियतम की उस पीर में॥

छोड़ दिया था संग॥

छोड़ दिया था संग॥

बिमारी से जूझ रहे थे॥

चार पायी पर पड़े पड़े॥

तन को भीच रहे थे॥

कभी किया न ऐसा काम॥

मल मूत्र रोज़ बहाऊ॥

बदबू तन से आ रही थी॥

फिर उन्हें नहलाऊ॥

सूझ बूझ की रुकी पहेली॥

चढ़ गयी मुझको भंग॥

रोज़ रोज़ के दात्किर्रा से॥

हमहू होय गयी तंग॥

कूद फंड के नैहर आयी॥

बोली मरो अपंग॥

ड्योढ़ी पर जैसे मै पहुची॥

माता बोले ब्यंग॥

तेरी जीवन की रसरी खुल गयी॥

अब सूझे गा सारा छंद॥

वावली बनी तुम्हारी अक्ल॥

सोमवार, 31 मई 2010

कलम का पेड़..

कहते है पूत के पाँव पालने में ही बता चल जाता है की लड़का बड़ा होके क्या करेगा॥ कैसे अपने जीवन के डोर को थाम के चलेगा॥ जब हमारी उम्र मात्र ७ साल की थी, जो हमें याद नहीं है, हमारी बुआ जी विस्तार से बताती है॥ क्यों की बुआ जी हमें घुमाने के बहाने ले जाती और साथ में घूम भी लेती थी उनका भी मन आन हो जाता था। हम लोग अपने बैठके के पास इकट्ठी हो के खेला करते थे। एक दिन की बात सावन का समय था आसमान में हस्लोल बादल थे॥ जो मन को लुभाते थे। लोग अपने अपने kहंगे में सब्जी के बीच हो रहे थे॥ मेरे दिमाग में एक ख्याल आया जो हमारे पास कलम थी उसे मै थोड़ा से गड्ढा खोद कर मिट्टी में दबा दिया..जब मै उसे मतलब उस जगह को देखा तो तीन पत्ते का एक लौलीन पेड़ उसी स्थान पर लहरा था । मै बहुत ही खुश हुआ और दोस्तों को बोला की अगर यह हमारा कलम का पेड़ फल देगा तो हम तुम लोगो को एक एक कलम मुफ्त में दूगा। धीरे धीरे समय निकलता गया उस पेड़ में फूल भी आ गए , अब मै और भी सपना सजाने लगा की हमारे कलम के पेड़ में कलम उगेगे और हम उस कलम से सुन्दर सुन्दर शव्दों की माला पिरो कर अपने कविता को पहनाऊ गा। बहुत बड़ा लेखक बनूगा लोग मेरा सम्मान करेगा हमें इज्जत मुफ्त में मिलेगी॥ यही सोच कर हम बहुत ही खुश रहते थे। की अगर अधिक कलम की उत्पन्न हुयी तो मै व्यापार करूगा॥ अपने सगे सम्भंधियो को मुफ्त में बाँट दूगा। एक दिन मै खान्गे से अन्दर गया जहा मेरी माँ घर में आँगन में कड़ी थी मै उतौले पण से बोला माँ माँ मैंने कलम बोअया था उसमे फलिया लगी है । चल कर आप देखो ॥ माँ भी खुश हो करके बोले हाय मेरे बेटे कहा मेरा बेटा कलम उगा रखा है । मै भी चल के देखू माँ खान्गे में आयी तो मैंने कहा माँ यही पेड़ है । जो मै आप को बता rhaa था की मै कलम bo रखा है। माँ देखा और हंसने लगी मै सोचा मैंने जो इतनी म्हणत की है उसपर माँ हंस रही है। लेकिन माँ ने तुरंत बोला मेरे लाल ये कलम का पेड़ नहीं ये सेम का पेड़ और ये फलिया भी सेम है जिसकी सब्जी बनती है। कलम उगाया नहीं जाता बेटा कलां बनती है । इसके कारखाने होते है। मै गुस्से में आके माँ से बोला माँ तुम झूठ बोल रही हो यह मेरा कलम का पेड़ है। माँ कहा बेटा कलम कहा खोद कर गाड़े थे उस स्थान को खोद डालो तुम्हे इसका उत्तर मिल जाएगा जब मै वास्तव में उसी स्थान को खोदा मेरी कलम सुरक्षित निकली उसमे अंकुर नहीं फूटे थे॥ मै कलम तो नहीं उगा पाया लेकिन उस कलम के सहारे कितनी रचनाये रची ॥ वही कलम हमारी रचनाओ को अपने स्वरों से हमेशा सजाती है॥

शुक्रवार, 28 मई 2010

बस एक बार..



अब भेजो हो यहाँ॥ तो कुछ नाम तो kअमाने दो...


एक बार हमको इन्सान तो बन जाने दो।


हाथ दान देंगे जुबा मीठी बोल बोलेगी॥


चारो पहर खुशिया आँगन में तेरे डोलेगी॥


थोड़ा इशारा कर दो वक्त को तो आने दो॥


पैर करेगे तीरथ व्रत गंगा स्नान होगा॥


चित्रकूट में बैठ कर राम गान होगा॥


जब खिल गयी है कलियाँ..इनपे रहम तो कर दो॥


तन तरुवर करे तपस्या मेरा बड़ा भाग होगा॥


जब आप सरीक होगे आप का भी साथ होगा॥


मेरी कलम की कविता को एक बार तो सज जाने दो॥


बुधवार, 26 मई 2010

बेरामिगादा भतरा ,,,,,,,,,



ताकत ताकत भोर भइल अब॥


आवा नहीं भितरा॥


लागल बेकार बा॥


बेरामी गाडा भतरा॥


कलियन पे भवरा


नहीं बैठे देहली॥


मन के प्रितिया केहू से॥


न कहली,,


जवानी बरजोर करे॥


उडे लाग अंचरा॥


लागल बेकार बा॥
बेरामी गाडा भतरा॥


अंखिया न देखय॥


दुसरे कय सपना॥


तोहके बनौली ॥


सब कुछ अपना॥


दूर से देवरा ..ताके घघरा॥


लागल बेकार बा॥
बेरामी गाडा भतरा॥

शुक्रवार, 21 मई 2010

सहना तो पडेगा..

सहना तो पडेगा ..जब साजन तुम्हे बनाऊगी॥

अपने दर्द को भूल कर हर पल तुम्हे हसाऊ गी॥

अर्पण किया है तन को ये क्यारी हुयी तुम्हारी॥

छुपा के रखू दिल में खोली नहीं पिटारी॥

चहके तुम्हारी बतिया हाथो से उसे सजाऊगी॥

नाचेगी मेरी बिंदिया गाएगी मेर निंदिया॥

चरणों की धुल साजन मांग में सजाऊगी॥

वास्तव में भगवान् नहीं है ?

जिस प्रकार से बैज्ञानिको ने यह सिद्ध कर दिया है । की वह इंसान बना सकता है। वह उसे जीवन दे सकता है। इससे तो यही प्रमाणित होता है। की भगवान् नाम की कोई इंसान भगवान् जीव नहीं है। लोग भगवान् पर विश्वास करना छोड़ देगे। तो अनायास ही भयानक दिन देखने को मिलेगे और मानव की सभ्यताओं का अंत हो जाएगा।

वास्तव में भगवान् नहीं है?

चलो चलते आराम करे..



हम भी दीवाने तू भी दीवानी॥


चल मतवाली चाल चले॥


मौज करेगे मस्ती करेगे॥


वापस आयेगे शाम ढले॥


खुशिया होगी मौसम होगा॥


कलरव नदिया प्रभात करे॥


हम भी दीवाने तू भी दीवानी॥
चल मतवाली चाल चले॥
मौज करेगे मस्ती करेगे॥
वापस आयेगे शाम ढले॥


बंगला होगा गाडी होगी॥


चले पवन तो आह भरे॥


हम भी दीवाने तू भी दीवानी॥
चल मतवाली चाल चले॥
मौज करेगे मस्ती करेगे॥
वापस आयेगे शाम ढले॥


सपना सजाये गे अपना बनाए गे॥


सुआ बैठ पुराण पढ़े॥


हम भी दीवाने तू भी दीवानी॥
चल मतवाली चाल चले॥
मौज करेगे मस्ती करेगे॥
वापस आयेगे शाम ढले॥

गुरुवार, 20 मई 2010

दाग लगावलू माथे मा॥



ई मर्द कय महत्वाकांक्षा का तू॥


भाप न पवलू साथे मा॥


वादा कय के चम्पत भैलू॥


दाग लगावलू माथे मा॥


तू दुसरे कय बाह पकड़ लेहलू॥


हम ढर्रा तोहरी ताकत बाते॥


तोहरी सूरत बिसरत नाही॥


मनवा फंसगा घाटे मा॥


ई कौन शास्त्र मा लिखा बा जानू॥


की वादा कय के छोड़ दिया॥


मंदिर मा इतनी कसम खायलू॥


धागा बांधू हाथे मा॥


माला तोहरे नाम मय॥


जपत रहब दिन रात॥


या तव तू औबे करबू॥


या देबैय हम जान॥


ऐसे हमका दैमारु तू॥


देहिया पड़ी उचाटे मा॥



मुरहा बेटवा..

मुरहा बेटवा पैदा होतय॥

बाप कय दहिनी टूटी टांग॥

घर कय काम अमंगल होय गा॥

महतारी कय फूटी आँख॥

ऐसा असगुन भुइया परते॥

घर कय कुइया गयी सुखाय॥

गाभिन भैंस मरी सरिया मा॥

एकव तिकनम नहीं सुझाय॥

घर मा सब का सांप सूंघ गा॥

क्रोध कय कैसी जल गय आग॥

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

चली उताने..



पनवा खैली लगवा फुलैली॥


चली उतान बजरिया में॥


दोना गाडा पकड़ के खैचय॥


संझलौका अरहरिया में ॥


लाली लगाऊ लिपस्टिक लगाऊ॥


अव पहनू पाजेब॥


चारिव पुरवा घूम के आइली॥


नरवा मा होई गय भेंट॥


खीचा तानी मा फट गय धोती॥


झरती लीये कोठरिया में॥


पनवा खैली लगवा फुलैली॥
चली उतान बजरिया में॥


छुप-छुप बोली धीरे-धीरे डोली॥


रच रच लाज शर्म सब खोली॥


रोज़ अंधेरिया मिला करा तो॥


लौके लागे अंजोरिया में॥


पनवा खैली लगवा फुलैली॥
चली उतान बजरिया में॥






गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

लागत बा करबू तू गड़बड़ घोटाला॥



जब जब आवय याद हे जनिया॥


जवानिया के दुई बूँद खून घट जाला॥


नाहक नेहिया लगौले हम तोहसे॥


लागत बा करबू तू गड़बड़ घोटाला॥


अंखिया मा चमके ला तोहरी सुरतिया॥


मनवा के भावे ला प्यार वाली बतिया॥


आंधेरवा भा गायब आइल उजाला॥


जवानिया के दुई बूँद खून घट जाला॥


माई अब पूछले का भात भाईले॥


तोहरी चमकिया कहा उड़ गैले॥


कैसे बोली बतिया लगैले हम ताला॥


जवानिया के दुई बूँद खून घट जाला॥




मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

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सेवा में,

श्रीमान उप मण्डल अधिकारी महोदय जी॥

सेक्टर - ०३ बल्लभगढ़ - फरीदाबाद।

बिषय: - मीटर रीडिंग सुधार हेतु आवेदन पत्र ।

सविनय निवेदन है । की मै प्राथी अहल चन्द सेक्टर-०३ मकान नंबर ३८७१ है। मेरा मीटर रीडिंग गलत है । पुराना मीटर रीडिंग ५७५० है। और बर्तमान मीटर रीडिंग ५८१४.३ है । और बिल मीटर रीडिंग ५९३० भेजा गया है। यह गलत रीडिंग है।

अत: आप से विनम्र निवेदन है की इस पर उचित कार्यवाही करने की कृपा करे ।

आप की अति कृपा होगी॥

प्राथी:

अहल चन्द

सेक्टर -०३

मकान नंबर ३८७१

बल्लभ गढ़ ,फरीदाबाद।

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

जमनवा इन्टरनेट कय भवा॥



जब से चला मोबाईल॥


दूर भइल अर्चानवा॥


जमनवा इन्टरनेट कय भवा॥


काकी दादी बात करय॥


बिटिया बा परदेश मा॥


चैटिंग करय बड़का कय बेटवा॥


दुल्हिन ढूढे विदेश मा॥


मोलवी चच्चा दुबई से बोले॥


बदल गवा इन्सनवा॥


जमनवा इन्टरनेट कय भवा॥


छोटकी दीदी हेलो हाय कह ॥


दियय फोन पय पप्पी॥


कहा बाटेया खाया का बबुआ॥


काहे लेत हां झप्पी॥


भौजी बोले भैया से लाया॥


गोल्ड वाला कंगनवा॥


जमनवा इन्टरनेट कय भवा॥


देर न लागे दुई मिनट मा॥


भाग के आवय सुबिधा॥


नालिश करबे भरी कचेहरी॥


होए तनिकव दुविधा॥


नेटवोर्किंग मा जुडी बा दुनिया॥


अचरज करय जहानावा॥


जमनवा इन्टरनेट कय भवा॥







बीते हुए पल...


बीते हुए पल...
हमने भी गुजार दी है॥दर्द भरी जवानी॥हमको भी याद आती है॥बीती हुयी कहानी॥करती थी बात जब वह॥कलियों से खुशबू झरती॥आँखे बड़ी अजीब थी॥मस्त हो मचलती॥अब भी संभाल रखा हूँ॥उसकी एक निशानी॥हमने भी गुजार दी है॥दर्द भरी जवानी॥उसने सजाया चमन को॥मैंने भी उसको सीचा॥आपस ताल मेल था॥शव्दों को दोनों मींजा॥अब रोता हमारा दिल है॥आगे नहीं बतानी ॥हमने भी गुजार दी है॥दर्द भरी जवानी॥नजर लगी किसी की॥य होनी को यही बदा था॥नफरत कहा से आयी॥मुझको नहीं पता था॥उजड़ा मेरा बगीचा॥दूजे पे हक़ जमा ली॥हमने भी गुजार दी है॥दर्द भरी जवानी॥

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

जब से पायलिया बाजन लागी..



जब से पायलिया बाजन लागी॥


तब से उमरिया नाचन लागी॥


माई के प्यारी बपयी कय प्यारी॥


भैया की बहना बहुते दुलारी॥


आय भवरवा जाचन लागे॥


जब से पायलिया बाजन लागी॥
तब से उमरिया नाचन लागी॥


चूमन का दौड़े ओठ के पहेलियाँ॥


मुहवा से बोले प्यारी प्यारी बतिया॥


मन मा उमंग लगा रात हम जागन लागी॥


जब से पायलिया बाजन लागी॥
तब से उमरिया नाचन लागी॥


हथवा लगावे कोमल बदनवा पे॥


कब्जा करय हमरे मंदिर जनवा पे॥


उनके हम राह ताकी संग संग चलन लागे॥


जब से पायलिया बाजन लागी॥
तब से उमरिया नाचन लागी॥


मन अकुलाय तो गले लग बोली॥


मुह से बियोगवा धीरे धीरे खोली॥


प्रेम नशा में भइल प्रेम बर्शन लागे॥


जब से पायलिया बाजन लागी॥

मेरे आँगन से कोयल कब उड़ गयी॥

मैंने ढूध किनारा शहर न मिला॥
जिंदगी ऊब करके नरक बन गयी॥
मौत आके कड़ी थी मेरे सामने॥
लगता जाने की अबतो घडी आ गयी॥
जिसको अपना बनाया बेदर्दी बने॥
ढीठ जीवन की लय से लौ बुझ गयी॥
मन का सच्चा बना कुछ छिपाया नहीं॥
मेरे आँगन से कोयल कब उड़ गयी॥

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

सजनवा शराबी हमार..



सिजिया सुतन कैसे जाऊ रे॥


दारू पीवे सजनवा॥


खटिया हिलावय॥


तकिया गिरावय॥


देहिया पकड़ के ॥


झुलवा झुलावय॥


का दय के ओहे बगदाऊ रे॥


दारू पीवे सजनवा॥


जोर-जोर बोलय॥


टटिया खोलय॥


घुप्प अन्धेरा ॥


हूवा टटोले॥


बारिष भयी बिचलाऊ रे॥


दारू पीवे सजनवा॥


कराय बरजोरी॥


सीना जोरी॥


झपटा झपटी॥


हेरा फेरी॥


हाथ पकड़ मुस्काऊ रे॥


दारू पीवे सजनवा॥





रात कटती नहीं प्रीति हटती नहीं॥

रात कटती नहीं प्रीति हटती नहीं॥
तेरे आने से महफ़िल क्यों जचती सही॥
तुम सूरत की मूर्ति बनी आज हो॥
mएरी सपनों की रानी बनी साज हो॥
तुम बताओ छुपा करके रखू कहा॥
तेरे पायल की छम छम रूकती नहीं॥
रात कटती नहीं प्रीति हटती नहीं॥
तेरे आने से महफ़िल क्यों जचती सही॥
तेरी कजरारी आँखों से मूर्छित हुआ॥
मैंने देखा न खाई कहा है कुआ॥
तुम अब जीवन आधार बन कर चलो॥
अब तो लेना ठिकाना पडेगा कही॥

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

हे गोइया रहिया निहार के चला॥

सूरज विचरे मस्त गगन मा॥

डोलन लागी भुइया॥

हंसे हिलोरे बहे बयरिया॥

नाचन लागी कुइया॥

हे गोइया रहिया निहार के चला॥

संस्कार कय डोर न तोड़ा॥

न बूडा उतिराह ॥

बिना बात के बोली न बोला॥

न कहूके घर जाह॥

रगड़ झगड़ से दूर जब रहबू॥

शांत रहे सरसुइया

हे गोइया रहिया निहार के चला॥

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

चार दिन की जिंदगी बा चार दिन का खेल ..



बुडे उतिराय रे॥


भवरिया मा नैया॥


लागत बा बूड़ जाब॥


डर लागे दैया॥


पहिले जब गलियन मा॥


होत रही चर्चा॥


बड़ा बरजोर रहे ॥


बोवत रहे मरचा॥


चौबीस घंटा ताल ठोकी॥


हिलय मढैया॥


बुडे उतिराय रे॥
भवरिया मा नैया॥
लागत बा बूड़ जाब॥
डर लागे दैया॥


चिंता सताईस॥


घुन गय देहिया॥


घर का अब तीत लागी॥


लागावय न नेहिया॥


सीधे देखात नाही॥


नौके न तरैया॥


बुडे उतिराय रे॥
भवरिया मा नैया॥
लागत बा बूड़ जाब॥
डर लागे दैया॥


चालत बेरिया अब तो ॥


बनाय लिया कमवा॥


जियरा निकल जाए॥


सड़ी जाए चमवा॥


भूल जांए चारी दिन मा॥


चलत बेचकैया॥


बुडे उतिराय रे॥
भवरिया मा नैया॥
लागत बा बूड़ जाब॥
डर लागे दैया॥




शनिवार, 10 अप्रैल 2010

क्या जज्बात है आप के..

इतना न दूर जाना ...

कही पीछे रहे तो हम॥

रास्ता भटक हम जायेगे॥

भरता रहेगा गम...

...................................

पकड़ा है हाथ तेरा॥

दूरी करेगे कम॥

हंस के पायलिया बोले॥

मुझमे बड़ा है दम॥

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ऐसा कभी न करना॥

यह रोता रहे यूं तन॥

सौपा तुझे ये जीवन॥

सच्चा है मेरा मन॥

.................................

पर्वत से लड़ हम जायेगे॥

आने न देगे आंच॥

तुम हंस के हमें बुलाओ॥

लाये गे हम बरात॥

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

समर भूमि में कभी नहीं मै झुकाऊ माथ॥

रामायण के पात्र हे॥ हे महाभारत के वीर॥
कौन घडी पैदा हुए क्या क्या रचना कीं॥
बदले सारे नियम कर्म सच्चाई हुयी हसीन॥
छिड़ी मार हम न बने न हम बने कुटीर॥
रहम करम कुछ तो करो हम है तेरे अधीन॥
ध्यान लगाऊ तम्हे हम तुम मेरे जगदीश॥
जब घटना की घंटी बजे तुम रहो हमारे साथ॥
समर भूमि में कभी नहीं मै झुकाऊ माथ॥

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

गिरी आन्स गद गद भुइया पे॥


चार दिन कय चंचल बतिया॥

जीवन भर अब नहीं भुलात॥

न तो देखे ऊपर नीचे॥

न तो देखे उंच ढलान॥

याद जवानी अब आवे तो॥

बड़ा जोर जियरा चिल्लान॥

गिरी आन्स गद गद भुइया पे॥

राह भयानक लगी देखाय॥

बतिया काटे खट्कीरवा जस॥

रही रही के अब जिव मत्लाय॥

भुर्कुश देखिया होय गे बाटे॥

अंखिया से कुछ न फरियाय॥

घटत उमरिया टे होई जाबय॥

सब जाए सपना बिथराय॥





शुक्रवार, 26 मार्च 2010

धीरे धीरे बोला॥


अंजोरिया मा राजा॥
केवाडिया न खोला॥
देखाय जाए घाँघरा ॥
धीरे धीरे बोला॥
ऊ घाँघरा जब सासू देखिहय॥
लजाय जाए आचरा॥
धीरे धीरे बोला॥
ऊ घाँघरा जब नंदी देखिहय॥
करवाय देइहय लाफडा॥
धीरे धीरे बोला॥
ऊ घाँघरा जब देवर देखे॥
बिछे देये चादरा ॥
धीरे धीरे बोला॥

सोमवार, 22 मार्च 2010

अब थोड़ी से मुस्कान दे दो॥

रूठ कर क्यों बैठे हो टूटे दिल॥

हमसे भी दो बाते कर लो॥

सूखा है समंदर तपिस बढ़ी॥

हे मेघ राज बरसात कर दो॥

हरियर क्यारी हो जायेगी॥

कलियों का खिलाना जरी होगा...

फिर भवरे मचलते आयेगे॥

बस थोडा सा उपकार कर दो॥

हम आस लगाए बैठे है॥

तुम मांग सजाओ गे मेरी॥

सोलह सिंगर पहन के निकलू॥

सकुचा जायेगे समय सहेली॥

अब देर न कर रुठन वाले॥

अब थोड़ी से मुस्कान दे दो॥

रविवार, 21 मार्च 2010


कहते है की पुराने समय के जानवर भी बोलते थे॥ यह एक समय की बात है एक राजा था उसके तीन रनिया थी॥ लेकिन यह राजा का दुर्भाग्य था की उन तीन रानियों से एक भी औलाद नहीं पैदा हुयी। राजा बड़े चिंता में रहते थे। की हमारे राज्य का उतराधिकारी कौन बनेगा। एक दिन राजा को एक महात्मा जी मिले । राजा ने अपना दुखड़ा मुनिवर को सुनाया। तब मुनिवर ने कहा की हे राजां आप को पुत्र सुख तो लिखा है और यह भी लिखा है । की आप के एक ही औलाद होगा। और तीस रनिया तथा ३० पोते होगे। लेकिन आप को एक बिल्ली से शादी करना पडेगा। राजा को यह बात नागवार लगी । राजा वहा से उठ के चल दिए और मुनिवर भी चले गए । जब राजा को पुत्र की चिंता अधिक होने लगी तो लोगो के कहने पर राजा ने बिल्ली से शादी करने का निर्वे लिया। एक बिल्ली थी जो हमेशा पूर्णिमा को गंगा स्नान करने जाती थी और गंगा माँ से एक ही बार मांगती थी। की हे गंगे माँ हमारे एक लड़का पैदा हो और तीस बहुए और तीस पोते हो। राजा की शादी उसी बिल्ली से हो गयी आखिर कार बिल्ली गर्भवती हो गयी ये बात राजा को रानियों के द्वारा पता चला। तब राजा ने कहा की चलो ठीक है। तुम लोगो को तो कुछ होने वाला नहीं है चलो बिल्ली को तो गर्भ ठहर गया॥ ये बात रानियों को बुरी लगी जब बिल्ली को बच्चा देने का समय नजदीक आ गया तो । रानियों ने कहा की आप को बच्चा ऐसे नहीं होगा आप चूल्हा में सर को छुपा लो। बिल्ली ने वैसे ही किया॥माँ गंगे के आशीर्वाद से बिल्ली se एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ लेकिन रानियों ने चतुराई से बालक को घर के पास कुए में डाल दिया॥ और बिल्ली को बता दिया की बिल्ली के बिल्ली के बच्चे ही जन्म लेगे वे भी मरे थे । जो हम लोगो से फिकवा दिया । बिल्ली बेचारी जानवर तो थी ही वह अपना दुःख दर्द किससे कहती । लेकिन वह हमेशा गंगा स्नान करती थी। धेरे पांच साल हो गए एक दिन किसी बालक के हंसने की आवाज कुए से सुनाई दी रानी ने कुए में झंका तो देखा की ५ साल का लड़का कुए के अन्दर खेल रहा है। वह सीधे कोपभवन में पहुची और लेट गयी ये बात राजा को पता चली की रानी तो कोप भवन में है। राजा देर न करते हुए कोपभवन में पहुचे।जब राजा ने रानी से कारन पूछा तो रानी ने कहा की आप सामने जो कुआ है। उसे भठवा दो । रजा ने बिना सोचे ही बोले ठीक है। सुबह राजा ने अपने नौकरों को आज्ञा दे दी की कुआ को भाट दिया जाय (पहले के जमाने में अगर किसी को हलाल करना मरना है तो उसे एक एक दिन पहले ही बता दिया जाता है॥) कुआ राजा की बुधि पर हंसा और लडके को समीप में रहने वाली कुतिया को दे दी॥ अब कुतिया भी ५ साल तक लडके का पालन पोषण किया एक दिन दूसरी रानी ने लडके को कुतिया के पास देख लिया फिर क्या था रानी ने पहली रानी की तरह किया लेकिन यह माजरा कुआ जैसे नहीं था राजा ने कुतिया को मारने का निमंत्रण भेज दिया अब कुतिया वहा पहुची जहा घोड़े रहते थे। कुतिया ने घोड़े से निवेदन किया । ५ साल तक कुआ और ५ साल तक मै इस बालक की परिवरिश किया अब समय आप को आ गया है। ५ साल तक आप इस लडके की देख भाल करे समय आने पर वक्त बताएगा की आगे क्या होगा। घोड़ा तुरंत राज़ी हो गया और लडके का पालन पोषण करने लगा। धीरे धेरे समय बाटता गया और एक दिन तीसरी रानी की नज़र की लडके पर पद गयी वह भी अन्य रानियों की तरह कोपभवन में जा पहुची ये बात राजा को पता चली तो राजा ने कहा की अब किसको मारने का हुक्म देना है। रानी ने तुरंत कहा घोड़े को। राजा ने बिना समय गवाए बिना सोचे समझे घोड़े को भी निमंत्रण भेज दिया । घोडा वेग में आया और लडके को लेकर्के रात में फुर्र हो गया। अब घोडा भागते भागते सातवे आसमान के तीसरे टापू पे जा पहुचा जहा पर बीरन जगह थी और ७ घर कुम्हार के थे। वही पर रूका अब तो लड़का भी समझदार था वह कुम्हार से बोला की मै आप की सेवा करूगा आप के बच्चो की देख भाल करूगा। आप हमें अपने यहाँ रहने दीजिये घोड़ा घूम घूम के चरता और मस्त रहता था। कुम्हार अपना काम करता था एक दिन की बात है दिवाली का समय था कुम्हार और कुम्हारिन अपने जजमानी में जा रहे थे तो जाते समय लडके को बोल करके गए थे की ये तीस नंदवा है। इसे रंग देना और बच्चा रोने न पाए कही इधर उधर मत जाना। लडके ने बोला ठीक है।अब कुम्हार और कुम्भाहरिन के जाने के बाद जब लड़का नंदवा रंगने के लिए रंग लेके आया तो पानी नहीं था और पानी कहा से लाया जाता है उसे पता भी नहीं था। नदी दूर पर थी अगर वह पानी लाने जाता तो बच्चे को कुछ भी हो सकता था इस लिए उसने सोचा अब क्या करे उसके मनमे एक विचार आया की अंदावा रंगा ही है, तो पानी ही चाहिए वह पेशाब करके तीसो नंदवा रंग दिया। उसके दुसरे दिन कुम्भर ने नंदवा राजा के घर भेज दिया राजा के तीस बेतिया थी दिवाली बीत जाने पर तीसो ने नंदवा की दियाली फोड़ कर खा लिया उसके नौ महीने बाद तीसो के एक एक लड़का पैदा हुआ अब राजा ने सोचा की अगर एक दो बेतिया बदचलन हो सकती है लेकिन तीसो तो नहीं हो सकती यह भगवन की कृपा ही है।राजा ने बड़े आनंद मन से अपने लडकियों के बच्चो का बारहव करने का निश्चय किया । और पूरे नगर मेंडुग्गी पिटवा दिया की परसों हमारे घर में बारहव है। गाँव का कोई सदस्य बाकी न रहे सब हमारे घर में आके खाना खायेगे। समय आया और लोग खाना खाने लगे तथा राजा का खुफिया तंत्र यह पता लगाने में जुटा था की कौन नहीं आया है। लोगो को नगर से ढूढ़ करके राजा के घर पर लाते थे। खाने के लिए अब कुंभार के घर पर गए तो पता चला की यह लड़का नहीगया था। बल्कि कुम्भारिन कहने लगी की हम इसके लिए खाना लाये है। यह घर पर ही खा लेना लेकिन सैनिक नहीं माने और लडके को अपने साथ ले गए.समय ज्यादा हो गया था। लोग खा के चले गए थे अब राजा की लडिया ही बाकी थी तो लोगो ने कहा के ही लड़का बचा है.इसे आँगन में खाना खिला दो।जब लड़का आँगन में खाना खाने के लिए गया तो । १२ दिन के तीसो बालन खुद चल के आँगन में आ गए और उसका कंधा पकड़ लिए । अब लोदो के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। राजा बड़ा ही संस्कारी प्रतापी था। वह समझ गया की ये सब भोले की महिमा है। लड़का भी अचम्भे में पद गया। सब पूछने लगे की क्या माजरा है। अब लड़का भी समझ गया था की तब उसने बोला की आप हे राजन ॥ आप अपने लडकियों से पूछे की इन्होने जो नंदवा मैंने भेजा था उसे खा तो नहीं लिया था तब सभी लडकियों ने हां में हां मिला दी॥ तब वह बताया की पानी न मिलाने की वजह से मैंने कैसे इसे रंगा था। तब राजा ने पूछा की आप कहा के रहने वाले हो। तब तक घोड़ा भी पहुच गया सीधे आँगन में घोड़ा बताने लगा की यह भी किसी राजा का लड़का है। उसकी कहानी सुन राजा ने बहुत से धन और दौलत दिया वह राजकुमार अब अपने नगर जाने की जिद करने लगा। और हाथी घोड़े धन दौलत के साथ अपनी तीसो रनिया तीसो बच्चो के साथ रण्वन हो गया । साथ में कुंभार के परिवार को बहुत सी धन दौलत दिया। जब पूरी फ़ौज के साथ वह अपने बाप के नगर में प्रवेश किया और बाग़ में तम्बू गाद दिया।अब राजा को यह बात पता चली की कोई दूसरा राजा बाग़ में तम्बू लगा दिया है। तो उन्होंने सैनिको को भेजा लेकिन सैनिक वापस आ गए और कहने लगे की महाराज वह तो कोई राजकुमार है। जो आप का घोड़ा भाग गया था वह भी साथ में है। अब बिल्ली के ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। रात में ही उसे गंगा मैया ने बताया था की तुम्हारा पुत्र तीस पुरता और रानियों के साथ वापस आ रहा है। अब बिल्ली उछाती कूदती पहुच गयी । तीसो बच्चो के साथ रानियों ने आशीर्वाद लिया॥ राजकुमार ने भी आशीर्वाद लिया। अब बिल्ली ख़ुशी मन से वापस आ गयी । राजा को आश्चर्य हुआ वे भी पैदल बिना सैनिको के साथ पहुच । सबने राजा का पैर छुआ और आशीर्वाद लिए। और आप बीती राजा को बताये राजा को अफ़सोस हुया॥ फिर राजा ने अपने रानियों को फांसी की सजा का हुक्म दिया लेकिन राजकुमार ने कहा वे भी मेरी माता है। उनका उन्हें मिल गया है। वे बिना संतान के है। और पूर्व जनम में भी रहेगी इसलिए हे राजन इन्हें माफ़ कर दिया जाय ॥ राजा ने रानियों को माफ़ कर दिया। और पुत्र बहुए पोतो के साथ महल में आये राजकुमार का राज्यविशेक किये। नगर में उत्सव का माहौल था॥ अब राजा अपनी रानियों को छोड़ करके बिल्ली के साथ तीरथ यात्रा पर निकल पड़े॥

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

गवार तोहरी जातिया॥



नइखे तोड़ेया बतिया॥


गवार तोहरी जातिया॥


ज्यादा न बोला न ॥


उतार लेबय इज्जतिया...


ज्यादा न बोला न ॥


हमें छिछोरी न सम्झेया॥


न आवारा पकडंदी॥


तोहरी कला हमें मालुम बा।


कितना पडा पाखंडी॥


देखे देवेय न तोहका तोहरी अवकतिया।


हाथ गोड़ से समरथ बाटी॥


जांगर बा दमदार॥


न तो हमका कॉन्व चिंता॥


न चाहि उपकार॥


देखाय देबय न ॥


तोहरी काली सुरतिया ॥


नइखे तोड़ेया बतिया॥
गवार तोहरी जातिया॥
ज्यादा न बोला न ॥
उतार लेबय इज्जतिया...




गुरुवार, 18 मार्च 2010

नाजुक दर्दे दिल

नाजुक दर्दे दिल को ॥

अभी न दुखाओ॥

की ठुम हो हमारे॥

हमें न बताओ...

सारा सा चूक जाए तो॥

अचम्भे ताजुब लगते॥

कली खिलने नहीं देते॥

पहले से टूट पड़ते है॥

लगेगा तीर न मुझपर॥

हमें नगमा नहीं सुनाओ॥

नाजुक दर्दे दिल को ॥
अभी न दुखाओ॥
की ठुम हो हमारे॥
हमें न बताओ।

फिर नींद दूर भागेगी॥

चैन हंसने नहीं देगा॥

मन मलिन हो बैठा॥

दिल हमारा कहेगा॥

अभी डगर दूर है॥

हमें न बुलाओ॥

नाजुक दर्दे दिल को ॥
अभी न दुखाओ॥
की ठुम हो हमारे॥
हमें न बताओ.

मंगलवार, 16 मार्च 2010

हठ कर बैठा मानव एक दिन॥

हठ कर बैठा मानव एक दिन॥

धरा गगन सब मौन हुए॥

पशु पक्षी नहीं कलरव करते॥

सागर सरिता मंद खुये॥

वह बोल रहा था भक्ति भाव से॥

उस पथ पर मुझे जाने दो,,

तरस रहे है नयना मेरे॥

अपना स्वप्न सजाने दो॥

संघर्ष ठहाका मार रहा था॥

काल रूप विकराल भयानक॥

जहरीली कीड़ो का समूह॥

देख दांग भय तन अचानक॥

फिर भी हटा नहीं हत्कर्मी॥

उसकी किया न कोई होड़॥

चला गया जीवन की लय में॥

फिर आया न कोई मोड़ ॥

सोमवार, 15 मार्च 2010

महगाई कय मौसम आवा॥



महगाई कय मौसम आवा॥


रोवे लरिका मलाई का॥


दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।


बढ़िया माल खिलायी का॥


अठन्नी चवन्नी केहू न पूछे॥


सौ रूपया मा भरी न पेट॥


डीजल इतना महागा होइगा॥


सूख गवा गेहू कय खेत॥


बड़की बिटिया पड़ी कुवारी॥


कौने हाट बिकाई का॥


दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।
बढ़िया माल खिलायी का॥


माल दार कय बतिया सुन के॥


थर थर कांपे हाड॥


अक्ल तो हमारी गुमसुम भैली॥


लागत अबतो निकले प्राण॥


फताही कुर्ती पहिन के घूमी॥


कौने दर्जी सिलाई का॥


दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।
बढ़िया माल खिलायी का॥



सच्चे पहरे दार है॥


हम स्वतंत्र भारत के ॥

सच्चे पहरे दार है॥

परतंत्र मेरा काम है॥

गणतंत्र के गुलाम है॥

रूकते नहीं कभी हम॥

थकते न पाँव मेरे॥

चढाते है शिखा पे॥

जहा कठिन घटा घनेरे॥

दिया है जिसने चमन मुझे॥

उनको मेरा सलाम है॥

परतंत्र मेरा काम है॥
गणतंत्र के गुलाम है॥

सच का साथ देता ॥

संकट भी दूर रहता॥

बढे चलो बढे चलो॥

मन हमारा कहता॥

सच्चाई के सिवा कोई॥

दूजा नहीं लगाम॥

परतंत्र मेरा काम है॥
गणतंत्र के गुलाम है॥

रविवार, 14 मार्च 2010

दिल दीवाना बना दिया॥


दिल दीवाना बना दिया॥
जगाया आस इतनी क्यो?

दिल दीवाना बना दिया॥

सोयी थी प्रेम की राहे ॥

उसे फ़िर से जगह दिया॥

जोड़ कर प्रेम के नाते॥

रशिली बातें करके तुम॥

न जाने कैसे बदली चाई॥

तुने अपना बना लिया॥

अबतो जलते है पड़ोसी ॥बोलना गुनाह हो जाएगा॥

गुलशन में आना कम कर दो॥

नही मिलना दुश्वार हो जाएगा॥

डर लगता है कही सूख ना जाए ये क्यारी॥

बगीचे की रौनक में क्यो ॥

जाली लगा दिया॥

सजा के थाल रखी हूँ जेवना बना डाली हूँ॥

तुम्हे आने की चाहत में सेजिया डाली हूँ॥

या तो आना जाना तुम छुप के॥आँचल में छुपा लूगी॥

तुम्हारी प्रेम की बगिया सजन ॥हस के सजा दूगी॥

निगाहें झपटी नही यारा॥जो टिका लगा दिया॥